मंगलवार, 16 अगस्त 2016

फिल्‍म - काश (तीस साल पहले)



छोटी सी है बात.........

ऐसे ही कुछ प्रीतिकर गानों, जैकी श्राॅफ, डिम्पल, राजेश रोशन आदि को याद करते हुए महेश भट्ट निर्देशित फिल्म काश की याद आ गयी है जिसको प्रदर्शित हुए अब तीस वर्ष होते आ रहे हैं। एक छोटी सी, सीमित सी लेकिन बड़ी भावनात्मक, मन को छू लेने वाली फिल्म। दरअसल हर फिल्म के पीछे दर्शक की एक जिज्ञासा यही रहती है कि फिल्म बनाने वाले ने विषय को किस तरह अपनी दृष्टि दी है, अपेक्षा उस सम्यक दृष्टि की होती है जिसके माध्यम से फिल्म का रस सब तक पूरे आस्वाद तक पहुँचे। यदि फिल्म देखते हुए उसकी अनुभूति से आप सिहरे नहीं तो फिर वह व्यर्थ ही है और पाॅपकार्न चबाने, चाय-काॅफी पीने और समय का नाश करने के अलावा सिनेमा फिर और क्या उपक्रम हो सकता है?
बहरहाल बात काश की कर रहा हूँ जिसके अचानक फिर याद आने और तब की देखी अब स्मृतियों को टटोलने पर टुकड़ा-टुकड़ा जुड़ते चले जाना उसकी खूबी है जो महेश भट्ट की दृष्टि और परख का भीतर छुअनभरा कमाल है। यह एक ऐसे सितारा नायक की कहानी है जिसका अच्छा खासा समय चल रहा है। अच्छे खासे समय के अच्छे खासे और मुँह देखे संगी भी हैं। सितारों का अच्छा समय, फिल्मों के चलते रहने से चलता रहता है, फ्लाॅप हो जाने से बुरे समय में बदल जाता है। इस नायक के साथ भी ऐसा होता है जिसकी एक खूबसूरत पत्नी और एक सात-आठ साल का छोटा सा बच्चा भी है।
विफलता नायक को शराब में डुबो देती है और पारिवारिक जीवन को संकट में डाल देती है। पत्नी का काम करना शान के खिलाफ है, यही अलगाव की वजह। बेटा, नायक के पास है, नायिका अकेली अपने समय से लड़ रही है। इसी बीच बच्चे को जानलेवा बीमारी का पता नायक को चलता है। एक बड़ी विपदा आखिरकार टूटे और हारे नायक को अपनी पत्नी के सामने ला खड़ा करती है जिसमें एक सामंजस्य की आपसी गुजारिश है कि जब तक बेटे की जिन्दगी है, साथ रहें। फिल्म का अन्त बेटे के नहीं रहने से होता है लेकिन अब फिर से नायक और नायिका दूर जाने की मनःस्थिति में नहीं हैं........
इस पूरे कथानक को बड़ी महीन संवेदना के साथ बुनकर निर्देशक ने प्रस्तुत किया है। जैकी श्राॅफ नायक, डिम्पल नायिका और बेटे की भूमिका में मास्टर मकरन्द। सहायक भूमिकाओं में मेहमूद, सतीश कौशिक, अनुपम खेर आदि। बहुत बड़ा झामा नहीं है फैलाव के लिए और गुंजाइश भी नहीं और इसी सूझ के साथ एक त्रासदी से लौटने और अपने-अपने हिस्से की कमियों को पहचानने की कोशिश फिल्म को महत्वपूर्ण बनाती है। डिम्पल नायिका और बच्चे की माँ के रूप में अपने किरदार में बड़े गहरे उतर जाती हैं। जैकी हमेशा अपने निर्देशकों के शुक्रगुजार होते हैं कि सबने मिलकर उनको गढ़ा और उनसे किरदार निकलवाये लेकिन सच यह है कि जैकी खुद निर्देशकों का चाहा बहुत अच्छे से प्रस्तुत करके देने में बड़ी मेहनत करने वाले कलाकार हैं। यहाँ वे स्टारडम, चकाचैंध और उसमें एक नकली दुनिया से घिर जाने वाले और एक ही पल में अलग-थलग पड़ जाने वाले सितारे की भूमिका को बखूबी जीते हैं। मकरन्द तो खैर कहानी की धुरि है ही।
कुछ अच्छे दृश्य हैं जैसे शराब के नशे में नायक का झगड़ा करना, पिट जाना और फिर इस विषय में बेटे का पिता को समझाना, नायिका के साथ रेल वाला दृश्य जिसमें बच्चा ऊपर बर्थ में सो रहा है, एक गाना छोटी सी है बात, बेटे के लिए समझौते के तहत साथ रहने की गुजारिश और भी बहुत कुछ। इस फिल्म के गाने फारुख कैसर ने लिखे हैं जिनको अपनी गहरी कल्पनाशीलता से राजेश रोशन ने संगीत से समृद्ध किया है।
ओ यारा तू प्यारों से है प्यारा, फूल ये कहाँ से आये हैं, बाद मुद्दत के हम तुम मिले, छोटी सी है बात आदि किशोर कुमार, आशा भोसले, अनुपमा देशपाण्डे, साधना सरगम ने जिस भाव से गाये हैं, आज भी उसी तरलता और सम्पे्रषणीयता के साथ आप सुनकर आनंदित हो लीजिए......................

Keywords - thirty years of film kaash.... remembring by sunil mishr.......jackie shroff, dimple kapadia, anupam kher, mehmood, master makrand, satish kaushik etc.....