लगभग सोलह वर्ष पहले की ही बात होगी, डॉ एम बालमुरलीकृष्ण, मध्यप्रदेश शासन का राष्ट्रीय कालिदास सम्मान ग्रहण करने भोपाल आये थे। हवाई अड्डे पर उनको लेने मैं ही गया था और शाम साढ़े चार बजे जिस विमान के आने का समय था वह तीन बजकर चालीस मिनट पर आ चुका था। एयरपोर्ट पर जब यह मालूम हुआ तो मैं सहम गया था, मुझे लगा बहुत नाराज होंगे लेकिन जब प्रवेश टिकिट लेकर अन्दर गया तो बड़े इत्मीनान से एक कुर्सी पर प्रतीक्षा करते, मुस्कुराते हुए मिले वे। पैर छूकर क्षमा मांगी तो हँसने लगे। रात को गरिमामय समारोह में सम्मान ग्रहण किया और उसके बाद अपना गायन प्रस्तुत किया। अगले दिन सुबह उसी सहजता से वे चले भी गये............
एम बालमुरलीकृष्ण, मिले सुर मेरा तुम्हारा का एक अहम स्वर और उपस्थिति थे। कर्नाटक संगीत और पक्के रागों को अनुशासित और शुद्ध पवित्र भाव से गाने की उनकी दक्षता अनूठी थी। एक पूरा जीवन उन्होंने सच्चे और विनम्र साधक की भाँति संगीत को दिया। वे भारतीय सांस्कृतिक परम्परा की विलक्षण धरोहर थे। उनको सन्त कहना ज्यादा सार्थक होगा क्योंकि धर्म से लेकर चेतना तक उनमें संगीत ही व्याप्त रहा था सदैव। मुझे महान फिल्मकार जी वी अय्यर की उन दोनों महत्वपूर्ण फिल्मों आदिशंकराचार्य और भगवतगीता देखने का सौभाग्य मिला जिनका संगीत एम बालमुरलीकृष्ण ने सिरजा था। उनका निधन एक बड़ी क्षति है। हमारी संस्कृति और परम्परा से ऐसे सन्तों की चिरविदायी अत्यन्त दुखद है.......