बुधवार, 23 नवंबर 2016

एम बालमुरलीकृष्‍ण का जाना.......


लगभग सोलह वर्ष पहले की ही बात होगी, डॉ एम बालमुरलीकृष्‍ण, मध्‍यप्रदेश शासन का राष्‍ट्रीय कालिदास सम्‍मान ग्रहण करने भोपाल आये थे। हवाई अड्डे पर उनको लेने मैं ही गया था और शाम साढ़े चार बजे जिस विमान के आने का समय था वह तीन बजकर चालीस मिनट पर आ चुका था। एयरपोर्ट पर जब यह मालूम हुआ तो मैं सहम गया था, मुझे लगा बहुत नाराज होंगे लेकिन जब प्रवेश टिकिट लेकर अन्‍दर गया तो बड़े इत्‍मीनान से एक कुर्सी पर प्रतीक्षा करते, मुस्‍कुराते हुए मिले वे। पैर छूकर क्षमा मांगी तो हँसने लगे। रात को गरिमामय समारोह में सम्‍मान ग्रहण किया और उसके बाद अपना गायन प्रस्‍तुत किया। अगले दिन सुबह उसी सहजता से वे चले भी गये............
एम बालमुरलीकृष्‍ण, मिले सुर मेरा तुम्‍हारा का एक अहम स्‍वर और उपस्थिति थे। कर्नाटक संगीत और पक्‍के रागों को अनुशासित और शुद्ध पवित्र भाव से गाने की उनकी दक्षता अनूठी थी। एक पूरा जीवन उन्‍होंने सच्‍चे और विनम्र साधक की भाँति संगीत को दिया। वे भारतीय सांस्‍कृतिक परम्‍परा की विलक्षण धरोहर थे। उनको सन्‍त कहना ज्‍यादा सार्थक होगा क्‍योंकि धर्म से लेकर चेतना तक उनमें संगीत ही व्‍याप्‍त रहा था सदैव। मुझे महान फिल्‍मकार जी वी अय्यर की उन दोनों महत्‍वपूर्ण फिल्‍मों आदिशंकराचार्य और भगवतगीता देखने का सौभाग्‍य मिला जिनका संगीत एम बालमुरलीकृष्‍ण ने सिरजा था। उनका निधन एक बड़ी क्षति है। हमारी संस्‍कृति और परम्‍परा से ऐसे सन्‍तों की चिरविदायी अत्‍यन्‍त दुखद है.......

शनिवार, 19 नवंबर 2016

सुविख्यात चित्रकार प्रमोद गणपत्ये का जाना.........


भाई लोकेन्द्र त्रिवेदी जी ने सुविख्यात चित्रकार भाई प्रमोद गणपत्ये के नहीं रहने की सूचना फेसबुक पर दी है। प्रमोद जी को जानने और चाहने वालों के लिए यह बड़ी शोक की खबर है। मैं उनके कृतित्व के प्रति आकृष्ट रहा करता था, अनेक प्रतिक्रियाओं में उनका उत्तर और कई बार सिनेमा सम्बन्धी मेरी टिप्पणियों को अपने अनुभवों और जानकारी से उनका परिष्कृत कर देना मुझे बहुत सुहाता था।

कुछ महीने पहले एक कला शिविर में वे भोपाल आये थे, कुछ दिन रहे थे। उसके बाद ही से उनसे वचन हो गया था कि जल्द ही एक दिन दिल्ली आऊँगा और पूरा दिन साथ रहूँगा। इसके लिए उनके एक और मित्र बालू भैया को भी संगत के लिए मनाया लेकिन हम सबके भाग्य में वह संगत नहीं थी। कुछ दिन पहले प्रमोद जी से बात हुई तब वे कह भी रहे थे कि जल्दी मिल जाओ नहीं तो किसी दिन तस्वीर पर हार चढ़ जायेगा। तब मैंने कहा था कि भाई साहब जल्दी ही मिलता हूँ।

इच्छाशक्ति की कमी कह लूँ या अपना आलस्य-प्रमाद या भोपाल में निरन्तर आपाधापियों में यह सब अनमोल छूटना, प्रमोद जी से मिल न सका। कल कुछ घण्टे दिल्ली में था लेकिन उसका आधा समय वहाँ की ट्रैफिक और सड़क में गसी हुई गाड़ियों के बीच ऊँघते हुए और शेष नियत कार्य तथा वापसी में पूरा हुआ। 

दिल्ली के मित्रों ने कल मुझे दिल्ली जानकर खूब चिढ़ अपनेपन में जाहिर की है, एक से मैंने दिन में ही प्रमोद जी की बात करते हुए कहा भी कि उनसे अपरिहार्य मिलना भी न हो पाया और कुछ ही घण्टों में मैं उनकी नहीं रहने के सच को जान पा रहा हूँ। स्वाभाविक रूप से खूब व्यथित हूँ और अपनी लचरता पर झल्लाया हुआ..........

प्रमोद गणत्ये जी की सबसे बड़ी खूबी उनका देशजपन था जो व्यक्तित्व से लेकर कृतित्व में भी झलकता था। वर्षों से वे दिल्ली में थे लेकिन उज्जैन और मालवा को, परम्परा, संस्कृति को, जीवन और उसकी आंचलिक सहजता को, रंग से लेकर वस्त्र, श्रृंगार और समय तथा अनुभवों के साथ स्थूल हो चली देह को कितनी ही जीवन्त स्मृतियों में वे अपनी कलाकृतियों में चित्रित करते थे। उसी मर्म और संवेदना ने मुझे उनके काम को लेकर गहरी जिज्ञासा जगायी थी। मुझे दुख है कि निरर्थक कारणों से होते रहे विलम्ब के कारण मैं उनसे नहीं मिल सका और वे चले गये..................