सोमवार, 24 सितंबर 2018

।। मनमर्जियाँ ।।

तनमर्जियाँ न हुई, किसी हद तक मनमर्जियाँ, ठीक है.....



सिनेमा एक अलग धरातल पर निर्देशक देख रहे हैं पिछले कुछ दिनों से। कुछ आश्वस्त लेखकों, पटकथाकारों और संवाद लेखकों ने आज के समय, आज की पीढ़ी और समकालीन चुनौतियों के साथ सिनेमा को देखना और लिखना शुरू किया है। काबिल निर्देशक इस पर अपना काम बखूबी कर जाता है। मनमर्जियाँ लगभग ऐसे ही ऊर्जावान लोगों का एक आकृष्ट किया जाने वाला प्रयोग है जो सफल हुआ है। पहले तो यह फिल्म अनुराग कश्यप को इस बात की मान्यता देती है कि यदि वे आगे भी कोई रूमानी विषय हाथ में लेंगे तो उसे आन्तरिक धरातल पर गहरी पड़ताल के साथ ही परिणाम तक लायेंगे। इसके बाद कागज पर फिल्म रचने वाले लोग, स्वाभाविक रूप से लेखिका कनिका ढिल्लन, गीतकार शैली, गानों के साथ पार्श्व संगीत भी तैयार करने वाले संगीतकार अमित त्रिवेदी, सम्पादक आरती बजाज, सिनेमेटोग्राफर सिल्वेस्टर फॉन्सिका की भागीदारी को फिल्म में बखूबी देखा जा सकता है। 

प्रायः दर्शकों की निगाह में सिनेमा परदे पर दीख रहे चेहरों-चरित्रों का ही हुआ करता है। लेकिन दृश्य में जो दिख रहा होता है उसके पीछे बरसों जो लोग काम करते रहे, अन्ततः उनका काम इतना बोलने लगता है कि वे भी नेपथ्य से बाहर दीखने लगते हैं। इसीलिए आरम्भ में ही उनकी दक्षता का जिक्र कर दिया है। कहानी यह है कि विकी और रूमी दो युवक-युवती हैं, एक-दूसरे पर बेतरह मोहित हैं। प्यार करते हैं यह कहना इसलिए मुश्किल लगता है क्यों विकी छत फलांगकर जब भी रूमी से मिलने आता है तो दोनों अन्तरंगता की इच्छा पूर्ति में जी-जान से जुट जाते हैं। कई-कई बार विकी पकड़ा भी जाता है लेकिन बहुत ही मूर्खतापूर्ण हास्यप्रसंगों के साथ रूमी के परिवारजनों द्वारा जाने दिया जाता है। कहने का अर्थ यह कि सब कुछ आपत्तिहीन है। 

रूमी का रॉबी भाटिया के साथ ब्याह हो जाना एक बहुत ही निरर्थक किस्म की चुनौती-चैलेन्ज की परिणति लगती है। मध्यान्तर के पहले लगभग पैंतालीस मिनट से ज्यादा फिल्म को जमाने में लगा है तब तक दर्शक घर में बनी रहने वाली दुस्साहसी नायिका और डीजे में अपनी जिन्दगी का आदि-अन्त तलाशने वाला सड़कछाप नायक है और उसके दोस्त भी उसी तरह के, जिसका पिता एक दिन बचपन से ही उसकी मानसिकता के अस्थिर होने के कुछ प्रमाण सन्दूक से निकालता है। कहानी दरअसल मध्यान्तर के बाद अपनी राह पर आती है जब रॉबी और रूमी साथ होते हैं। रॉबी व्यक्तित्व के अनुरूप गम्भीर है और जमाने के चलन के अनुरूप पत्नी हो चुकी रूमी की रग-रग से दिनोदिन वाकिफ होता चलता है। रूमी को पूरी तरह समझ पाने में उसे वक्त नहीं लगता। पति कब अच्छा पहले लगता है और हॉट बाद में या कब हॉट पहले लगता है और अच्छा बाद में इसकी दिलचस्प फिलॉसफी है। तलाक हो जाना और कोर्ट से पैदल रूमी को उसके घर तक रॉबी का छोड़ने जाना, इस दस-पन्द्रह मिनट में फिल्म अपने अर्थ को ग्रहण करती है। 

मनमर्जियाँ अपने परिवेश, घने शहर, घनी बस्ती, छतों की एक-दूसरे से सम्बद्धता और उसके रोमांटिक प्रयोग की वजह से दर्शक को भी दृश्यों का नजदीक से साक्ष्य बनाती है। सँकरी गलियाँ, घर के भीतर घर, संयुक्त परिवार, पारिवारिक जिम्मेदारियाँ ये सब वातावरण का हिस्सा हैं। पहले भाग में जब सम्बन्धों से रूमी और विकी को निर्देशक स्थापित करने में लगा है, पूरा किस्सा इतना अव्यवहारिक लगता है कि आँखों में पट्टी बांधे ऐसे परिवार शायद ही कहीं हो। यह सब हँसी में घटित होता जाता है और दर्शक भी इस ओछेपन पर खूब हँसता है। मध्यान्तर बाद की कसावट ही आरम्भ की खामियों को भुलाने का काम करती है। 

कलाकारों में यह फिल्म अभिषेक बच्चन को शायद पहली बार चरित्र के उस तरह के निर्वाह के लिए प्रशंसा के धरातल पर लाती है जो उन्होंने इस अन्तराल में अपने आपको परिपक्व करते हुए निभाया है। रॉबी भाटिया की भूमिका में वे अमिताभ बच्चन की छाया या प्रभाव से बहुत हद तक मुक्त होकर अपने को आजमाते हैं, यही उनकी विशेषता है। उनकी भूमिका जितनी खूबी के साथ अनुराग कश्यप ने लेखिका से विकसित करायी है, निर्वाह भी उसी तरह का है। तापसी पन्नू हाल ही कुछ फिल्मों से एक खिलन्दड़ स्वभाव की नायिका के रूप में पहचानी जा रही हैं, यह भूमिका उनको पहले नायक विकी कौशल की ही बौद्धिक धरातल का सिद्ध करती है। मनमर्जियाँ सम्बन्धों में अतिरेक और सामंजस्य में उदारता का सधा हुआ साम्य होने की कोशिश करती है और काफी हद तक सफल भी होती है। फिल्म के दो-तीन गाने बहुत स्पर्शी हैं, सच्ची मोहब्बत, चोंच लड़ियाँ, जैसी तेरी मरजी। 

इस फिल्‍म का एक दिलचस्‍प आकर्षण दो किशोरी हैं जो पूरी फिल्‍म में गानों के बीच, बाद में दृश्‍यों के बीच अपने नृत्‍य, एक जैसा पहनावा और उपस्थिति में खूब आ‍करती हैं। ऐसे ही दो युवक जो हनीमून पर गये रॉबी और रूमी को। दर्शक अन्‍त तक इनके तार जोड़ने की कोशिश करता है और हॉल के बाहर चला जाता है।
मनमर्जियाँ, देखी जा रही फिल्म है, देखी जाने वाली भी फिल्म है.....................