
एम बालमुरलीकृष्ण, मिले सुर मेरा तुम्हारा का एक अहम स्वर और उपस्थिति थे। कर्नाटक संगीत और पक्के रागों को अनुशासित और शुद्ध पवित्र भाव से गाने की उनकी दक्षता अनूठी थी। एक पूरा जीवन उन्होंने सच्चे और विनम्र साधक की भाँति संगीत को दिया। वे भारतीय सांस्कृतिक परम्परा की विलक्षण धरोहर थे। उनको सन्त कहना ज्यादा सार्थक होगा क्योंकि धर्म से लेकर चेतना तक उनमें संगीत ही व्याप्त रहा था सदैव। मुझे महान फिल्मकार जी वी अय्यर की उन दोनों महत्वपूर्ण फिल्मों आदिशंकराचार्य और भगवतगीता देखने का सौभाग्य मिला जिनका संगीत एम बालमुरलीकृष्ण ने सिरजा था। उनका निधन एक बड़ी क्षति है। हमारी संस्कृति और परम्परा से ऐसे सन्तों की चिरविदायी अत्यन्त दुखद है.......
sureelapan toh kalaakaar ke swabhaav se hi jhalakta hai. thanks for sharing the episode
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