जन्मदिन : 8 दिसम्बर
भारतीय सिनेमा के सदाबहार अभिनेता धर्मेन्द्र एक सदैव प्रासंगिक सितारे हैं। 8 दिसम्बर को उनका जन्मदिन है। देश के कोने-कोने से उनके चाहने वाले मुम्बई पहुँचते हैं, यथाक्षमता उपहार, फूल, गुलदस्ता और खूब सारा प्यार लिए। धर्मेन्द्र सबसे मिलते हैं, यह दिन यदि वे मुम्बई में हुए तो उनसे मिलकर जाने वाले के लिए यादगार बन जाता है। बयासी वर्ष की उम्र में वे अनुशासित और अपनी फिटनेस को लेकर सजग रहते हैं। जहाँ तक सक्रियता की बात है तो वे न केवल यमला पगला दीवाना के तीसरे भाग की शूटिंग में व्यस्त हैं बल्कि अपनी भावनात्मक फिल्म अपने का सीक्वेल भी बनाने की तैयारी कर रहे हैं। उनकी ही देखरेख में उनका पोता और सनी का बेटा राजवीर अपनी पहली फिल्म पल पल दिल के पास से सिनेमा में प्रवेश करने जा रहा है।
धर्मेन्द्र एक साफदिल इन्सान, भीतर-बाहर एक सा व्यक्तित्व हैं। उनका व्यक्तित्व एक खुली किताब की तरह है। वे हमारी-आपकी तरह सहज और सीधे-सादे इन्सान हैं। फिल्म जगत मेें उनका आना, यूँ किसी बड़े सुयोग या चमत्कार से कम न रहा है। फगवाड़ा, पंजाब के एक छोटे से गॉंव ललतों में उनका बचपन बीता। बचपन से उनको सिनेमा का शौक था। अपने तईं जब उनको मौका मिलता था, तब तो सिनेमा वे देखते ही थे, इसके बाद अपनी माँ और परिवार के सदस्यों के साथ भी वे फिल्म देखने का कोई अवसर जाने नहीं देते थे। उन्होंने स्वयं ही बताया कि बचपन में सुरैया के वे इतने मुरीद थे कि चौदह वर्ष की उम्र में उनकी एक फिल्म दिल्लगी उन्होंने चालीस बार देखी थी। धर्मेन्द्र अपने पिता को काफी डरते थे। उनसे सीधे बात करने की हिम्मत उनकी कभी न पड़ती। अपनी माँ के प्रति उनकी गहरी श्रद्घा रही है।
उन्होंने फिल्म फेयर की नये सितारों की खोज प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर अपने सितारा बनने के स्वप्र को साकार करने की दिशा में पहला कदम रखा था। जब उनको मुम्बई बुलाया गया तो खुशी का पारावार न रहा। इस यात्रा के लिए उनको फस्र्ट क्लास का टिकिट और फाइव स्टार होटल में ठहरने के इन्त$जाम के साथ बुलाया गया था। वे इसके लिए फिल्म फेयर के तब के सम्पादक पी. एल. राव को याद करना नहीं भूलते। यह 1958 की बात है। चयन तो उनका हो गया और फिल्म फेयर ने अपने जो स्टार घोषित किए उनमें धर्मेन्द्र भी शामिल थे मगर उनको एकदम से काम नहीं मिला। धर्मेन्द्र लेकिन जिद के पक्के थे। उन्होंने संघर्ष किया। अभिनेता बनने के ही ख्वाहिशमन्द अर्जुन हिंगोरानी और धर्मेन्द्र अक्सर काम के सिलसिले में किसी न किसी ऑफिस में एक-दूसरे को मिल जाते थे। दोनों में ऐसी दोस्ती हुई कि अर्जुन ने हीरो बनने की कोशिश से अपने को दूर करके निर्देशक के रूप में कैरियर शुरू किया तो उनके पहले नायक धर्मेन्द्र थे, दिल भी तेरा हम भी तेरे के साथ। बाद में यह दोस्ती ऐसी परवान चढ़ी कि हिंगोरानी की हर फिल्म के नायक धर्मेन्द्र ही हुए, शोला और शबनम, कब क्यों और कहाँ, कहानी किस्मत की आदि।
धर्मेन्द्र की फिल्मोग्राफी बड़ी समृद्ध है। शायद ही ऐसा कोई श्रेष्ठï निर्देशक हो, जिनके साथ उन्होंने काम न किया हो। सीक्वेंस में देखें तो निर्माताओं में, निर्देशकों मेें, साथी कलाकारों में, नायिकाओं मेें ऐसे अनेक नाम सामने आते हैं जिनके साथ अपने कैरियर में कई बार, अनेक फिल्मों में उन्होंने काम किया। मोहन कुमार, मोहन सैगल, राज खोसला, बिमल राय, हृषिकेश मुखर्जी, असित सेन, रमेश सिप्पी, दुलाल गुहा, जे. पी. दत्ता, अनिल शर्मा, ओ. पी. रल्हन, मनमोहन देसाई, रामानंद सागर, चेतन आनंद, विजय आनंद जैसे कितने ही निर्देशक होंगे जिनके साथ धर्मेन्द्र ने अपने समय की यादगार फिल्में की हैं। धर्मेन्द्र के कैरियर का शुरूआती दौर बहुत ही विशेष किस्म की अनुकूलता का माना जाता है। यह वह दौर था जब उन्होंने अपने समय की श्रेष्ठï नायिकाओं के साथ अनेक खास फिल्मों में काम किया।

लगभग दो सौ से अधिक फिल्मों के माध्यम से धर्मेन्द्र ने न जाने कितने ही किरदारों को परदे पर साकार किया है। दर्शकों के बीच उनके सभी किरदार अपने-अपने ढंग से प्रतिष्ठिïत हैं। रामानंद सागर की फिल्म आँखें ने उनको इण्डियन जेम्स बॉण्ड के रूप में पहचान दी। रूमानी किरदार, बुरा आदमी, कानून का रक्षक, सच्चा और स्वाभिमानी चरित्र, बॉक्सर, फाइटर टाइप के चरित्र हों या इसके अलावा कुछ और, धर्मेन्द्र सभी मेें प्रभावशाली ही नजर आये। कॉमेडी में धर्मेन्द्र कुछ अलग ही रेंज के आदमी दिखायी पड़ते हैं जिसका उदाहरण तुम हसीं मैं जवाँ, प्रतिज्ञा, चाचा- भतीजा, गजब, शोले, चुपके-चुपके, नौकर बीवी का जैसी फिल्में हैं।
धर्मेन्द्र भारतीय सिनेमा में एक यशस्वी उपस्थिति हैं। उनके साथ सदाबहार कलाकार की पहचान जुड़ी हुई है। धर्मेन्द्र दर्शकों में अपनी छबि को लेकर कहते हैं, कि फिल्मों में काम करते हुए दर्शकों में हमेशा मेरे लिए जो प्यार रहा है, उसको परिभाषित करना कठिन है। हर माँ ने मुझमें अपना बेटा देखा है, हर बहन ने मुझमें अपना भाई देखा है। और हर प्रेमिका ने........ इस पर वे शरमा जाते हैं। धर्मेन्द्र कहते हैं कि इस इण्डस्ट्री ने, इस हिन्दुस्तान ने मुझे जो दिया है, उसको बयाँ करना आसान नहीं है। ये ही वो दुनिया है जिसने धर्मेन्द्र को बनाया है।
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