इस अंजुमन में आपको आना है बार-बार

खैयाम साहब ने बहुत चुनकर फिल्में कीं। उनसे एक आकर्षण कभी-कभी से बनता है, कल और आयेंगे नगमों की खिलती कलियाँ चुनने वाले, साहिर अपने बारे में जैसे बड़े एक्सीलेंस के बावजूद कह जाते हैं, मुझसे बेहतर कहने वाले..........उस समय खैयाम साहब के इशारे पर साज भी जैसे शायर की बात सुनता है। आगे बहुत से उदाहरण हैं, त्रिशूल, नूरी, नाखुदा, उमराव जान, दर्द, थोड़ी सी बेवफाई, बाजार, दिले नादान और अल्टीमेट रजिया सुल्तान आदि..........नजर से फूल चुनती है नजर, चांदनी रात में इक बार तुझे देखा है, मोहब्बत बड़े काम की चीज है की शुरूआत में कुछ पंक्तियाँ हर तरफ हुस्न है जवानी है आज की रात क्या सयानी है, तुम्हारी पलकों की चिलमनों में ये क्या छुपा है सितारे जैसा, देख लो आज हमको जी भर के और ऐ दिले नादान, आयी जंजीर की झनकार, जुस्तजूँ जिसकी थी उसको तो न पाया हमने.............मन-मस्तिष्क दोहराते हैं, फिर खैयाम साहब का न होना याद आता है तो लगता है कि साँझ हो गयी है और हवा में पतंग टूट जाने के बाद उदास उड़ाने वाला मांझा उतार रहा है........
हम सब एक बुरे समय के शिकार नहीं बल्कि खुशी-खुशी उसके साथ हैं, यह समय है भूल जाने, बिसरा देने और याद न रखने का। अब खैयाम साहब को कब याद किया जायेगा, पता नहीं। उनकी पत्नी जगजीत कौर भी अत्यधिक बीमार और अब एकाकी रह गयीं। खैयाम साहब ने उनसे अनेक भावुक और संवेदनशील प्रसंगों पर बहुत वास्तविक आभास देने वाले गीत गवाये थे, देख लो आज हमको जी भरके, चले आओ सैंया, इधर आ सितमगर, हरियाला बन्ना आदि। रजिया सुल्तान फिल्म में एक गाना तो उस्तादों के साथ जगजीत जी ने गाया था जिसमें परवीन सुल्ताना, फैयाज अहमद खाँ, नियाज अहमद खाँ, मोहम्मद दिलशाद खान संगी थे।
खैयाम, एक फनकार थे, सुरों और साजों की संवेदनशीलता को समझने वाले माहिर थे, तबला, सारंगी, सितार और सन्तूर उनकी संगत में जैसे बोल उठते थे। ऐसे खैयाम को हृदय और श्रद्धा के साथ नमन.....
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