इधर देखी तीन फिल्मों में दो-दो का दिलचस्प साम्य जुड़ा। दो फिल्मों में अभिनेत्री जरीना वहाब को बड़े दिनों बाद देखने का अवसर आया और दो फिल्मों के नामों में लड्डू शामिल थे। ये तीन फिल्में थीं, द लवर्स, मेथी के लड्डू और बेसन के लड्डू। पहली फिल्म थोड़ी थ्रिलर सी, शेष दोनों में जीवन शैली और विडम्बनाओं की बातें।
द लवर्स

मेथी के लड्डू
एक छोटी सी फिल्म
जो लगभग खुले किचन में घट रही है। मॉं है, दो विवाहित
बेटियॉं हैं। छोटी बेटी सद्यप्रसूता है और बड़ी के बच्चे नहीं हो पा रहे हैं विवाह
के अनेक वर्ष गुजर जाने के बाद भी। उसकी झुंझलाहट और उदासी एक खालीपन लिए चेहरे पर
दिखायी दे रही है। मटर छीलती बड़ी बेटी मॉं को बतला रही है कि आगे से वह बड़ी क्लास
पढ़ाया करेगी स्कूल में। उसे वरीयता मिल गयी है। मॉं कहती है कि तू मेहनत भी कितनी
करती है। बेटी को लगता है कि मॉं मटर के पराठे उसके लिए बनायेगी लेकिन वह तो छोटी बेटी
के लिए मटर की सब्जी और मेथी के लड्डू बना रही है। इससे उसकी व्यथा और बढ़ गयी है।
मॉं से झुंझलाती है बेटी बच्चे न होने की बात चलने पर। यहॉं मॉं का एक डायलॉग बड़ा
अच्छा है, आजकल के बच्चे भी न, मॉं के
साथ अंग्रेजी में गिटपिट करो और मॉं का मुँह बन्द करो, वैरी
गुड। इस पर बेटी मॉं को देखते हुए अपना गुस्सा लगभग वापस ले लेती है। कहानी में आगे
यह है कि छोटी बहन और मॉं ने योजना बना रखी है कि बड़ी को लेकर टेस्ट ट्यूब बेबी के
माध्यम से बच्चे के लिए कोशिश करने डॉक्टर के पास जायेंगे। यह बात जब बेटी को बतायी
जाती है तो वह दोनों के प्रति उदार होकर मुस्करा उठती है। मॉं अब मटर के पराठे भी
बनायेगी। एक सहज भावुक फिल्म जिसके मयंक यादव ने निर्देशित किया है। अन्य कलाकारों
में आकांक्षा सिंह और अंजली बारोट ने अच्छा काम किया है।
बेसन के लड्डू
नवविवाहिता जिसका
ब्याह एक बहुत बड़े घर में हुआ है। शादी के बाद दिवाली पर पहली पार्टी बेटे बहू के
घर रख दी है मॉं ने। अपने घर में मेहमानों की तैयारी में लगी है बहू। उसके मन में है
कि वह जिस बड़े घर में ब्याहकर आयी है, उसके अनुरूप
अतिथियों का स्वागत करे, उनके खानपान का ख्याल रखे और उस तरह
के पहनावे को भी अपनाये जो ऐसे समृद्ध घर का व्यवहारिक लोकाचार होता है। उसी तरह की
साड़ी पहने वह सब व्यवस्थाओं में जुटी है। उसका पति अभी अभी लौटा है और उसके पहनने
के लिए अपनी पसन्द के कपड़े और अन्य तोहफे लाया है। पत्नी को विवाह के पहले उसने
जिस सहज रूप में देखा है उसी से आगे का उसका ख्वाब है। उसे लगता है कि पत्नी के पास
उसके लाये तोहफों को देखने का समय नहीं है। वह यह सब पलंग पर रखकर चला जाता है। अगला
दृश्य शाम का है जिसमें पत्नी वही कपड़े पहनकर तैयार होकर आती है जैसी पति को थी।
पति व्यस्त पत्नी को निहार रहा है रह रहकर और पत्नी बीच बीच में उसको देखकर अपनी
ऑंखों से प्रेम भरी अभिस्वीकृति उसको दे रही है। कुछ ही देर में दोनों पास आकर एक-दूसरे
से बात कर रहे हैं, मनचाहा हो जाने पर प्रेम और प्रगाढ़ हो गया
है। बहुत सहज और हल्की फुल्की रोमांटिक फिल्म जिसमें भावनाओं को समझने और बात रख
लेने की उदारता मानवीय गुण है। यहॉं बेसन के लड्डू मॉं की बतायी मिठाई है जिसकी जगह
पहले किसी और मिठाई ने ले ली थी लेकिन अब वही सबको खिलाया जा रहा है। श्वेता त्रिपाठी
और अनुज सचदेवा फिल्म के कलाकार हैं।
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