मंगलवार, 8 जनवरी 2019

सिम्‍बा

एक निरर्थक किन्‍तु बाजार कब्‍जायी फिल्‍म पर  


" सिम्‍बा का नायक बड़े संघर्षशील जीवन से बड़ा हुआ एक डेशिंग पुलिस अधिकारी है जिसके भाग्‍य में बड़ा आधुनिक थाना है, आय पी एस के टक्‍कर का वाहन है, आसपास चाटुकारिता और चापलूसी करता स्‍टाफ है, रोमांस के लिए थाने के सामने ही रेस्‍त्रॉं और उसकी मालकिन है."
" लेकिन मुझे यह भी लगा कि बचपन में उसको रात्रिकालीन स्‍कूल में जो शिक्षा मिली वह इतनी प्रभावहीन हुआ करती थी कि सुबह उठते ही वह टिकिट की ब्‍लैक मार्केटिंग में लिप्‍त हो जाया करता था। रोहित शेट्टी की कहानी में यह दिलचस्‍प विरोधाभास है........"



अगर सिनेमाहॉल में भरपूर उपस्थिति हो, इतवार के दिन सिंगल स्क्रीन थिएटर में भी भीड़भाड़ दिखायी दे तो उस फिल्म को सुपरहिट मान लेना चाहिए। यदि न मानों तो वो सब लोग जरूर बेवकूफ कहेंगे जो माउथ पब्लिसिटी के साथ औरों को भी सिम्बा देखने को प्रेरित कर रहे हैं और जो प्रेरित है, वो औरों को प्रेरित कर रहे हैं। बहरहाल रोहित शेट्टी की इस साधारण सी बनी फिल्म को फिलहाल दर्शकों की कोई कमी नहीं है और यह सप्ताह भी बॉक्स ऑफिस की गणितबाजी और उसकी बाजीगरी से करोड़ों का कलेक्शन घोषित करते-करते निकल जायेगा।
अब आप रोहित शेट्टी से कोई संवेदनशील या मन में पैठ कर लेने वाली फिल्म की उम्मीद तो वैसे भी नहीं करते। तो वे भी आपसे उस तरह की फिल्म बनाने के लिए कहीं वचनबद्ध नहीं हैं। ये सिम्बा तीसरी फिल्म होगी जो उनके गोवा प्रेम का प्रमाण है। इसके पहले की दो सिंघम वहीं बनायीं थीं उन्होंने। इधर उनको तेलुगु की तीन साल पहले आयी सुपरहिट टेम्पर की कहानी हासिल हुई तो उन्होंने दबंग का कुछ मसाला इस्तेमाल करते हुए सिम्बा बना डाली है।
अजय देवगन के परम मित्र रोहित शेट्टी ने पिछली फिल्मों से अपेक्षाकृत नये सितारे रणवीर सिंह पर दाँव आजमाते हुए भी बॉक्स ऑफिस का कोई जोखिम नहीं लिया है और देवगन के लिए आखिरी पन्द्रह मिनट बाकायदा दर्शक का तेवर बदलने के लिए रखे हैं, यहीं वे निरीह रणवीर सिंह के साथ धोखा कर देते हैं। शुरू से ही कहानी को गड्डमड्ड करते चले रोहित ने आखिरकार इस नायक को अन्त में ऐसी स्थिति में ला खड़ा किया कि वहाँ वह खुद न समझ पायें कि आगे किया क्या जाये! ऐसे में यह जगह अजय देवगन को हीरो बना देने के लिए काम में ले जी गयी। इन बाद के दृश्यों में रणवीर सिंह का चेहरा अभिनय करते हतोत्साहित दीखता है। ऐसा लगता है कि गन्तव्य तक रेल ले आने वाले ड्रायवर को हटाकर दूसरा ड्रायवर बैठा दिया गया कि अब यार्ड में गाड़ी वह ले जायेगा।
आरम्भ में जिस तरह के संकेत लिखते हुए दिये, सिम्बा ऐसा पूत बताया गया है जिसके पाँव पालने में ही दिख जाते हैं। छः-सात साल के लड़के का आत्मविश्वास गजब का है और अभय भी ऐसा कि सब बस उसे उसकी उम्र से बड़े डायलॉग बोलते देखकर हतप्रभ टाइप रह जाते हैं। यही फिल्म का नायक है जो इन्स्पेक्टर बन गया है और पैसों के लेनदेन और अपनी बेईमानी से कुख्यात है। औपचारिकता के लिए नायिका भी है सारा अली जो केदारनाथ में फिर भी कुछ करती दिखायी देती हैं, यहाँ उनकी ताजगी और क्षमता का उपयोग किया ही नहीं गया। सोनू सूद एक बुरे आदमी के किरदार में पूरे समय अविश्वसनीय और भ्रमित ही लगे हैं। अमर मोहिले का बैकग्राउण्ड म्युजिक सब मूर्खताओं और फूहड़ताओं को दर्शकों के मस्तक पर सील-ठप्पे की तरह जड़ता चलता है। बोझिल भावनात्मकता और निर्भया काण्ड से जुड़ी मानवीय दलीलें देकर किसी तरह फिल्म को पूरा कर लिया गया है।
सिम्बा के नायक के रूप में रणवीर सिंह अण्डरएस्टीमेटेड हीरो साबित हुए हैं। उनका अपीयरेंस, कॉमेडी दृश्य और डाँस उनको कुछ अधिक सड़कछाप चरित्र के नजदीक ले जाते हैं जबकि इतना ज्यादा किरदार हो जाने की जरूरत है नहीं। आशुतोष राणा हवलदार की भूमिका में थके थके से लगते हैं। थाने में साथियों को ललकारने के उनके दृश्य भी बड़े कमजोर साबित होते हैं। दर्शकों की आँखों को रंगीन ठहराव देने के लिए रखे गये गाने में बहुत सारी महिलाएँ कलरफुल साड़ी पहनकर डाँस करती हैं और इसी तरह धोबी घाट का दृश्य भी नायक की आमद को बचकाना साबित करता है।
निर्देशक बहुत सारे कलाकारों को बतौर अतिथि यहाँ पिछली दूसरी फिल्मों के गानों के दोहराव में ले आता है जैसे करण जौहर, तुषार कपूर, अरशद वारसी, श्रेयस तलपड़े आदि। अन्त में अक्षय कुमार के साथ अन्तिम दृश्य भी कमजोर विद्यार्थी के लिए लगाये गये अनेक सोर्स से आगे का एक सोर्स साबित होता है। हिन्दी के दुश्मन मुम्बइया फिल्मकार अक्षय कुमार को एटीएस चीफ प्रोजेक्टर कर रहे हैं लेकिन बैच पर नाम में सरनेम सूर्यवंशी की जगह सुर्यवंशी लिखा है। अब जब यह फिल्म आयेगी तब बार-बार अक्षय कुमार की छाती पर लगे इस बैच में प्रूफरीडर स्वभाव के कारण करेक्शन करने का मन करेगा।