मंगलवार, 21 मई 2019

जातक कथा आधारित नाटक - वृत्ति नाशक

प्राणी आचरण वृत्तियों के विपरीत 

पर मनुष्य वृत्तियों की शिकस्त में

 


तथागत बुद्ध के अनन्य जन्मों के साथ जुड़ी जातक कथाओं का संसार विहँगम है। वे इनके माध्यम से आदिकाल से मनुष्य के लिए कोई न कोई सीखकोई न कोई प्रेरणा देते है। मनुष्य जीवन की निष्फलता के पीछे कितने कारणकैसी स्थितियाँकैसा स्वभाव उत्तरदायी हैइसका नैतिक बोध मनुष्य को कभी नहीं होता। यदि होता तो अपना जीवन संवारने के लिए महापुरूषों का जीवनउनकी वाणीउनके आचरण को नजरअंदाज न किया जाता। तथागत बुद्ध ने सृष्टि में विचरण करने वाले अनेक हिसंक जीवों की योनि में भी जन्म लिया लेनिक वह प्राणी जीवन जीते हुए उन्होंने वृत्ति प्रवृत्ति के विपरीत संत और ऋषि मुनियों सा आचरण प्रस्तुत किया जो आज भी प्रेरणीय है।

जनजातीय संग्रहालय, भोपाल में तथागत बुद्ध की जातक कथाओं पर आधारित नाट्य प्रयोगों का समारोह यशोधरा का आज समापन चुलनन्दीय जातक पर आधारित नाट्य वृत्ति नाशक के मंचन से 20 मई को हुआ। इस प्रस्तुति में लगभग तीस से अधिक कलाकारों ने हिस्सा लिया। आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा आयोजित यशोधरा समारोह में यह प्रस्तुति बैले नाट्य की प्रतिष्ठित संस्था अर्घ्य कला समिति ने एक माह से अधिक समय के पूर्वाभ्यास में तैयार की थी। 

वृत्ति नाशक नृत्य नाट्य प्रस्तुति की कोरियोग्राफिक परिकल्पना व निर्देशक वैशाली गुप्ता ने किया था जबकि मूल जातक कथा का बैले नाट्य रूपान्तर सुनील मिश्र ने किया था। यह प्रस्तुति वाराणसी में ब्रम्हदत्त के राज्य के समय हिमालय में नन्दीय एवं चुलनन्दीय नाम के दो बन्दर भाइयों की कहानी है जो अस्सी हजार बन्दरों के राजा थे और अपनी वृद्ध माँ के साथ जंगल में रहकर प्रजा का पालन करते थे। जब रहने वाले स्थान में भोजन और पानी का संकट आया तो वे अपनी माँ को हिफाजत से एक जगह छुपाकर दूर दूसरे स्थान पर सबको ले गये जहाँ खाने-पीने के लिए अथाह प्राकृतिक और वानस्पतिक सम्पदा थी। 

दोनों भाई अपनी प्रजा के तीन-चार साथियों के माध्यम से नियमित रूप से अपनी माँ के लिए खाद्य सामग्री, फल वगैरह भेजकर निश्चिंत हो जाया करते थे। उनको नहीं पता था कि वे दुष्ट बन्दर रास्ते में सबकुछ खा जाते हैं और माँ भूखी-प्यासी हड्डी का ढांचा बनकर रह गयी है। एक दिन जब वे इस बात को जान पाते हैं तो अपने साथियों से अलग हो जाते हैं और दल को छोड़ देते हैं और अपनी माँ की सेवा का संकल्प करते हैं। कुछ दिन अच्छे से व्यतीत होते हैं कि एक व्याघ्र, शिकारी की दृष्टि उन पर पड़ती है। वह नन्दीय और चुलनन्दीय की माँ को मारकर शिकार करना चाहता है। इस पर नन्दीय आकर उसको रोकता है और कहता है कि बूढ़ी, रुग्ण और अंधी माँ को मारकर क्या होगा, उसे जीवित रहने दो भले मुझे मार लो। व्याघ्र नन्दीय पर तीर चलाकर उसे मार देता है और फिर बूढ़ी माँ पर तीर तान देता है। तब चुलनन्दीय आकर अपने को प्रस्तुत करता है। निर्मम व्याघ्र उसे भी मारकर फिर वृद्ध बन्दरिया को भी मार देता है। जब वह तीनों को मारकर घर ले जाता है जो अपने घर में हुए वज्रपात से उसका दिल काँप उठता है, वह देखता है कि घर जलकर खाक हो गया है और आग में परिवार भी समाप्त हो गया, वह बचाने गया तो वह भी। यह शिकारी वाराणसी का छात्र था जो तक्षशिला में ज्ञान प्राप्त करने गया था मगर अपने दुष्ट आचरण की वजह से निष्काषित कर दिया गया था। उसके बाद वह ऐसी हिंसक वृत्ति का हो गया। लेकिन उसको अपनी करनी का फल मिला। 

जातक कथाओं की प्रेरणाएँ अनन्त हैं। तथागत बुद्ध के अनेक जन्मों की कथा जिनमें वे अलग-अलग प्राणी के रूप आये, अनेक हिंसक प्राणियों की योनि में जन्म लेकर भी वृत्ति के विपरीत करुणा, संवेदना और आपसी साहचर्य का स्वभाव और जीवन जीकर आदर्श स्थापित किया और कृतघ्न मनुष्य को सीख दी। मनुष्य इन जातक कथाओं के मर्म को जाने तो वह आज भी अपने जीवन को सँवार सकता है और अपने होने को धन्य कर सकता है। वैशाली गुप्ता ने इस प्रस्तुति का तानाबाना बड़े और बाल कलाकारों के साथ मिलकर कुशलता के साथ बुना और अनेक सुन्दर और मर्मस्पर्शी दृश्यबन्धों के माध्यम से मंच पर प्रस्तुत किया। जंगल में विभिन्न प्राणियों के बीच आपसी प्रेम, सद्भाव और समरसता को नाटक में प्रस्तुत किया गया। नन्दीय और चुलनन्दीय के पिता महानन्दीय और उनके मित्र घोटक (वनमानुष) की परिकल्पना व्याघ्र की प्रवृत्ति का घोर प्रतिवाद है जिसने प्रस्तुति को एक अलग प्रभाव दिया। 

कलाकारों में प्रथम भार्गव नन्दीय, समक्ष जैन चुलनन्दीय, मेघा ठाकुर बूढ़ी माँ, भगत सिंह घोटक, हर्ष राव व्याघ्र, निधि वत्स व्याघ्र की पत्नी के रूप में प्रमुख भूमिकाओं में हैं जबकि पक्षियों और प्राणियों की भूमिकाओं में कृष्णा, किरण, हनी, अमृत कौर, देवांग, निमित, आनंदी, हितैषी, निमित आदि। संगीत परिकल्पना सुश्रुत गुप्ता की है। गीत संयोजन भी उन्हीं का। यह नाटक समान रूप से बड़ी उम्र के दर्शकों के साथ बच्चों के लिए भी प्रेरक है। 

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