रविवार, 5 फ़रवरी 2017

जीवन का मिलान........

ठीक-ठीक नहीं बता पाता, बहता किस तरह हूँ। बहना मेरे लिए उस तरह का रूमान शायद नहीं रहा है कि बाँह फैलाये डूबने के डर के बिना बह रहा होऊँ। मैं उस पूरे समय में जब बह रहा होता हूँ तैरने की चेष्टा नहीं करता। हो सकता है एक बड़ा सा आलस्य जिसे बहुत बार उपेक्षा की तरह भी ग्राहृय होते देखा है, इसका हिस्सा रहा हो। मुझे अपने वेग की चिन्ता जरूर रही है। इस बात की प्रतीति बनी रही है कि वेग अन्ततः मुझे मेरी चोट के लिए भी उत्तरदायी बनायेगा। मेरी मुट्ठी में कोमल रुमाल अपनी सलवटों और घुटन के बाद भी मुझे भरोसा देता है। 

मैं कागजों में एक-एक करके घटते समय को देखा करता हूँ। प्रत्येक दिन हस्ताक्षर करते हुए, पीछे किए हस्ताक्षरों से कुछ जीवन का मिलान करने का मन होता है। कभी हार कर, कभी साथ और पास में रखे हुए, कभी संचित के भरोसे से तो कभी कुछ भी अर्जित न हो पाने की निराशा के बीच भी मेरी धड़कनों का नाप सही रहा है। मुझे लगता है वो सब मेरे पास, दूर से मेरी नब्ज को थामे हुए हैं, शायद उस समय या उस दिन के बाद से यह ज्यादा ही हो गया है, पीछे मुड़कर देखता हूँ तो जैसे कल ही मेरी काया खण्डित हो गयी हो और नब्ज को छूने वालों ने आपस में ही एक-दूसरे के हाथ तक अपना हाथ कर दिया हो, एक-दूसरे के विखण्ड को और धराशायी होने से रोकने के लिए...........एक का हाथ दूसरा पकड़ता है, दूसरे का तीसरा और सबमें बँटा एक जीवन, सबमें ही आता-जाता है। 

स्वप्न बहुत अधूरी और मिथ्यानींद में भी निस्तब्धता में दौड़ती सुनायी देती एम्बुलेंस और किंचित पीड़ाओं या अव्यक्त व्यथाओं में विलाप करते श्वानों के प्रभाव में अपनी पटकथा बदलने को होते हैं। बहुत देर से जागना एक आदत या स्वभाव ही है लेकिन बहुत देर में जागने पर अकेलापन जीवन में स्थायीभाव की तरह आया जा रहा है...........सम्भवतः अपने जागने के समय पर अपना सवेरा घोर अप्राप्ति में प्राप्ति का भ्रम ही है...........

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