शुक्रवार, 1 जून 2018

मध्यप्रदेश में सिनेमा : यहाँ बनी फिल्‍मों से जुड़ा इतिहास और स्‍मृतियाँ



मध्यप्रदेश राज्य नैसर्गिक सम्पदा, ऐतिहासिक विरासत, अमर कथाओं और घटनाक्रमों की अविस्मरणीय और कालजयी थाती को समेटे ऐसे प्रदेश के रूप में अपनी पहचान रखता है जिसकी खूब देश-दुनिया को आकृष्ट करती है। कितने ही कलाकारों ने अपनी सर्जना में मध्यप्रदेश को समाहित किया है। चित्रकारों ने चित्र, शिल्पकारों ने शिल्प, संगीतकारों ने साधना और फिल्मकारों ने यहाँ की धरोहरों और स्थानों को अपने भव्य और महँगे कैमरों से देखा है और फिर यह सब नजारा देश और दुनिया के सामने आया है। यह सचमुच विशिष्ट है कि पिछले पचास से भी ज्यादा वर्षों में मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक विरासत अपनी मौलिक छायाछबियों में इस तरह प्रकाशमान हुई है कि दुनिया के अनेक देशों के पर्यटक, सैलानी, संस्कृतिप्रेमी यहाँ वर्ष भर आते-जाते रहते हैं। यह अनूठे सांस्कृतिक संयोग हैं कि मध्यप्रदेश की ऐतिहासिक विरासत, पर्यटन स्थलों पर संस्कृति के श्रेष्ठ उपक्रमों की पहचान न केवल जुड़ी हुई है बल्कि बरसों-बरस इतनी समृद्ध हो गयी है लोग ग्वालियर में तानसेन समाधि परिसर से तानसेन समारोह को, खजुराहो के कालजयी स्थापत्य और मन्दिरों को नृत्य समारोह से, मैहर को उस्ताद अलाउद्दीन खाँ संगीत समारोह से, पचमढ़ी को पचमढ़ी उत्सव से, माण्डू को माण्डू महोत्सव से, भोजपुर को भोजपुर महोत्सव से, साँची को महाबोधि उत्सव से, इन्दौर को अमीर खाँ समारोह से, उज्जैन को अखिल भारतीय कालिदास समारोह से, जबलपुर भेड़ाघाट को नर्मदा महोत्सव से, चित्रकूट को शरदोत्सव से पहचानते हैं, याद करते हैं और ऐसे अवसरों का साक्षी और प्रेक्षक बनने के लिए देश-दुनिया से मध्यप्रदेश आते हैं। 

अभी हाल ही में एक दिलचस्प संयोग देख रहा हूँ। नेशनल फिल्म अवार्डों की घोषणा हुई है। चन्देरी पर बनी श्रेष्ठ प्रमोशनल फिल्म को पुरस्कृत किया गया है जिसे गुणी फिल्मकार राजेन्द्र जांगले ने बनाया है। जांगले पाँचवीं बार अपनी किसी फिल्म के लिए नेशनल अवार्ड से सम्मानित हुए हैं। दिलचस्प यह है कि इसी बीच चन्देरी मुम्बई के बड़े निर्माण घरानों की निगाह में आया है। बैजू बावरा का इतिहास तो चन्देरी के नाम से अमर है ही, यहाँ की साड़ियाँ भारतीय परम्परा में उत्कृष्ट निर्माण और बुनावट के कारण देश-दुनिया में महिलाओं के लिए अनूठा पहनावा और चयन है। अभी पिछले चार माह में चन्देरी में दो फीचर फिल्मों का बड़ा हिस्सा शूट किया गया है। ये फिल्में हैं सुई धागा जो यशराज घराने की एक बड़ी फिल्म है। इसमें वरुण धवन और अनुष्का शर्मा काम कर रहे हैं। शरत कटारिया इसके निर्देशक हैं। दूसरी फिल्म है स्त्री जिसमें राजकुमार राव की अहम भूमिका है जिनको न्यूटन फिल्म के लिए नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया है। स्त्री एक हाॅरर काॅमेडी जिसमें उनके साथ श्रद्धा कपूर काम कर रही हैं। अमर कौशिक इस फिल्म के निर्देशक हैं। इस तरह अचानक फिल्मकारों का चन्देरी को एकाग्र करना जितना दिलचस्प है उतना ही अहम भी। 

भोपाल, मध्यप्रदेश की राजधानी है। राजधानी और इसके आसपास के क्षेत्रों में भी लम्बे समय में अनेक महत्वपूर्ण फिल्मों का निर्माण हुआ। विशेष रूप से दो बड़ी फिल्मों का जिक्र जरूर किया जाना चाहिए जिनमें एक मर्चेण्ट आयवरी प्रोडक्शन्स की इन कस्टडी है जिसको उर्दू में मुहाफिज़ नाम दिया गया था। इस फिल्म में शशि कपूर, शाबाना आजमी, ओम पुरी, नीना गुप्ता आदि ने अहम भूमिकाएँ निभायीं थी। यह गुमनामी के शिकार एक शायर पर केन्द्रित थी। इस फिल्म का प्रदर्शन काल 1993 का है। भोपाल में एक महीने से भी ज्यादा समय तक इस फिल्म का बनना अपने आपमें शहर के लिए उपलब्धि था। पुराने भोपाल के अनेक स्थल गौहर महल, सैफिया काॅलेज, मोती मस्जिद, हाथी खाना आदि स्थानों पर इसका फिल्मांकन हुआ। हास्य अभिनेता जगदीप को एक बड़ी पहचान शोले फिल्म के सूरमा भोपाली किरदार से मिली थी। बाद में उन्होंने 1998 में इसी नाम से एक फिल्म बनायी तो उसके कई हिस्से और एक गाना फिल्माने वे भोपाल आये। इस फिल्म में जगदीप ने अनेक बड़े सितारों को मेहमान कलाकार के रूप में शामिल किया था। इसी प्रकार 2003 में अपनी फिल्म मकबूल बनाने विशाल भारद्वाज भोपाल आये जब रंगकर्मी और प्रसिद्ध आर्ट डायरेक्टर जयन्त देशमुख ने उनको इस फिल्म के मिजाज और व्यवहार के दृष्टिगत लोकेशन भोपाल सुझायी। इम्पीरियल सेब्रे होटल में लम्बे समय इस फिल्म की शूटिंग चली, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, इरफान, पंकज कपूर, पीयूष मिश्रा, तब्बू जैसे कलाकार यहाँ आये और रहे। 

भोपाल में ही गुलजार ने सुनील शेट्टी और तब्बू के साथ हू तू तू फिल्म बनायी। सुधीर मिश्रा ने हजारों ख्वाहिशें ऐसी फिल्म बनायी। विजयपत सिंघानिया ने वो तेरा नाम का एक बड़ा हिस्सा शूट किया। मणि रत्नम ने भी शूल और युवा फिल्मों को शहर में फिल्माया है। समानान्तर सिनेमा आन्दोलन के एक प्रमुख फिल्मकार प्रकाश झा जो दामुल, हिप हिप हुर्रे और मृत्युदण्ड से प्रतिष्ठित हुए, एक समय निर्णय करके भोपाल में 2009 में राजनीति के नाम से अपनी अगली फिल्म बनाने आये। नाना पाटेकर, नसीर, मनोज वाजपेयी, अजय देवगन, रणवीर कपूर, अर्जुन रामपाल, कैटरीना कैफ आदि अनेक बड़े सितारों के साथ उन्होंने यह खर्चीली फिल्म बनायी। इस फिल्म ने उनको जो लाभ दिया उसके बाद वे एक के बाद एक अनेक फिल्में यहाँ रहकर बनाते गये जिनमें आरक्षण, सत्याग्रह, चक्रव्यूह, जय गंगाजल आदि प्रमुख हंै। चक्रव्यूह के बड़े हिस्से के लिए झा ने पचमढ़ी लोकेशन भी चुनी थी। हालाँकि जिस क्रम और हड़बड़ी में वे बाद में काम करते गये, उनकी लगातार विफल होती फिल्मों ने फिलहाल कुछ समय के लिए उनको अवकाश लेने पर भी विवश कर दिया। 2012 के आसपास भोपाल के ही चर्चित फिल्म पटकथाकार और निर्देशक रूमी जाफरी ने अपने शहर में गली गली चोर है नाम की फिल्म का निर्माण किया। इसके बाद अनिल शर्मा एक फिल्म सिंह साहेब द ग्रेट बनाने 2013 में भोपाल आये। सनी देओल, प्रकाश राज इस फिल्म के अहम कलाकार थे। 

इधर एक ओर नासिर हुसैन जैसे एक बड़े निर्माता के नाम से भोपाल शहर की पहचान जुड़ती है, वहीं उनके वंश के होनहार फिल्मकार, अभिनेता आमिर खान ने भोपाल से कुछ किलोमीटर दूर एक गाँव में पीपली लाइव फिल्म का निर्माण किया। इस फिल्म को बड़ी चर्चा मिली थी। राजधानी का सिनेमा के हब के रूप में विकसित होना एक बड़ी बात रही है। राजधानी से आगे चलें तो पूरे मध्यप्रदेश में फिल्म निर्देशकों ने अनेक मनोरम स्थलों का चयन किया जो पर्यटन के लिहाज से भी उल्लेखनीय हैं। मणि रत्नम का दो फिल्में बनाने मध्यप्रदेश आने के बाद रावण बनाने ओरछा आना अहम है। समीर कर्णिक ने महेश्वर आकर यमला पगला दीवाना बनायी जिसमें धर्मेन्द्र, सनी देओल और बाॅबी देओल ने साथ काम किया। पचमढ़ी में प्रकाश झा ने चक्रव्यूह बाद में बनायी पहले प्रदीप कृष्ण नेशनल अवार्ड विनिंग फिल्म मैसी साहब बना चुके थे रघुवीर यादव और अरुंधति राय को लेकर। उन्होंने पचमढ़ी में ही एन इलेक्ट्रिक मून फिल्म भी बनायी। यहीं पर विख्यात अभिनेता, निर्देशक अमोल पालेकर ने थोड़ा सा रूमानी हो जायें फिल्म पूरी ही बनायी जो लगभग एक मर्मस्पर्शी कविता की तरह है। इसमें नाना पाटेकर, विक्रम गोखले, अनिता कँवर ने काम किया था। एन. चन्द्रा की फिल्म नरसिम्हा और सोहेल खान की फिल्म प्यार किया तो डरना क्या के सुपरहिट गाने हम से तुम दोस्ती कर लो और तुझे प्यार है मुझसे बोल दे भी इन्दौर में शूट किए गये। 

पुरानी स्मृतियों में समय-समय पर अनेक यादगार फिल्मों की शूटिंग होने और एक से बढ़कर एक सितारों के मध्यप्रदेश आगमन की बातें स्थायी उल्लेख में मिलती हैं। मध्यप्रदेश के साथ यह भी रहा है कि यहाँ से एक से बढ़कर एक कलाकार सिनेमा और मनोरंजन की दुनिया में समय-समय पर शीर्ष हस्ताक्षर हुए हैं। हम बड़े गौरव के साथ जाॅनी वाकर, सलीम खान, जावेद अख्तर, जया बच्चन, गोविन्द नामदेव, पण्डित रघुनाथ सेठ, किशोर कुमार, लता मंगेशकर आदि का नाम लेते हैं। एक समय में जाॅनी वाकर जो कि इन्दौर से मुम्बई गये थे, गुरुदत्त के निमंत्रण पर, वे अक्सर दिलीप कुमार, नौशाद आदि अपने मित्रों के साथ भोपाल और आसपास के क्षेत्रों में पिकनिक मनाने आते थे। ऐसी ही एक भोपाल यात्रा में दिलीप कुमार ने शकीला बानो भोपाली कव्वाल का गाना सुना था और उनको मुम्बई फिल्मी दुनिया आने का निमंत्रण दिया था। दिलीप कुमार के साथ भी मध्यप्रदेश की स्मृतियाँ बहुत पुरानी जुड़ी हैं। 1952 में फिल्मकार मेहबूब खान की फिल्म आन के एक गाने का फिल्मांकन इन्दौर में हुआ था, जहाँ एक शानदार बग्गी में दिलीप कुमार और नादिरा के साथ एक गाना, दिल में बसा के प्यार का तूफान ले चले फिल्माया गया था। इसी प्रकार होशंगाबाद के निकट बुदनी में 1957 में नया दौर फिल्म का क्लायमेक्स फिल्माया गया था। साथी हाथ बढ़ाना गाने के साथ हुई तांगा दौड़ में दिलीप कुमार के साथ जीवन, वैजयन्ती माला और जाॅनी वाकर ने भी हिस्सा लिया था। यादगार फिल्म दिल दिया दर्द लिया 1966 में बनी थी। इसकी शूटिंग माण्डू और उसके निकट के अनेक हिस्सों में हुई थी। भारत भूषण और निरुपा राय की फिल्म रानी रूपमति माण्डू में फिल्मायी गयी। माण्डू में ही गुलजार ने किनारा फिल्म के खूबसूरत और मर्मस्पर्शी प्रसंगों का फिल्मांकन किया था वहीं रतलाम के सैलाना में निर्देशक राजकुमार कोहली ने धर्मेन्द्र और शत्रुघ्न सिन्हा के बीच तलवारबाजी के दृश्य जीने नहीं दूँगा फिल्म के लिए शूट किए थे। 

हम हैं राही प्यार के, हम से कुछ न बोलिए......देव आनंद के इस गाने के फिल्मांकन के साथ ही इन्दौर-महू की याद हो आती है। इस गाने के पहले सवारी के लिए आवाज लगाते इन्दौर रेल्वे स्टेशन के पास देव आनंद, इन्दौर-महू साढ़े छः आना बोल रहे होते हैं। फिल्म नौ दो ग्यारह का यह दृश्य और देव आनंद का अन्दाज, जो भी प्यार से मिला, हम उसी के हो लिए कहाँ भुलाया जा सकता है! 

राजकपूर का मध्यप्रदेश से बड़ा लगाव रहा है। राजकपूर की ससुराल रीवा में थी। उनके ससुर करतारनाथ मल्होत्रा रीवा रियासत के डीआईजी थे। राजकपूर की बारात का रीवा आना और उस बारात में अशोक कुमार का आना, इसके साथ एक दिलचस्प घटना यह कि दुल्हन बनी कृष्णा को जब यह मालूम हुआ कि बारात में अशोक कुमार भी हैं तो उनको देखने के लिए ललक के साथ वे अपनी सहेलियों को लेकर घर की छत पर चली गयीं आती हुई बारात में अशोक कुमार को देखने। राजकपूर की अनेक फिल्मों के फिल्मांकन का साक्ष्य मध्यप्रदेश से जुड़ता है। राजकपूर की फिल्म आह जो 1953 का निर्माण है, आखिरी गाना जिसमें तांगा चलाते हुए पाश्र्व गायक मुकेश, तांगे में रोगी बनकर बैठे राजकपूर और छोटी सी ये जिन्दगानी रे चार दिन की जवानी तेरी, हाय रे.......इस गाने के पहले सतना का रेल्वे स्टेशन है और नायक तांगे में बैठकर रीवा जा रहा है। इसी प्रकार 1955 में श्री चार सौ बीस का, मेरा जूता है जापानी गाना जिसमें सड़क मध्यप्रदेश की है और रास्ता मुम्बई को जा रहा है। बासु भट्टाचार्य की फिल्म तीसरी कसम का नायक भी अपनी बैलगाड़ी के साथ मध्यप्रदेश की सड़कों पर दौड़ता है, राजकपूर को दर्शक देखते हैं बीना स्टेशन के पास छोटा स्टेशन कुरवाई जहाँ वो गाड़ीवान के रूप में सवारी के लिए प्रतीक्षारत हैं। यही नहीं 1960 की फिल्म जिस देश में गंगा बहती है में भेड़ाघाट की चट्टानंे और नर्मदा नदी गंगा नदी का प्रतीक बनकर दिखायी देती हैं। ओ बसन्ती पवन पागल गाती हुई नायिका जिसकी भूमिका पद्मिनी ने निभायी है। जब दूर-दराज से सैलानी जबलपुर, भेड़ाघाट और नर्मदा नदी को धुँआधार वेग में देखने आते हैं तो जिस देश में गंगा बहती है को याद न करें, ऐसा हो ही नहीं सकता। 

1963 की फिल्म मुझे जीने दो के निर्देशक के रूप में नाम भले मोनी भट्टाचार्य का गया था लेकिन वह थी पूरी तरह सुनील दत्त के नियंत्रण की फिल्म जो कि इसके निर्माता भी थे। इसकी शूटिंग मुरैना और चम्बल के बीहड़ों में हुई थी जो दस्यु जीवन और उसकी विडम्बनाओं के साथ ही परिस्थितियों के शिकार, बेहतर जीवन की चाहत रखने वाले इन्सान की बेबसी को चित्रित करती है। यह एक सशक्त फिल्म थी जिसमें सुनील दत्त ने अपने जीवन की उत्कृष्ट भूमिका निभायी थी। वहीदा रहमान इस फिल्म की गरिमामयी नायिका जिन पर फिल्माये गीत, नदी नारे न जाओ श्याम पैंया पडूँ, रात भी है कुछ भीगी-भीगी में उनकी असाधारण नृत्य प्रतिभा, कथक का प्रभाव और लच्छू महाराज की कोरियोग्राफी भुलाया नहीं जा सकता। 

समृद्ध इतिहास से लेकर उपलब्धियों भरे वर्तमान के बीच भोपाल में 1985 में फिर आयी बरसात फिल्म की शूटिंग के समाचार अखबारों में खूब आया करते थे। यह भी कि नायक सुनील लहरी भोपाल के ही हैं। जयप्रकाश के विनायक इस फिल्म के निर्देशक थे जिसमें नायिका बनी थीं अनुराधा पटेल। बाद में सुनील लहरी रामानंद सागर के बहुचर्चित धारावाहिक रामायण के लक्ष्मण के रूप में खूब चर्चित हुए। शाहरुख खान की अशोका इस सदी की पहली बड़ी और चर्चित फिल्म थी जिसके निर्देशक संतोष सिवन ने जबलपुर, खजुराहो, पचमढ़ी आदि से कुछ स्थानों का चयन फिल्मांकन के लिए किया था। करीना कपूर इस फिल्म की ग्लैमरस नायिका थीं। ऐसे ही दो साल पहले आशुतोष गोवारीकर ने अपनी फिल्म मोहेन्जो दाड़ो की शूटिंग जबलपुर और आसपास की। मध्यप्रदेश के पर्यटन स्थलों में प्रसिद्ध ग्वालियर, ओरछा, खजुराहो, माण्डू, पचमढ़ी, महेश्वर आदि से फिल्मों के अनेकानेक सन्दर्भ जुड़े हैं। कहने का तात्पर्य यह कि भारत का यह हृदयप्रदेश और भारतीय सिनेमा का इतिहास और उसका वर्तमान मिलकर एक ऐसे उल्लेखनीय संयोग को समृद्ध करते हैं जिसका सरोकार हम सबके जीवन और जमीन की उपलब्धियों से जुड़ा हुआ है। अभी हाल ही में लगातार अक्षय कुमार की दो सुपरहिट फिल्में टाॅयलेट एक प्रेमकथा और पैडमेन मध्यप्रदेश में फिल्मांकित हुईं। टाॅयलेट एक प्रेमकथा, सिनेमा के गुणी सम्पादक निर्देशक श्रीनारायण सिंह की पहली निर्देशकीय सफलता थी वहीं पैडमेन, दक्षिण के पारखी फिल्मकार आर. बाल्कि ने बनायी थी। इसके लिए श्रीनारायण सिंह होशंगाबाद, नर्मदा तट, सेठानी घाट आदि जगहों पर होली का एक गाना शूट कर ले गये थे। आर. बाल्कि ने पैडमेन के निर्माण में महेश्वर के नर्मदा तट का खूबसूरत उपयोग किया, वहाँ अक्षय कुमार खूब सायकिल चलाते हुए दिखायी देते हैं। 

देखा जाये तो इस पूरी नयी सदी के ये लगभग दो दशक मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक निर्माण की दृष्टि से बहुमूल्य रहे हैं। जिस तरह से मध्यप्रदेश का विकास किया हुआ है। पथ मार्ग से यह राज्य पास-पड़ोस के सभी राज्यों से सुगमतापूर्वक जुड़ता चला गया है। यहाँ की यात्रा सुगम है, दिन-रात सड़क मार्ग पर लम्बी यात्रा निर्भय होकर की जा सकती है। मध्यप्रदेश के शहर जागते हुए हैं जहाँ लोगों की उपस्थिति से उनको पहचान मिली है। मध्यप्रदेश का आतिथ्य, मनोरम स्थल, आवभगत, सहयोग-सहायता और सांस्कृतिक सहभागिता और सरोकारों में प्रत्येक आने वाले के अनुभव उनकी यादगार रहे हैं। 

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