गुरुवार, 12 नवंबर 2015

आठ

गहरी नींद में निरन्तर जागते रहने की अवस्था का पता नहीं है लेकिन ऐसा लगा करता है कि बहुत जागकर नींद में सपनों के साथ रहना असहज बनाये रखता है। न जाने कौन कितनी तरहों के चेहरों के साथ सामने आता है और उसकी उपेक्षा करना सम्भव नहीं हो पाता। उसको देखते रहना, कितनी ही कठिनाई से उसको सहन करना होता है प्रायः। वह करना पड़ता है। सपनों में कई बार चरित्र किले से धराशायी हो जाया करते हैं। सपनों में आगे बढ़ती कथा, व्यतीत को विस्मृति में धकेलकर आगे बढ़ जाती है। यह सब अपने सामने घटित होता देखना होता है। मैं अक्सर तुमको याद करके नहीं सोया करता हूँ लेकिन तुम्हारा आना, अपनी गहरी नींद में बखूबी जागते हुए इसी विरोधाभास से जूझना और इसे हल करने का विफल प्रयत्न करना होता है। स्मृतियों के किवाड़ और कुण्डियाँ जैसे खुले पड़े होते हैं। ऐसा लगता है कि कोई चटखनी लगाना भूल गया है। आले में कुछ सामान रखा हुआ है। अल्मारियों में पुरानी किताबों के भीतर अब भी मोर पंख और तुम्हारी तस्वीर रखी है। वही सीढि़याँ भूल आया हूँ जिनके सहारे यहाँ तक चढ़कर आया था। अब यहाँ से लौटना चाहता हूँ और वे सीढि़याँ दिखायी नहीं देतीं। इन्हीं बेचैनियों में जैसे एक चरम पर जाकर कहानी अधूरी रहेगी और नींद खुल जायेगी। नींद खुलने के बाद इत्मीनान से कौन सोया है भला......................!!!

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