गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

अनुपम वाणी में मर्म तक उतर जाने की क्षमता थी.........

हमारे आदरणीय और देश के विद्वान आलोचक डॉ विजय बहादुर सिंह जी का अनुपम मिश्र पर लगभग आधे पेज का आलेख आज सुबह, भोपाल के अखबार सुबह सवेरे में पढ़ा। दो दिन पहले नयी इण्डिया टुडे भी लाया था, उसमें अनुपम भाई साहब पर सोपान जोशी का एक पेज का लेख छपा था, उसे भी पढ़ा। उसके पहले आदरणीय श्री ओम थानवी की वाल पर जाकर उनकी लिखी टिप्पणियाँ भी पढ़ता रहा था। कितनी तरहों से, कितने गुणी और संजीदा लेखकों, विचारकों और जानकारों ने अनुपम जी को लिख-लिखकर याद किया है, याद कर रहे हैं, याद करते रहेंगे। इन टिप्पणियों में वह खिंचाव है जो अपने अव्यक्त में मानो यह कह रहा है, कौन कहता है कि तुम चले गये हो, तुम कहीं नहीं गये हो, सबमें तो हो, तुमको कौन जाने देगा................

आदरणीय ओम थानवी जी ने उस आखिरी रात पर लिखा था जिसकी सुबह ने व्याकुल करके रख दिया था। सोपान जोशी की टिप्पणी में वह बात कितनी अच्छी लिखी है कि कभी-कभी कुछ ऐसे मानसिक रोगी अनुपम जी के पास आते थे जिनको उनके अपने घर परिवार ने तज दिया होता था, अनुपम जी उनसे बात करने के लिए गम्‍भीर से गम्भीर मंत्रणा तक छोड़कर उनसे कुछ खुफिया बात करने बाहर चले जाते। जब वापस आते तो याद दिलाते, मानसिक असन्तुलन एक लॉटरी है, किसी भी दिन, किसी की भी खुल सकती है........

डॉ विजय बहादुर सिंह ने लेख में उस समय जब वे पं. भवानी प्रसाद मिश्र रचनावली पर गहरा काम करने में जुटे थे, एक लम्बा संवाद अनुपम जी से चाहते थे जिसका मौसम ही नहीं बन रहा था। लेख में उन्होंने याद किया कि अनुपम के बड़े भाई अमिताभ ने उनसे कहा था कि वो बातें शुरू करेगा तो बमुश्किल उसकी बातें खत्म होंगी। विजय बहादुर जी ने भवानी दादा की एक कविता की पंक्ति को अनुपम जी के साथ इस तरह उल्लेख में याद किया है कि भवानी दादा ने कहा था कि हर व्यक्ति/ फूल नहीं हो सकता/ किन्तु खुश्बू सब फैला सकते हैं........अनुपम वाणी में मर्म तक उतर जाने की क्षमता थी.........

अनुपम भाई साहब के साथ कई बार मिलना याद आता है, वहीं पिछले एक साल न मिल पाना झुंझलाहट भी देता है, जो कि अब वह भी किसी काम की नहीं रही। वही उनका कहना कि केवल हमें भर देखने के लिए यहाँ तक आने की जरूरत नहीं है...........वे बस ऐसे ही हालचाल लेने/पूछने का मन होने पर फोन किया करते थे। वे एक छोटे से पास पड़े कागज पर घर का पता लिख देने को कहते थे और फिर गांधी मार्ग का चन्दा जमा करके अंक भिजवाना शुरू कर देते थे। किताबों की पार्सल-पै‍किंग में उनकी सफाई, बच रह गये कागज, पुट्ठे-गत्ते के टुकड़े और ऐसी ही अनेक चीजों का इस सृृष्‍टा के पास पुनर्जीवन का मंत्र था। ऐसा सृृष्‍टा कहाँ जा सकता है, कहीं नहीं......आपको कौन जाने देगा भाई साहब...........#anupammishra #gandhishantipratishthan 

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