शनिवार, 1 दिसंबर 2018

49वाँ अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह

विश्व का श्रेष्ठ सिनेमा क्यों नहीं बन सका हमारा मानक?


गोवा में 20 नवम्बर से शुरू हुआ 49वाँ अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह इस संकल्प के साथ सम्पन्न हो गया कि अगले साल नवम्बर 2019 में 50वाँ अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह इस तैयारी के साथ मनाया जायेगा जिसमें पिछली बार की अनेक खामियों के लिए पहले से ही सावधान रहा जायेगा, अच्छी तैयारी की जायेगी और जिन त्रुटियों के लिए हमेशा समारोह की आलोचना की जाती है, वे नहीं दोहरायी जायें, इसका प्रयत्न किया जायेगा। भारत में होने वाला सिनेमा का यह सबसे प्रमुख और सबसे पुराना फिल्म समारोह है जिसमें विश्व के अनेक देशों की भागीदारी हुआ करती है। दुनिया के लोग जो भारत के इस विश्व स्तरीय फिल्म समारोह के बारे में जानते हैं या वे फिल्मकार, कलाकार जो लम्बे समय से किसी न किसी रूप में इस समारोह का हिस्सा रहे हैं, वे पूरे साल इसके प्रति जिज्ञासा और कौतुहल बनाये रखते हैं। भारत में भी इसका वही आकर्षण है। यह बात उल्लेखनीय है कि इसी सदी की शुरूआत के तीसरे वर्ष 2003 से यह समारोह स्थायी रूप से गोवा में होने लगा है अन्यथा इसके पहले अन्तर्राष्ट्रीय समारोह एक साल दिल्ली में हुआ करता था और एक साल इसका मेजबान कोई एक राज्य हुआ करता था जिसकी राजधानी में यह आयोजित हुआ करता था। भारत सरकार का सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, उसका फिल्म समारोह निदेशालय इसके प्रमुख आयोजकों में से हैं तथापि अनुषंग रूप में पत्र सूचना कार्यालय, राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम, फिल्म प्रभाग, फिल्म एवं टेलीविजन प्रशिक्षण संस्थान तथा राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार आदि विभाग भी आयोजन अवधि में इस रौनकमन्द माहौल में अपनी-अपनी सार्थकता और कर्तव्य का परिचय देने के लिए सक्रिय दिखायी देते हैं। 

गोवा की गर्मजोशी मेहमानवाजी के कारण इस फिल्म को पिछले वर्षों में एक अलग आकर्षण प्राप्त हुआ है तथापि इस वर्ष राज्य के मुख्यमंत्री की अस्वस्थता का प्रभाव इस समारोह में दिखायी दिया। इस बार स्मृति ईरानी का सूचना एवं प्रसारण मंत्री न होना भी समारोह की फीकी आभा में प्रकट होता रहा। इस बार के समारोह के लिए दुनिया भर से लगभग 220 से अधिक फिल्में समारोह के लिए जुटायी गयी थीं जिनका प्रदर्शन दो-तीन प्रमुख स्थानों आयनॉक्स, कला अकादमी सभागार और अन्य जगहों पर होता रहा। इस समारोह में दुनिया की वे फिल्में भी शामिल की गयी जिनको अवार्ड प्राप्त हुए हैं। इजराइल को विशेष रूप से फोकस किया गया। अन्तर्राष्ट्रीय सिनेमा और भारतीय सिनेमा की श्रेणियों में विविधता के साथ होते रहे इस बार के समारोह में प्रतिदिन सुबह लगभग 9 बजे से प्रदर्शन शुरू हो जाया करते थे और रात लगभग 1 बजे तक फिल्में देखने के अवसर लोगों को हासिल थे। 

अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह की शुरूआत बहुत फीके ढंग से हुई। इसके चमकदार मेहमान अक्षय कुमार और करण जौहर औपचारिक शुभारम्भ हो जाने के बड़ी देर बाद कार्यक्रम स्थल पर पहुँचे। अवसर कुछ था, होने लगा कुछ और जिसमें सबसे हास्यास्पद काफी विद करण टाइप करण जौहर ने स्टेज पर कुर्सियाँ जमवाकर अक्षय कुमार और सूचना एवं प्रसारण मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को बैठाकर उनकी मौखिक परीक्षा ली अति साधारण किस्म के सवालों के साथ। इसी समारोह में सिनेमा की भव्यता को कुछ विदेशी फिल्मों के दृश्यों के साथ प्रकट करने की कोशिश की गयी। सोनू सूद अपना डांस ग्रुप लेकर आये थे, एक साधारण सा प्रदर्शन करके चले गये। ऐसे ही देहगतियों और मलखम्भ टाइप के करतब से एक रोमांच पैदा करने की कोशिश की गयी लेकिन वह फिल्म समारोह के लिए आदर्श प्रस्तुति नहीं थी। 

समारोह की उद्घाटक फिल्म वेनिस की फिल्म द एस्पर्न पेपर्स थी जिसका निर्देशन प्रतिभाशाली युवा फिल्मकार  जूलियन लैण्डेस ने किया था। यह निर्देशक की पहली फिल्म के रूप में प्रदर्शित की जाने वाली विश्वस्तरीय फिल्म थी। उन्नीसवीं सदी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म की मूल प्रेरणा हेनरी जेम्स का एक प्रसिद्ध उपन्यास है। इसी प्रकार समापन फिल्म के रूप में विश्व प्रीमियर का अवसर जर्मनी की फिल्म सील्ड लिप्स के साथ जुटाया गया। बर्न्ड बोलिच की फिल्म सील्ड लिप्स कम्युनिस्ट आन्दोलन को लेकर आकर्षण और उसकी प्रत्यक्षता का साक्षी होने के बाद सोच में बदलाव और मोहभंग की एक कहानी पर आधारित थी जिसमें कैरोलिन इच्छार्न, अलेक्जेण्ड्रा मालिया लारा, रॉबर्ट स्टेंडलोबर आदि ने महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभायी। इसके अलावा प्रतियोगी खण्ड जिसमें कि सर्वोत्कृष्ट फिल्म को स्वर्ण मयूर और चालीस लाख रुपयों का पुरस्कार दिया जाता है, के लिए दस से अधिक भारतीय एवं विदेशी फिल्में शामिल की गयी। इनमें 53 वार्स, द ट्रांसलेटर, एज, इडिवाइन विंड, ए फेमिली टूर, हियर, डॉनबास, अवर स्ट्रगल्स, द मेन्सलेयर, द अनसीन, वेन गॉग्स, व्हेन द ट्रीस फाल, टू लेट, भयनाकम आदि प्रमुख थीं। दिलचस्प यह है कि भारतीय फिल्मों में तमिल फिल्म टू लेट और मलयालम फिल्म भयनाकम फिल्म सम्मिलित थीं, बॉलीवुड की कोई फिल्म इस योग्य शायद नहीं पायी गयी हो या यहाँ तक आने में विफल रही हो। यह प्रसंगवश इसलिए भी लिखना पड़ रहा है कि हाल ही में प्रदर्शित ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान की भारी विफलता से बॉलीवुड छटपटाया हुआ है। काश नकलची और आयडिया चुराऊ फिल्मकार दुनिया के प्रासंगिक, ज्वलन्त और संवेदनशील सिनेमा से थोड़ा-बहुत भी कुछ सीख सकते।


इजराइल की दस से अधिक फिल्मों का प्रदर्शन यहाँ किया गया जिनमें द बबल, फुटनोट, लांगिंग, फ्लोच, द अदर स्टोरी, रेड काऊ, शालोम बॉलीवुड, द अनार्थोडॉक्स, वर्किंग वूमन आदि शामिल थीं। इनमें फ्लोच एक ऐसे बुजुर्ग की कहानी है जिसका बेटा, दामाद और पोता एक दुर्घटना में मारे जाते हैं, इससे उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। वह दूसरी शादी और संतान पैदा करने के लिए व्याकुल है। एक फिल्म लांगिंग एक बड़े अमीर व्यक्ति को ऐसे समय के सामने ला खड़ा करती है जब लम्बे अन्तराल बाद अपनी प्रेमिका से मिलने पर उसको पता चलता है कि उसकी प्रेमिका ने बीस साल पहले उसके बेटे को जन्म दिया था जो हाल ही दुर्घटना में मारा गया है। रेड काऊ का फलसफा दो स्कूली छात्राओं के बीच अन्तरंगता का पनपना है जो आगे चलकर बड़ी घटना को जन्म देती है क्योंकि उसका एक लड़की का विधुर पिता अपनी बेटी को निरन्तर चेताया करता है। शालोम बॉलीवुड- द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ इण्डियन सिनेमा को देखना दिलचस्प अनुभव इसलिए था क्योंकि यह फिल्म दो हजार साल पुराने यहूदी सम्प्रदाय की पिछली पीढ़ी के बॉलीवुड में योगदान को सन्दर्भ के साथ रेखांकित करती है और हम सुलोचना रूबी मेयर्स, जॉन डेविड, नादिरा, प्रमिला आदि कलाकारों के भारतीय सिनेमा में अविस्मरणीय अवदान से अवगत होते हैं। 

फिल्म समारोहों की प्रमुख आलोचना फिल्मों के चयन को लेकर होती है जबकि यह कठिन काम है। लेकिन इसके बावजूद यदि दर्शकों के हिस्से में दो सौ पच्चीस में से पच्चीस-तीस फिल्में ही हिस्से में आयें तो विषय जरा निराशाजनक हो जाता है। इसके बावजूद महान स्वीडिश फिल्मकार इंगमार बर्गमैन की यादगार फिल्मों का पुनरावलोकी समारोह उत्सव का एक बेहतरीन हिस्सा था जिसमें परसोना, फनी एण्ड अलेक्जेण्डर, द सेवन्थ सील, समर विद मोनिका, वाइल्ड स्ट्राबेरीज के प्रदर्शन याद रखे जायेंगे। फेस्टिवल केलिडोस्कोप में कोल्डवार, द गिल्टी जैसी फिल्में समय की गति और यथार्थ को मानवीय समझ और कुण्ठाओं की अलग सतह पर परीक्षा लेती दिखायी देती हैं। वर्ल्ड पैनोरमा में डॉटर्स ऑफ माइन, द हैप्पी प्रिंस, द ब्रा, ब्रदर्स, मग, माय मास्टरपीस, हाई लाइफ, फोनिक्स, द प्राइज, द सीन एण्ड द अनसीन, विण्टर फाइल्स, द ओल्ड रोड, एन एलीफेण्ट सिटिंग स्टिल की देखने वालों ने सराहना की। विशेष प्रदर्शन श्रेणी में ट्यूनीशिया की तीन फिल्में ब्यूटी एण्ड द डॉग्स, डियर सन और व्हिस्परिंग सैण्ड्स का प्रदर्शन किया गया। 


व्हिस्परिंग सेण्ड्स अरब मूल की एक कनाडाई महिला की भावपूर्ण यात्रा पर आधारित थी जो एक संवेदनशील कारण से ट्यूनीशिया आती है। वह स्मृतियों में है, उसके पास राख का एक पात्र है जो वह स्थान विशेष में विसर्जित करना चाहती है। इस यात्रा में उसको वाहन से लेकर चल रहा गाइड दरवेशी अस्तित्व और परम्परा के बारे में अपना दृष्टान्त बतला रहा है जो प्राकट्य स्मृतियों का हिस्सा भी हैं। इस फिल्म को देखकर सिनेमा में सार्थक परम्परा का निर्वहन करने वाले फिल्मकारों को दाद देने को जी चाहता है। इस फिल्म का निर्देशन नासेर खेमीर ने किया था जो कहानीकार, चित्रकार और नैरेटर भी हैं। अपनी अनेक फिल्मों के जरिए उनको दुनिया में ख्याति मिली है। 

अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में दिवंगत कलाकारों को याद किया गया, यह समारोह की परम्परा का हिस्सा है। इस बार विशेष रूप से श्रीदेवी और विनोद खन्ना को उनकी कुछ चुनिन्दा फिल्मों मोम एवं अचानक, लेकिन, अमर अकबर अंथनी के माध्यम से श्रद्धांजलि देने की कोशिश की गयी वहीं शशि कपूर, एम. करुणानिधि, कल्पना लाजमी को भी एक-एक फिल्मों के माध्यम से याद किया गया। करुणानिधि की तमिल फिल्म मलईकल्लन और कल्पना लाजमी की रुदाली फिल्में समारोह के श्रद्धांजलि खण्ड का हिस्सा थीं।
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