शुक्रवार, 1 मई 2020

इधर उनका औघढ़ ऋषि होना बहुत सुहाता था.......


ऋषि कपूर ने छबि से लड़कर किरदार स्‍थापित किए



ऋषि कपूर पिछले कुछ वर्षों से ट्विटर में बहुत जागरुक और सक्रिय उपस्थिति के माध्‍यम से ध्‍यान आकृष्‍ट किया करते थे। न्‍यूयार्क में कैंसर की चिकित्‍सा के लिए जाने तक, फिर वहॉं रहते हुए बीच-बीच में प्राय: और वापस मुम्‍बई लौटकर वे एक बार फिर इस सर्वाधिक लोकप्रिय सोशल साइट पर आया करते। अक्‍सर वे चर्चा में आते किसी भावुक बात को कहकर या किसी से भिड़कर। कभी वे आसपास की विसंगतियों, अपराधों, अमानवीयता, खामियों की घटनाओं से विचलित होकर आड़े हाथों लिया करते तो कभी किसी को भी चैलेन्‍ज देकर ललकारा भी करते। इस तरह उनका ट्विटर अकाउण्‍ट बहुत ही लोकप्रिय और आकर्षक हो गया था। लॉकडाउन की शुरूआत और उसके बाद भी अनुशासन मानने की बात हो, घर रहने की अपील की बात हो अथवा उसके उल्‍लंघन या हिंसा की घटनाऍं हों, वे जिम्‍मेदार भारतीय की तरह अपनी बात कहा करते। अब वह अकाउण्‍ट खामोश हो गया है। हमें अब चिण्‍टू की ओर से कैची ट्वीट पढ़ने को नहीं मिला करेंगे। पता नहीं ऊपरवाले ने किस जल्‍दबाजी में ये खाते बन्‍द कर दिए हैं, एक दिन पहले इरफान चले गये और अब ऋषि कपूर।

अन्तिम विदाई किसी भी व्‍यक्ति के पूरे जीवन का तेजी से पुनरावलोकन मन-मस्तिष्‍क में कराने लगती है। वह व्‍यक्ति यदि रचनात्‍मकता के किसी विशिष्‍ट आयाम से जुड़ा हो तो दिमाग और तेजी से स्‍मृतियों में लौटता है, बहुत सारी आवाजें होती हैं, बहुत कुछ देखने, निकालने, धरने में टूटा और बिखरा करता है। कुछ कुछ जो मिला करता है वह भी हम देख रहे होते हैं और जो बिखर जाया करता है उसे भी देख रहे होते हैं। देख उसे भी रहे होते हैं जो टूट जाया करता है। सिनेमा के कलाकार सितारे कहलाते हैं। उनका अवसान सितारों का अवसान सा होता है सचमुच। हमारे सामने मेरा नाम जोकर का वह वयस्‍क होता चरित्र आ खड़ा होता है जो अपनी टीचर की सुन्‍दरता और उसके शारीरिक सौष्‍ठव में आकर्षण महसूस करता है। उसे टीचर का अपने प्रेमी से रोमांस करना बिल्‍कुल पसन्‍द नहीं है। उसका दिल टूट जाता है। एक चरित्र के टूटते बल्कि बार बार टूटते दिल  की संवेदनशील कहानी राज कपूर ने मेरा नाम जोकर के रूप में बनायी थी जो प्‍यासा, तीसरी कसम और कागज के फूल से मर्मस्‍पर्शी फिल्‍म की तरह ही दर्शकों से अच्‍छे व्‍यावसायिक परिणाम न पा सकी और जिसे दर्शक भी न देख-समझ सके। इस विफलता के बाद ही राज कपूर ने बॉबी बनाकर दर्शकों की उस पीढ़ी से सीधे जुड़ जाने की बहादुरी दिखायी जो वयस्‍क हो रही थी जो प्रेमपत्र तो लिख रही थी लेकिन माता-पिता की इच्‍छा के विरुद्ध बगावत करने का साहस नहीं जुटा पा रही थी। राज कपूर ने ऋषि को नायक बनाकर युवाओं में बहादुरी के आयकॉन की तरह प्रस्‍तुत किया। सिनेमाघर की खिड़की और दरवाजे टूटने तक की विशेष घटनाओं के साथ ही यह फिल्‍म जिस तरह हिट हुई थी उसने तब के नायकों की दूसरी पीढ़ी का भी मार्ग प्रशस्‍त किया और नायक के रूप में ऋषि कपूर स्‍थापित हो गये।

अब देखिए, यह वह समय था जब एक तरफ सलीम-जावेद की पटकथा अमिताभ बच्‍चन नामक सितारे की जमीन बनाने का काम कर रही थी। धर्मेन्‍द्र, सुनील दत्‍त, शशि कपूर, राजेश खन्‍ना, विनोद खन्‍ना, शत्रुघ्‍न सिन्‍हा जैसे बड़े नायक अपना वजूद बनाये हुए थे। इन्‍हीं के समानान्‍तर एक सुन्‍दर सा युवा नायक ऋषि मस्‍ती, उछलकूद, उधेड़बुन और कॉलेज की जिन्‍दगी और प्रेमकहानियों वाले रोमांस के साथ दिलचस्‍प फिल्‍मों में आये चला जा रहा था। रफूचक्‍कर, खेल खेल में, रंगीला रतन जैसी फिल्‍में उस समय की पहचान हैं। यहॉं से आगे जब उनकी प्रतिभा सिद्ध होना शुरू हुई तो फिर यश चोपड़ा, मनमोहन देसाई जैसे निर्देशकों की निगाह ऋषि पर पड़ी। वे फिर बहुल सितारा फिल्‍मों के उस दौर में सोलो हीरो से अलग उन फिल्‍मों का हिस्‍सा बने जिनमें उनसे बड़े सितारे काम किया करते थे। ऐसी फिल्‍मों में कभी कभी, अमर अकबर अंथनी, कुली, दीदार ए यार, नसीब आदि शामिल थीं। ऋषि ने इसी बीच बहुत खूबसूरत म्‍युजिकल फिल्‍मों को भी अपने होने से बड़ी पहचान दी और परिपक्‍व नायकों की कतार में खड़े हुए। कर्ज, हम किसी से कम नहीं, सरगम, दूसरा आदमी, बोल राधा बोल जैसी फिल्‍मों में काम करते हुए उनकी पहचान एक रोमांटिक डांसर एक्‍टर के रूप में खूब फैली जो मॉब का सितारा उनको बनाती चली गयी। 

परदे पर रंग-बिरंगे स्‍वेटर पहनकर नायिका के साथ उनका नाचना-गाना सभी को खूब सुहाता था। खासियत उनकी यही रही कि स्‍टारडम उन पर हावी नहीं हुआ। वे रमेश सिप्‍पी की सागर बिना किसी नखरा कर गये यह जानते हुए कि स्‍पर्धी भूमिका में कमल हसन है। अपने पिता का नाम उनके सिर चढ़कर नहीं बोला। वे जानते थे कि उनके बड़े भाई रणधीर और छोटे भाई राजीव सिनेमा में विफल होकर बाहर हो गये हैं और वे भी तभी तक टिके रह सकते हैं जब तक अपनी क्षमताओं से दर्शक का दिल न लूट सकें। और यह उन्‍होंने कर दिखाया। इधर वे अपने पिता की फिल्‍म प्रेम रोग के भी नायक हुए। इतना काम करते हुए ऋषि बहुत सफल और स्‍थापित नायक बन चुके थे। परदे पर पहले पहल आये तो वे डिम्‍पल कपाडि़या के साथ थे लेकिन अभिनेत्री नीतू सिंह से उन्‍होंने सफल जोड़ी बनायी जो बाद में उनकी जीवनसंगिनी भी बनी और उसके बाद फिल्‍म छोड़कर घर सम्‍हाल लिया।

ऋषि कपूर का आकलन करने वाले तत्‍समयी सिनेमाज्ञानी उनको चॉकलेटी हीरो ही कहा करते थे। प्राय: उनके लिए यह भी कहा जाता था कि वे नायिकाप्रधान फिल्‍मों के सुटेबल हीरो हैं। इस तरह चांदनी, निगाहें, शेरनी, गुरुदेव जैसी फिल्‍मों में वे श्रीदेवी के नायक रहे।  माधुरी दीक्षित के साथ याराना, प्रेमग्रंथ में। 1992 में एक फिल्‍म दीवाना आयी थी जिसमें मध्‍यान्‍तर के बाद शाहरुख खान इण्‍ट्रोड्यूज होते हैं। इस फिल्‍म को यदि नायक रूप में ऋषि का प्रस्‍थान बिन्‍दु कहूँ तो शायद अतिश्‍योक्ति न होगी। यह फिल्‍म हिन्‍दी सिनेमा के लिए एक नायक की विदाई और एक नायक की आमद का उदाहरण बनी। शाहरुख खान इसके बाद नायक बनते चले गये और ऋषि चरित्र भूमिकाओं की ओर केन्द्रित हो गये। बाद में आ अब लौट चलें, एक फिल्‍म उन्‍होंने आर.के. बैनर के लिए निर्देशित भी की। 

इधर इस सदी के दूसरे दशक में हम ऋषि कपूर का एक अनूठा और ताज्‍जुब में डाल देने वाला रूप देखते हैं परदे पर जो अपने चेहरे की तमाम नैसर्गिक कोमलता, सॉफ्टनेस, विनम्रता और मोहक मुस्‍कान के विरुद्ध के रूप अपना गढ़ रहा है। 2012 में वह फिल्‍म थी अग्निपथ जिसमें हृतिक रोशन नायक थे। यहॉं से अब तक हमने उनको सचमुच चकित कर देने वाली भूमिका में देखा है। डी-डे और औरंगजेग तो इसी श्रेणी की फिल्‍में थीं। उसके अलावा कपूर एण्‍ड संस, 102 नॉट आउट और मुल्‍क इनमें प्रमुख हैं। इन फिल्‍मों में दर्शकों से चरित्र संवाद करता है। कितना गहरा और चरित्र में डूबकर एकाकार होने वाला अन्‍दाज। यह सच है कि शरीर और आत्‍मा से बिल्‍कुल तोड़ देने वाली प्राणघातक बीमारी के साथ उनके पिछले दो साल मुश्किल में कटे अन्‍यथा वे चार और अच्‍छी फिल्‍मों के किरदार के रूप में हमारे जहन में होते। इरफान की तरह ही उन्‍होंने भी इस बार चन्‍द घण्‍टों में दुनिया को अलविदा कहा और अपने चाहने वालों को दोहरे शोक में डुबोकर चले गये। ऋषि कपूर अपने गुणी और विलक्षण पिता की सबसे काबिल और नाम रोशन करने वाली सन्‍तान के रूप में सदा हमारे दिलों में रहेंगे, याद रहेंगे।
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