बुधवार, 29 अप्रैल 2020

जिन्‍दगी हो या सिनेमा, इरफान क्षमताओं का अतिरेक थे



स्‍मृति शेष / इरफान


ट्रिब्‍यूट लिखना बहुत अन्‍तर्द्वन्‍द्व से भरा होता है। उसके लिए जिसे आप जानते हो, जिसको जमाना जानता हो और अपने आपमें बेहद सादगी में भी होते हुए असाधारण और अतिरेक से भरा हो। उसके लिए लिखना और भी मुश्किल जो काल और समय के अपने निर्मम और छुपे हुए घातों से अकेला लड़ता-जूझता रहे, उसके आसपास, उसके निकट सम्‍बन्‍धी और दूर-दूर तक उसको जानने तथा पहचानने वालों के बूते कुछ न रह जाये सिवाय बेबसी के और एक दिन वह भी आये जब ठिठककर रह जाना पड़े।
 
अभी बुधवार को अचानक तबियत खराब होने पर अस्‍पताल में दाखिल इरफान पिछले दो-ढाई सालों से उम्‍मीदों और हौसले के संचित कोष से अपने लिए थोड़ा-थोड़ा खर्च कर रहे थे। उनके पूरे व्‍यक्तित्‍व में जितनी असाधारण सादगी थी, उनकी ऑंखों और मुस्‍कराहट में उतना ही असाधारण सम्‍मोहन था। उनका बोलना बहुत सहज था। सिनेमा में वे कोई आवाज या डायलॉग से प्रभावित करने वाले अभिनेता नहीं थे। वे अपने होने को ही किरदार में असाधारण बना दिया करते थे। अभी कुछ दिन पहले एक कार्यक्रम देख रहा था जो किसी कलाकार को उसके पुश्‍तैनी घर और शहर में लेकर जाता है और बातचीत होती है। वह पुरानी रिकॉर्डिंग थी। शायद छ: साल पहले की। उस बातचीत में वो विनय पाठक को बतलाते हैं अपने बचपन के बारे में, पिता, मॉं और विशेषकर नानी के बारे में। इरफान का ननिहाल टोंक में था। जिक्र में आता है तो वे विनय को लेकर चल पड़ते हैं एक खुली जीप चलाते हुए टोंक और फिर नानी का घर, एक-एक जगह की बात, छत, सीढि़यॉं सब कुछ। यही उनके प्रिय शौक पतंगबाजी का जिक्र और पतंग उड़ाते लड़कों के बीच बहुत आसानी से अपने को समरस कर लेना। वे कहते थे कि मुझकों पेंच लड़ाने में मजा आता है। आकाश में अकेले पतंग उड़ाने का क्‍या मजा जब तक पेंच न लड़ाये जायें। पतंग काटी न जाये। 

इरफान को छोटी उम्र में ही जीनियस फिल्‍मकारों के साथ काम करने का अवसर मिला था। यह कल्‍पना ही की जा सकती है कि इक्‍कीस या बाइस साल की उम्र में उनको मीरा नायर और गोविन्‍द निहलानी की फिल्‍मों के काम करने का मौका मिला था। सलाम बॉम्‍बे, जजीरे और दृष्टि वे फिल्‍में थीं जिनमें वे अपने से बड़े और अनुभवी कलाकारों के सान्निध्‍य में थे। विदेशी मूल के भारतीय निर्माता आसिफ कपाडि़या की फिल्‍म द वारियर उनके लिए एक अच्‍छा मौका बनकर आयी जिसने उनको अन्‍तर्राष्‍ट्रीय पहचान से जोड़ा। जयपुर में नाटक करते हुए, राष्‍ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्‍ली में प्रशिक्षित होकर मुम्‍बई में उनका आना दरअसल अर्थपूर्ण सिनेमा के समकालीन परिदृश्‍य में एक प्रबल सम्‍भावना की भागीदारी थी जहॉं वे पहले से ओमपुरी, नसीरुद्दीन शाह और पंकज कपूर जैसे अभिनेताओं को जमा हुआ देख रहे थे। यह उतना ही दिलचस्‍प है कि 2003 में विशाल भारद्वाज की फिल्‍म मकबूल में इरफान को इन तीनों कलाकारों के साथ काम करने का अवसर मिला। इस बीच उनकी काली सलवार, गुनाह, कसूर आदि साधारण फिल्‍में आयीं लेकिन जल्‍दी ही फिर वे उस जगह से आगे बढ़े जो उनको पहले की श्रेष्‍ठ फिल्‍मों की वजह से मिली थी। निर्देशक एवं अभिनेता तिग्‍मांशु धूलिया ने 2003 में हासिल फिल्‍म बनायी थी जिसने इस अभिनेता की क्षमताओं का कैनवास बड़ा कर दिया। हासिल जिमी शेरगिल, आशुतोष राणा और हृषिता भट्ट जैसे सह कलाकारों के साथ बनी थी लेकिन फिल्‍म का डायनमिक किरदार रणविजय सिंह बने इरफान ने जैसे कमाल ही कर दिया। उत्‍तरपूर्व में रौबदाब और दहशत के अराजक संसार से किसी बाहुबली की उपस्थिति को उन्‍होंने बखूबी रेखांकित किया था। 

इरफान बाजारू सिनेमा की किसी भी स्‍पर्धा में नहीं रहे। वे तमाम कुटैवों या स्‍पर्धाओं से भी हमेशा बाहर रहे। किसी भी तरह के विवाद का हिस्‍सा वे नहीं बने। वे निर्देशकों के प्रिय अभिनेता रहे। व्‍यावसायिक सिनेमा के बड़े सितारों के साथ काम करते हुए भी वे अपनी क्षमताओं और अपनी रेंज को लेकर हमेशा ही आश्‍वस्‍त रहे हैं। यही कारण है कि अमिताभ बच्‍चन से लेकर सनी देओल के साथ काम करके भी वे अपनी सराहना और प्रबल उपस्थिति रेखांकित करने में सफल रहे हैं। द क्‍लाउड डोर, प्रथा, चरस, लाइफ इन मेट्रो, द नेमसेक, स्‍लमडॉग मिलिनेयर, बिल्‍लू, ये साली जिन्‍दगी, सात खून माफ जैसी फिल्‍मों के साथ तिग्‍मांशु और विशाल के साथ वे दोबारा आये लेकिन प्रियदर्शन, मणि कौल और सुधीर मिश्रा के साथ भी काम करने के मौकों में उन्‍होंने अपने को सिद्ध किया। वे अनेक अच्‍छे धारावाहिकों में भी आये जिनमें डॉ चन्‍द्रप्रकाश द्विवेदी के साथ चाणक्‍य, श्‍याम बेनेगल के साथ भारत एक खोज भी शामिल हैं। पान सिंह तोमर उनको बेहद वजनदारी के साथ स्‍थापित करने वाली फिल्‍म थी जिसने तिग्‍मांशु धूलिया ने बनाया था। इस फिल्‍म को विभिन्‍न श्रेणियों में में राष्‍ट्रीय पुरस्‍कारों ने इरफान को जो ऊँचाई, जो शिखर प्रदान किया वह इस सदी के इन दो दशकों का सर्वश्रेष्‍ठ यश माना जायेगा। यहॉं से आगे फिर इरफान अपनी जर्नी में स्‍मूथ है, पान सिंह की बड़ी सफलता के बाद भी जमीन पर एक सच्‍चा और गहरा कलाकार बनकर। फिर आगे साहेब बीवी और गैंगस्‍टर रिटर्न, डी डे, जज्‍बा आदि। लेकिन इसी बीच फिर एक कदम और आगे बढ़ने का साहस लिए इरफान द लंचबॉक्‍स, हैदर, पीकू, मदारी, हिन्‍दी मीडियम, करीब करीब सिंगल और बीते माह की अंग्रेजी मीडियम से हमारे दिलों में एक बड़ा स्‍पेस लेकर स्‍थापित हुए।

दो साल से भी अधिक समय पहले जब वे इस प्राणघातक बीमारी की चपेट में आये तभी से चिकित्‍सकीय कारणों से और हम कल्‍पना कर सकते हैं, एक इतने बड़े और संजीदा कलाकार के अपने जीवन के सच और भविष्‍य से अनभिज्ञ न रहते हुए कठिन चिकित्‍सा, लगातार परिवार और वातावरण से दूर रहते हुए एक दूसरे देश में समय को सहना, समझना और जीना कितना कठिन रहता होगा। वे दो साल सूचना और संवादों से दूर रहकर फिर सीधे सिनेमाघर में अंग्रेजी मीडियम के माध्‍यम से ही मिले लेकिन कोरोना और लॉकडाउन के कारण यह फिल्‍म दो सप्‍ताह सिनेमाघर में रह पायी और सिनेमाघर बन्‍द हो गये। इस फिल्‍म में पिता का भावनात्‍मक किरदार करते हुए वह खुद जीवन के अपने सच्‍चे किरदार से लड़कर ऊबरकर आये दीखते हैं लेकिन अन्‍त:स्‍थल के घटनाक्रम को विक्टिम या भुक्‍तभोगी ही जान सकता है। इरफान निश्चित ही इस लॉकडाउन में इसी द्वन्‍द्व से गुजरते हुए चार-छ: दिन पहले अपनी मॉं के जाने से व्‍यथित हुए और अन्‍तत: गुरुवार सुबह उनके नहीं रहने की दुखद और हृदयविदारक खबर आयी। 

हर घर कुछ कहता है में एक जगह मॉं से अपने रिश्‍ते के बारे में वे कहते हैं कि मैं उनको बहुत खुशी देना चाहता रहा हूँ लेकिन मेरी उनसे ज्‍यादा पटी नहीं। कुछ न कुछ ऐसा हो जाता था कि वे नाराज हो जाया करतीं। जबकि अपनी नानी से मेरा बहुत लगाव रहा, मैं उनके साथ बहुत रहा, वे मुझे प्‍यार भी करती रहीं। इरफान की मॉं शायद आने वाले दिनों से आभासित रही होंगी इसीलिए सम्‍भवत: उनका प्रस्‍थान इस दुखद घटना के पहले हुआ अन्‍यथा इरफान के बगैर उनकी जिन्‍दगी और चैन की कल्‍पना करके सिहरन हो उठती है। इरफान का जाना, एकदम से अमान्‍य कर देने को जी चाहता है। फिर उनके यश पर फक्र करने का मन हो उठता है। याद आती है बिमल रॉय की फिल्‍म दो बीघा जमीन में मन्‍नाडे के गाये, दार्शनिक गीतकार शैलेन्‍द्र के लिखे गीत की दो पंक्तियॉं...............अपनी कहानी छोड़ जा, कुछ तो निशानी छोड़ जा, कौन कहे इस ओर, तू फिर आये न आये........नमन।
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