गुरुवार, 11 जून 2020

कनक रेले

हमारी अवधारणा में मोहिनीअट्टम का पर्याय कनक रेले भी हैं......

 


मोहिनीअट़टम का पर्याय हो चलीं विदुषी नृत्यांगना डॉ कनक रेले का आज जन्मदिन है। वे 84वें वर्ष में प्रवेश कर रही हैं। उनकी साधना, ऊर्जा और मेधा का ही यह प्रभाव है कि आज भी उनकी अभिव्यक्ति और दिनचर्या में नृत्य और नृत्य की साधना जस की तस है उसमें उम्र का जरा भी असर नहीं हुआ है। उनके जीवट को देखकर प्रेरणा होती है, कला के प्रति उनका वैभवपूर्ण संस्कार हमें इस बात के लिए प्रेरित करता है कि हम आदरपूर्वक उनकी सक्रिय उपस्थिति और अवदान के लिए उनके प्रति और ईश्वर के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करें। देश-विदेश में विस्तारित उनकी सुदीर्घ और गुणी शिष्य परम्परा भी यह कर रही है।

डॉ कनक रेले का जन्म 1937 में मुम्बई में हुआ। आरम्भ में उनको कथकली की शिक्षा विख्यात नृत्य गुरु करुणाकर पणिक्कर एवं राघवन नायर से प्राप्त हुई। उनको भरतनाट्यम के लिए प्रशिक्षित किया नाना कसार ने और मोहिनीअट्टम की शिक्षा चिन्नम्मु अम्मा से प्राप्त हुई। आगे चलकर उन्होंने मोहिनीअट्टम पर अपने को एकाग्र किया और मुम्बई विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट उपाधि प्राप्त की। मेनचेस्टर यूनिवर्सिटी यू के से भी शोधोपाधि उन्होंने प्राप्त की। 

कनक जी ने 1966 में मुम्बई में नालंदा डांस सेंटर की स्थापना करके कला जगत और संस्कृति के लिए बड़ा योगदान किया है। सात साल तक उन्होंने इस केन्द्र में प्रशिक्षण प्रदान करने के उपरान्त उन्होंने नालंदा नृत्य कला महाविद्यालय की स्थापना 1973 में की। उन्होंने इसके लिए सार्थक एवं उपयोगी पाठ्यक्रम तैयार करने के अलावा प्रशिक्षण की सारी समय के साथ आवश्यक प्रतीत होने वाली व्यवस्थाएँ जुटायीं और इसे उसी तरह की ऊँचाई प्रदान की जैसी वे कला जगत में अपनी विलक्षण प्रतिभा से हासिल करती जा रही थीं। उन्होंने नृत्य को मौलिक एवं नवाचारी प्रयोगों से जोड़ते हुए नृत्य चिकित्सा का भी आयाम बनाया। मोहिनीअट्टम पर लिखी कनक जी की किताबें अपने समय का मूल्यवान साक्ष्य या दस्तावेज हैं। 

एक कलाकार के रूप में उनका सर्जनात्मक विस्तार अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं रेखांकित किए जाने योग्य है। अमृत मंथन, दशावतार, श्रीकृष्ण लीला, सन्तवाणी, शिलापदिकरम, कल्याणी, स्वप्नवासवदत्ताम, कंचन मृग, रुक्मिणी स्वयंवर आदि नृत्य नाटिकाएँ उनके संयोजन में अपने अनेक प्रदर्शनों में मंच पर अपनी अनूठी आभा बिखेरने वाली प्रस्तुतियाँ हैं जिनको सदैव सराहा गया है। श्रीकृष्ण लीला एवं आषिमा नृत्य नाटिकाएँ कनक जी ने विशेष बच्चों को लेकर तैयार की थी और प्रत्येक में लगभग पचास से अधिक बच्चों ने सुखद रूप से चकित कर देने वाला काम किया था। 

डॉ कनक रेले, मोहिनीअट्टम की अग्रणी एवं मूर्धन्य नृत्यांगना के रूप में वह पहचान हैं जो मंच पर अभिव्यक्ति की असाधारणता और कलात्मक सौन्दर्यबोध के साथ ही गहरे सम्प्रेषित होने वाली भावाभिव्यक्ति से चमत्कार रचती हैं। मोहिनीअट्टम की आन्तरिक और महीन विशिष्टताओं को आत्मसात करके अपने माध्यम से प्रस्तुत करने का उनका सलीका उनको दूसरी नृत्यांगनाओं से पृथक रखता है। कलाकार और अकादमिक विशेषज्ञ दोनों धरातलों पर वे इस कला को शीर्ष पर स्थापित करने वाली एकमात्र नृत्यांगना हैं। उनकी कला के प्रति आदर व्यक्त करते हुए, उनके सुदीर्घ योगदान का सम्मान करते हुए देश ने उनको गरिमामयी सम्मानों से विभूषित भी किया है जिसमें संगीत नाटक अकादमी सम्मान के साथ ही पद्मभूषण भी शामिल है। मोहिनीअट्टम पर नृत्य भारती शीर्षक से उन्होंने एक लघु फिल्म भी वर्षों पूर्व बनायी थी। 

उनके जन्मदिन पर आज बधाई देते हुए बातचीत में वही गरिमा, वही ऊर्जा और वही कला बोध इस टिप्पणी के लेखक को प्रतीत हुआ है। कला ने उनको इस उम्र में भी उतना ही सजग, जाग्रत और सक्रिय बनाये रखा है यह हमारी उपलब्धि और गौरव की बात है। वे आगे भी इसी दक्षता, विशेषज्ञता और सांस्कृतिकचेता की अपनी भूमिका के साथ आने वाली पीढ़ी की प्रेरणा और मार्गदर्शक बनी रहेंगी, यह आशा है। 
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