मंगलवार, 19 जुलाई 2016

फिर आग बिरहा की मत लगाना

संगीतकार रोशन की जन्‍मशती - 14 जुलाई 2016 - 2017


हिन्दी सिनेमा का इतिहास सौ साल पार कर गया है। हमारे सामने देखते ही देखते ऐसे गुणी कलाकारों की जन्मशताब्दी का वह समय भी आता चला जा रहा है जब हम उनको बीसवीं सदी की सबसे चमत्कारिक विधा में उनके अविस्मरणीय योगदानों के लिए याद कर सकते हैं। यह ऐसे समय में और महत्वपूर्ण और रचनात्मक दृष्टि से अपरिहार्य लगता है जब हमारे आसपास समकालीन के ही विस्मरण का एक अजीब सा, संवेदनात्मक दृष्टि से यदि कहें तो निर्मम सा सिलसिला चल पड़ा है जब आज को आज की खबर नहीं है। ऐसे में एक बड़े संगीतकार रोशन music director roshan को कैसे याद किया जायेगा, जब उनकी जन्मशताब्दी का साल 14 जुलाई से शुरू हो रहा हो। रोशन का याद आना एक बार फिर से अपने समय की उन महत्वपूर्ण फिल्मों का उनकी समग्रता में याद आना है जिसमें उन्होंने संगीत दिया था। रोशन सरोकारों और विशिष्टताओं में कुछ खास गुणों के साथ जाने, जाने वाले संगीतकार थे जिनके समय सिनेमा में बेशक एक से एक श्रेष्ठ संगीतज्ञों के योगदान ने एक स्वस्थ किस्म की स्पर्धा खड़ी की थी लेकिन उनके बीच रोशन का रास्ता भी उजासभरा था। 

कुछ समय पहले ही उनके गुणी बेटे और अब तक के समय के शायद आखिरी मौलिक संगीतकार राजेश रोशन rajesh roshan से कुछ मुलाकातें हुईं हैं। अपने पिता के बारे में उन्होंने कहा था कि बेहद सादगी, मैत्रीपूर्ण व्यवहार और बिना किसी नाज-नखरों अथवा आवश्यकताओं की मांग किए बिना ही पिताजी को श्रेष्ठ रचने का शगल था। वे अपनी धुनों, अपनी रचनाओं को अन्तिम निर्णय पर तब तक नहीं ले जाते थे जब तक उनके पाश्र्व गायक और वे कलाकार जिन पर उनके गीत फिल्माये जाने हैं, उनके साथ अनेक बैठकें नहीं हो जाती थीं और वे परस्पर सन्तुष्ट नहीं हो जाते थे। रोशन को विविध वाद्यों, विशेषकर दुर्लभ वाद्यों के साथ काम करने की चुनौतियाँ उठाने में बहुत आनंद आता था। वे स्वयं इसराज बहुत अच्छा बजाते थे। चालीस के दशक में भातखण्डे संगीत संस्थान लखनऊ में उन्होंने इस साज को साधने की तालीम ली थी और अपने आपको परिष्कृत भी किया था। उस समय के उनके गुरु पण्डित श्रीकृष्ण नारायण रातजनकर जो कि भातखण्डे के प्रमुख थे, उनसे बहुत प्रभावित रहते थे। 

रोशन का पूरा नाम रोशनलाल नागरथ roshanlal nagrath था। पंजाब के गुजरांवाला में उनका जन्म 14 जुलाई 1917 को हुआ था। संगीत के प्रति उनका लगाव शुरू से था, इसका कारण उनके परिवेश का आंचलिक संगीत था। धीरे-धीरे उनकी शास्त्रीय संगीत के प्रति भी गहरी रुचि बनती गयी। ऐसे समय में जब कला के विस्तार के लिए अपने आसपास के विश्व में रेडियो और सिनेमा दोनों का ही आकर्षण संगीत और अभिनय में रुचि रखने वाले युवा के लिए खासा आकर्षण रखता हो, रोशन को लखनऊ का मार्ग अपने लिए ज्यादा उपयुक्त लगा और वहीं से उनकी आगे की यात्रा मुम्बई की ओर होती है। उनको आॅल इण्डिया रेडियो नई दिल्ली में संगीतज्ञ के रूप में काम कर रहे ख्वाजा खुर्शीद अनवर की शागिर्दी भी हासिल हुई जो दरअसल मुम्बई की ओर रुख करने में अनुसरण बनी। रोशन को राजकपूर के गुरु किदार शर्मा एक प्रोत्साहक और यथापूरक भगीरथ की तरह मिले। इसके बाद रोशन की अपनी यात्रा अनेक उतार-चढ़ावों भरी है। 

एकाध फिल्म में छोटे-मोटे किरदार करते हुए वे अपने आपको एक संगीतकार के रूप में बड़ी मेहनत से साबित करने धीरे-धीरे कामयाब हुए। उनकी आरम्भिक फिल्में बावरे नयन, मल्हार, हम लोग, नौबहार, बाप बेटी, चांदनी चैक, बराती, घर घर में दिवाली, दो रोटी, अजी बस शुक्रिया, हीरा मोती से उनको काम करने की निरन्तरता तो मिली लेकिन इतनी फिल्मों में काम करने के तजुर्बे के बाद वह सब बड़ा सुखद और चकित कर देने वाला आया जब उनकी फिल्म बरसात की रात प्रदर्शित हुई। जिन्दगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात और न तो कारवाँ की तलाश है न तो हमसफर की तलाश है जैसे गानों ने जब धूम मचायी तब लोगों ने उसके पीछे संगीत रचयिता रोशन को लाना। इन गीतों के सफल होने के बाद ही दर्शकों को फिर नौबहार में लता मंगेशकर से उनका गवाया गीत, ऐ री मैं तो प्रेमदीवानी मेरा दरद न जाने कोय याद आया। भारतीय दर्शकों के मन-मस्तिष्क में रोशन एक सम्भावनाभरे संगीतकार के रूप में दर्ज हुए। न तो कारवाँ की तलाश है एक लम्बी कव्वाली थी और बाद में रोशन इस बात के लिए भी ख्यात हुए कि उनसे बेहतर कव्वाली कोई और संगीत-संयोजित नहीं कर सकता।

रोशन की ही एक फिल्म आरती का मीना कुमारी पर फिल्माया गीत, कभी तो मिलेगी कहीं तो मिलेगी, बहारों की मंजिल राही लता मंगेशकर के स्वर का एक अविस्मरणीय गीत है जिसका फिल्मांकन और संगीत रचना कमाल की है। बाद में उन्होंने सूरत और सीरत, ताजमहल, दिल ही तो है, चित्रलेखा, नयी उमर की नयी फसल, भीगी रात, बेदाग, ममता, देवर, दादी माँ, बहू बेगम, अनोखी रात आदि फिल्मों की भी संगीत रचना की। वे अपने समय के सभी श्रेष्ठ गायक-गायिकाओं के साथ काम करते थे जिनमें लता मंगेशकर, आशा भोसले, हेमन्त कुमार, मुकेश, मोहम्मद रफी आदि। सभी से उनका अपनापा था, इसलिए भी क्योंकि वे तटस्थ थे और अपने काम के अलावा व्यक्तिगत रागद्वेष और खेमों से दूर रहा करते थे। राजेश रोशन अपना बचपन याद करके बताते हैं कि हम बहुत छोटे थे, घर में उस समय एयरकण्डीशन या कूलर की स्थितियाँ नहीं थीं। छत पर पंखा रहता था और पिताजी कलाकारों के साथ रियाज और अभ्यास में दिन-रात एक कर दिया करते, बिल्कुल पसीने से लथपथ और बड़ी बात यह भी कि बैठक में सहयोगी कलाकार भी उतना ही सहयोग करते और उदारतापूर्वक अपेक्षा किए जाने पर हर समय आ जाया करते। 

न तो कारवाँ की तलाश है कव्वाली के जिक्र के समय यह बात आयी थी कि रोशन कव्वाली तैयार करने में बड़ी दिलचस्पी लेते थे। दिल ही तो है फिल्म में निगाहें मिलाने को जी चाहता है की बात इससे जुड़ती है। उनकी अनेक फिल्में ऐसी हैं जिनके गाने हमारी संवेदना को सीधे जाकर छूते हैं। ताजमहल, जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा या पाँव छू लेने दो फूलों को इनायत होगी, प्रेम में वचन के निबाह और पैरों की नजाकत को फूलों से बढ़कर ठहराते हैं। चित्रलेखा का गाना मन रे तू काहे न धीर धरे, शास्त्रीय राग पर आधारित है वहीं अनोखी रात के गाने ओह रे ताल मिले नदी के जल में गहरा दार्शनिक, खुशी खुशी कर दो विदा गहन उद्वेलन से भरा भावपूर्ण गाना है। देवर में आया है मुझे फिर याद वो जालिम गुजरा जमाना बचपन का, बहारों ने मेरा चमन लूटकर, दुनिया में ऐसा कहाँ सबका नसीब है भावपूर्ण और मन को गहरे छू लेने वाले गाने हैं। असित सेन निर्देशित फिल्म ममता में उनके गाने छुपा लो यूँ दिल में प्यार मेरा और रहते थे कभी जिनके दिल में हम जान से भी प्यारों की तरह प्रेम की महानता और अनुभूतियों के चरम उत्कर्ष के गाने हैं। रोशन ऐसे गीतों का संगीत रचकर आज भी अमर संगीतकार की तरह याद आते हैं।

राजेश रोशन rajesh roshan अपने पिता को याद करते हैं तो स्मृतियों में बड़े पीछे जाते हैं। वे लगभग दस-बारह वर्ष के रहे होंगे जब रोशन साहब का पचास वर्ष की उम्र में निधन हो गया था। उन्होंने अपने पिता को अपनी चेतना में बहुत सक्रिय और धुनी स्वरूप में देखा था। बड़े भाई पहले नायक और बाद में निर्देशक बने लेकिन राजेश रोशन ने संगीत निर्देशक ही बनना चाहा। वे बताते हैं कि भैया राकेश रोशन भी संगीत की गहरी समझ रखते हैं, यह पिता का ही संस्कार है और यही कारण है कि उनकी फिल्मों का संगीत तैयार करते हुए मेरे उनसे रचनात्मक द्वन्द्व खूब चलते हैं लेकिन श्रेष्ठता के धरातल पर हम आकर एक हो जाते हैं। अपने पिता के योगदान को राजेश रोशन कृतज्ञतापूर्वक याद करते हैं और कहीं न कहीं अपने आपको गहरी अन्तरात्मा के साथ मौलिकता और माधुर्य के गुणों का बोध बनाये रखने के पीछे पिता के संस्कारों का स्मरण करते हैं। संगीतकार रोशन की आभा रोशनी को उनके अभिनेता और निर्देशक बेटे राकेश रोशन और पोते हि‍ृतिक रोशन ने और समृद्ध किया है। राजेश रोशन का संगीत आज भी जीवन की लय और माधुर्य की असीम अनुभूतियों का अनूठा साक्ष्‍य और उदाहरण माना जाता है।

Keywords - music director roshan, rakesh roshan, rajesh roshan, hritik roshan,  संगीत निर्देशक रोशन - रोशनलाल नागर‍थ, राकेश रोशन, राजेश रोशन, हिृतिक रोशन..............
---------------------------------------


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें