मंगलवार, 26 जुलाई 2016

सुभाष घई का सिनेमा और दृष्टि

सुभाष घई को अभिनय का शौक था। मुझे याद है मैंने उनकी खलनायक की भूमिका वाली एक फिल्म नाटक 1975 में देखी थी। इस फिल्म के हीरो विजय अरोरा थे और हीरोइन मौसमी चटर्जी। जिन्दगी एक नाटक है, हम नाटक में काम करते हैं.....यह गाना भी इन पंक्तियों को लिखते हुए याद आता है। कुछेक छोटी-मोटी भूमिकाओं के बाद घई ने यह तय पाया कि वे अभिनय में सफल नहीं हो पायेंगे। बाद में निर्देशक के रूप में उनका सक्रिय होना सफल रहा। कालीचरण से लेकर कांची तक फिर उनकी एक लम्बी यात्रा है जिसमें राजकपूर के बाद दूसरे बड़े शोमैन का रुतबा भी उनको हासिल हुआ है।

सुभाष की निर्देशक के तौर पर सफलता उनको अपने समय का एकछत्र साम्राज्य भी दिलाती है। वे कालीचरण के बाद विश्वनाथ, गौतम गोविन्दा, कर्ज, क्रोधी, विधाता, हीरो, कर्मा, रामलखन, सौदागर, खलनायक, त्रिमूर्ति, परदेस, ताल आदि फिल्में बनाते गये और विस्तार लेते गये। सुभाष घई ने सचमुच सिनेमा में निर्देशक के वजूद का एहसास कराया। सशक्त फिल्में, सफल फिल्में, अनेक अभिनेत्रियों माधुरी, मनीषा, महिमा और अभिनेता जैकी श्राॅफ के गाॅडफादर की तरह वे जाने गये। हालांकि बाद में उनका करिश्मा कम हुआ। किसना टाइप फिल्में याद आती है लेकिन एक अच्छी फिल्म ब्लैक एण्ड व्हाइट उन्होंने निर्देशित की। युवराज में हीरो, कर्मा, रामलखन और सौदागर सा चमत्कार नहीं हुआ और कांची बिल्कुल पटरी से उतरी फिल्म।

सुभाष घई सचमुच में निर्देशकों के बीच एक शख्सियत हैं। इधर अन्तराल उनके हाथ से सफलता की पकड़ छुटाता चला गया है। कांची की पटकथा और संवाद ऐसे प्रतीत हुए जैसे सेट पर ही तय कर करके फिल्म शूट करते चले गये हों। खैर, सुखद है कि वे अगली फिल्म के बारे में सोच रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि नयी फिल्म पर उनकी पकड़ उनके स्वर्णिम इतिहास का अगला पड़ाव साबित होगी.............

भव्यता, प्रस्तुतिकरण, बंधे-सधे हुए दृश्य और संगीत की अनूठी समझ और दृष्टि उनकी खूबी है। उनकी फिल्मों में नायक-नायिका ही सब कुछ नहीं होते बल्कि चरित्र अभिनेताओं पर भी वे अधिक ध्यान देते हैं, यही कारण है कि दिलीप कुमार, राजकुमार, संजीव कुमार, शम्मी कपूर, अमरीश पुरी, सुषमा सेठ, सतीश कौशिक, अनुपम खेर, प्रेमनाथ, प्राण आदि के चरित्र खूब उभरकर सामने आये हैं। वे अपनी फिल्मों में जज्बाती दृश्यों, रसूखदार और अमीर किस्म के अहँकारी किरदारों, कुटिल, धूर्त और छलछिद्री रिश्तेदारों के चरित्र भी बखूबी पेश करते हैं। सुभाष घई की फिल्मों में प्रेम, रिश्ते-नाते, भावनाओं का प्रकटीकरण ऐसा होता है कि आपका हृदय सजल हो जाये। ये बातें युवराज फिल्म तक बखूबी आयी हैं। वे अपनी फिल्मों में अपने अभिनेता को कम से कम एक दृश्य का हिस्सा बनने से नहीं रोक पाते, यह भी उनकी खूबी है।

सुभाष घई हमारे हिन्दी सिनेमा के निर्देशकों में उन चन्द प्रमुख फिल्मकारों में से हैं जिनसे सिनेमा, सिनेमा के सितारे नियंत्रित होते हैं और वह भी उनकी शर्तों, उनके अनुशासन और उन पर विश्वास करते हुए..................

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