शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015

तीन

नहीं पता होगा कितनी कहानियाँ होंगी जो सुनने पर भी बिसरी न होंगी। हम कभी-कभार कहानियों को अपने पास रख लिया करते हैं। कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं जो हमने भले अपने पास रखी नहीं होतीं पर वो हमें छोड़कर कहीं जाती भी नहीं हैं। ऐसी कहानियाँ हमारे ही आसपास अपने छोटे-छोटे घर बना लिया करती हैं। हम जाने-अनजाने भटके पथिक की तरह उन घरों में जाकर जब बैठतें हैं तो हमें महकते हुए शब्द आभासित होते हैं। यह महक ही हमें स्मृतियों में ले जाती है। अच्छी कहानियाँ सुगन्ध की तरह होती हैं। पढ़ लिए जाने के बाद भी बड़ी देर तक उनकी महक बनी रहती है। कहानियों के घर हमारे पास ही होने चाहिए। जो शब्द मिलकर कहानी होते हैं वे अपने मौन में स्पर्श प्रदान करने वाली प्रार्थनाओं में लीन रहते हैं, हम सबको बिना बताये। उन प्रार्थनाओं में किन्हीं-किन्हीं अच्छे लोगों के लिए चिरंजीविता हुआ करती है। हम थमे रहकर उनको अनुभूत कर सकते हैं। नयी कहानियाँ बिरवे की तरह मन की धरा से दो पत्तियाँ लेकर फूटती हैं, एक पत्ती जीवन के लिए औषधि होती है और एक मन के लिए। सच तो यह है कि मन और जीवन ही कहानियों की सर्जनाभूमि है और यही हमारी देहात्मकता के अन्त:राग........

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