शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015

चार

कुछ दिन पहले से स्मृति में बैठ गया था, अक्टूबर सत्रह को स्मिता पाटिल का 60वाँ जन्मदिन था। उनके होने में यह दिन कुछ और होता, स्वाभाविक है, सतत सर्जना में आज उनकी जगह भी कुछ और होती। उनकी क्षमताओं पर गहरा विश्वास करने वाले फिल्मकार श्याम बेनेगल से एक लम्बे रास्ते पर गाड़ी में बैठे हुए एक बड़ी बातचीत हुई थी तब उन्होंने स्मिता पाटिल के बारे में बात की थी। वे निशान्त की बात कर रहे थे, उसी बीच अपनी स्मृतियों से मैंने चरणदास चोर की रानी के किरदार की बात भी जोड़ दी थी जिसके बारे में उन्होंने बताया था कि कैसे निशान्त के बराबर यह बाल फिल्म उनको बनाने को मिली और उन्होंने स्मिता को इस फिल्म में एक छोटी सी भूमिका में भी रख लिया। स्मिता पाटिल की असाधारण अभिव्यक्ति क्षमता को उनकी अनेक फिल्में रेखांकित करती हैं। याद करने पर वे एक के बाद एक याद आती हैं, निशान्त, भूमिका, बाज़ार, मण्डी आदि। अपनी सम्मोहक श्यामला छबि में उनके पास आँखों और आवाज़ का सशक्त वजन महसूस करता रहा हूँ, खासकर उनको देखते हुए देखना और खास-खासकर दृढ़ता के साथ बोले जाने वाले उनके संवाद जिसमें उनका पात्र जूझ रहा होता है या अपने जीवट के साथ प्रस्तुत होता है। स्मिता पाटिल का विश्लेषण थोड़े में स्वत: ही सन्तुष्ट नहीं होता, देर तक बात करने को जी चाहता है, ऐसे ही में उनका असमय जाना तकलीफ के साथ उनका स्मरण कराता है। स्मिता पाटिल थोड़े में असाधारण कर गयी थीं। यह उस असाधारण का ही प्रभाव है कि वे स्मृति शेष होते हुए भी स्मृतियों में रत्ती भर की सकारात्मक धारा के कौंधते ही उपस्थित हो जाती हैं, अपनी सम्पूर्णता में..................

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