शुक्रवार, 6 मई 2016

।। चार आँसू विधि के लिए।।

बहुत मन कर रहा है कि चार आँसू उसके लिए रोऊँ आज। हालाँकि उससे अधिक रो भी चुका हूँ जब से बहन ने बताया कि विधि आज हम सबको छोड़कर चली गयी। यह आत्मकथ्य लिखना बहुत मुश्किल हो रहा है लेकिन यह अपने से अपना ही हठ है क्योंकि ग्यारहवीं पास करके अमरपाटन सतना से भोपाल पढ़ने आने वाली विधि का चेहरा भुलाये नहीं भूलता जो बहन की पक्की सहेली बनी। विधि भोपाल में अपने तीन मामाओं के होते हुए भी हमारे घर में रहती थी। हमारे पापा उसके पापा, हमारी मम्मी उसकी मम्मी, मैं उसका दादा जैसे कि अपनी बहनों और भाइयों का हूँ। याद आता है विधि भी बहन के साथ पीएमटी की परीक्षा दिया करती थी। दोनों साथ पढ़ा करतीं थी। आगे चलकर उसका विवाह अच्छे घर परिवार में हुआ और उसका संसार भी सुन्दर सा जिसमें एक बेटा और एक बेटी। विधि को याद करो तो न जाने कितनी बातें, बहन और उसको लूना पर बैठाकर काॅलेज छोड़ने जाना, लिवाकर लाना। जब वो भोपाल आयी थी तब उसके पिता ने उसके रहने का प्रबन्ध होस्टल में कर दिया था। मुझे याद है एक बार लम्बा कफ्र्यू लगा था तब तीन-चार दिन भूखी प्यासी विधि को चलते कफ्र्यू में ही मैं अपनी बहन के साथ उसके होस्टल से घर ले आया था। उसके बाद फिर वह हमारे घर ही रह गयी थी। विधि की खूबी उसकी हँसी थी। सदैव हँसते हुए ही मिलती थी। उसका हँसना दरअसल एक बड़ी और दुर्लभ निश्छलता का परिचायक था जिसकी मिसाल वो सैकड़ों-हजारों में रही। साल भर पहले ही शायद इस लड़की का कर्क रोग की पहचान हुई और उसके बाद से उसकी सेहत में गिरावट, लगातार चिकित्सा के बाद भी सुधार न होना और उसके बाद भी उसका मिलना उसी बालसुलभ हँसी सा। आज दोपहर में बहन ने एक वाक्य के सन्देश में सूचित किया है कि विधि आज हम सबको छोड़कर चली गयी। मैं उसके लिए रोने का एकान्त नहीं ढूँढ़ पा रहा हूँ, उससे जुड़ी हर बात मेरी आँखें छलकाये दे रही है। उसके नहीं होने के सच को सहन कर पाना मुझे मुश्किल हो रहा है। ईश्वर की ये क्या महिमा है, मैं ही नहीं कोई समझ नहीं पाया आज तक। मेरी भीगी आँखों में उसके सज्जन से जीवनसंगी संजय और दोनों बच्चों की छबि धुंधलाती है। मैं उसके चले जाने का विरोध करता हूँ। शाश्वत उत्तर यह है कि जिस पीड़ा को वह असमय अपने शरीर पर झेल रही थी वह उसके साथ ही जाती रही। वह क्यों चली गयी। लगभग साल भर पहले अपनी माँ के बिछोह के घाव जस के तस हैं और ये लड़की इस तरह चली गयी। अपनी बहन की दशा नहीं जानता क्या होगी, आज ही वो भोपाल आयी है और विधि भोपाल सहित संसार से चली गयी है। विधि के साथ विधि के विधान की बात कहते हुए घबराहट होती है। उसकी खिलखिलाहट को अब बस याद ही करूँगा, प्रत्यक्ष देखने से वंचित हो गया सदा के लिए.......

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