सोमवार, 30 मई 2016

।। कटहल का स्वाद।।


आज शाम फेबु मित्र भारती जायसवाल Bharti Jaiswal ने अपने घर में कटहल बनाते हुए उसकी लज्जत और स्वाद पर दो बातें कहीं तो मेरा भी कटहलप्रेम जाग्रत हो गया। मैंने उनको लिखा कि कटहल की सब्जी पर मैं अपनी भी कुछ बातें रखूंगा।
कटहल का स्वाद मैंने अपनी नानी के हाथ की बनायी सब्जी से जाना। कानपुर में बड़े फलक वाले कटहल की स्मृतियाँ हैं बचपन की। नानी को बहुत पसन्द था। वे तरीदार, सूखा सब तरह का बनाती थीं। यहाँ तक कि कटहल का दो तरीके का अचार भी, एक मसाले वाला और दूसरा सिरके वाला। बड़े पहले कटहल को सब्जी बेचने वाला तौल कर दे दिया करता था। आजकर उसका छिलका उतार देता है तो बड़े सधे हुए चाकू से खटाखट टुकड़े कर के भी। तब कटहल को घर में ही लाकर छीला और काटा जाता था। घर में काटने से नानी और माँ उसको इस तरह टुकड़े करती थीं कि बीज आधा अधूरा न कट जाये। कटहल खाते हुए उसका बीज निकालकर, छिलका दांत से ही छीलकर भीतर का गूदा खाना और भी अच्छा लगता था, वैसा जैसा उबल सिंघाड़े का स्वाद।
अब बाजार से खरीद और कटवाकर लाया कटहल सुडौल कटा नहीं होता। उसके बीज भी पूरे खाने में नहीं आते। दुकानदार एक सीध में रखकर खटाखट बहुत बड़े-बड़े क्योंकि वे जल्दी में रहते हैं और टोक दो तो छोटे-छोटे टुकड़े काटे, थैली में भरकर पकड़ा देते हैं। आपके पास उसी को बनाने के अलावा विकल्प नहीं क्योंकि उसको घर में छीलना-काटना बहुत मुश्किल और समयसाध्य काम है। कटहल को प्याज-लहसुन के मसाले में भूनकर बनाने का स्वाद ही अलग है। सूखा बनाओ तो दाल-चावल के साथ। तरीदार कटहल, मोटी रोटी या टिक्कड़ के साथ सुहाता है, गेहूँ-चने की रोटी के साथ भी और मोटे परांठे के साथ भी। तरीदार कटहल के साथ चावल खाना भी आनंददायक है। नानी और मम्मी जब कटहल बनातीं थीं तो थाली में कैरी की चटनी या सिरके में डूबे प्याज के साथ बहुत मजा आता था।
कटहल अब भी घर में उसी तरह खाते हैं। नानी का हुनर माँ के पास, माँ का हुनर बहन-बहुओं-बेटियों के पास, जो जितना ग्रहण कर ले लेकिन हर समय अलग-अलग समय में उन स्वादों की स्मृतियाँ बनी न रहें तो कैसे एक कटहल भर पर चार सौ शब्द लिख पाते भारती जी....................... आशा है आपने कल के लिए सब्जी बचा ली होगी। जरूर उस सब्जी को हमारी सुझायी सहायक खाद्य सामग्री से खाकर देखिएगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें