शनिवार, 18 जून 2016

चर्चा / उड़ता पंजाब : ठहरने को कहती एक फिल्म............


अभिषेक चौबे Abhishek Chaubey ने इसके पहले डेढ़ इश्किया फिल्म विशाल भारद्वाज के लिए बनायी थी। उड़ता पंजाब ने उनको यकायक सुर्खियाँ और चर्चा प्रदर्शन से पहले जिन कारणों के चलते दिला दीं, वह आप सभी को पता है, दोहराने का अर्थ नहीं है। उड़ता पंजाब फिल्म दो सप्ताह करीब जिन कारणों से चर्चा में रही, उसने हमेशा की तरह एक काम किया कि सिनेमाघरों में भीड़ भेज दी। यकायक सभी के संज्ञान में आ गयी इस फिल्म के साथ अनुराग कश्यप जो कि इस फिल्म के अनेक निर्माताओं में से एक हैं, लड़े और अखबारों के पहले पेज की सुर्खियाँ भी बने रहे, खैर फिल्म प्रदर्शन से दो दिन पहले वायरल होने के बाद अब सिनेमाघर में है, लोग देख रहे हैं, अपने आकलन कर रहे हैं, राय दे रहे हैं................
उड़ता पंजाब (Review : udta punjab by sunil mishr) एक स्थान पर पीढ़ी विशेष की ही बात नहीं करता बल्कि वह सारे वातावरण को देखता है जिसमें बचपन से लेकर प्रौढ़ता तक हानिकारक नशे का शिकार है, लत में है। बात इस तरह से ज्यादा जोर से की गयी है कि एक जनप्रतिनिधि इसके नेपथ्य में है जिसके प्रभाव से बड़ी आसानी से सारी व्यवस्था अनेक लाभों के चलते इस कारोबार में सहायक है। व्यवस्था में तंत्र से लेकर मनुष्य तक स्थूल और लचर अराजकताएँ कही-सुनी जाती हैं, सिनेमा में अनेक बार दिखायी गयी हैं, यहाँ भी उसी तरह से हैं। निर्देशक, अपनी पटकथा और कसे हुए सम्पादन से छोटे-छोटे दृश्यों में अपनी बात कहता, खत्म करता पूरे विषय को शुरू में ही उसकी भयावहता के साथ स्थापित करता है।
एक सिनेमा बनाते हुए दरअसल दिखाये जाने के उद््देश्यों और उसकी सार्थकता को लेकर हमारा दर्शक बहुत गम्भीर नहीं रहता, इसीलिए वह निर्देशक से भी कोई मांग नहीं करता। हमारे आसपास प्रायः कूड़ा फिल्में इसीलिए बहुतायात में आती हैं। सशक्त विषय और परिश्रमपूर्वक निर्वाह कई बार कुछ फिल्मों को अचानक से सुर्खियों में लाता है, उड़ता पंजाब के बारे में यही कहा जा सकता है। फिल्म में व्यवस्था, अनुशासन, प्रशासन और दायित्व की जगहों पर बैठे लोगों को उनकी जिम्मेदारियों के प्रति आगाह किया गया है। एक घातक नशा केवल घर या परिवार ही नहीं, राज्य और देश को भी किस तरह आर्थिक, सामाजिक और व्यवहारिक दृष्टि से ध्वस्त करता चला जाता है, यह चेतावनी फिल्म का सन्देश है।
यह फिल्म अपने सम्पादक के कौशल, निर्देशक की सूझबूझ और दृश्य गढ़ने की समझ, सधे हुए सिने-छायांकन, पटकथा और संवादों से दर्शकों से सीधे जुड़ती है। उड़ता पंजाब दूसरी साधारण फिल्मों की श्रेणी की फिल्म नहीं है। निर्देशक, पटकथा में मूल लेखक का सहयोगी होते हुए अनेक विवरणों तक जाता है। कई बार किसी गहरे दर्शक को फिल्म विचलित करती है तो आप उसकी सार्थकता का अन्दाज लगा सकते हैं। शाहिद कपूर, करीना कपूर, आलिया भट्ट, दिलजीत जोसांझ, सतीश कौशिक और अनेक सहयोगी कलाकारों के बेहतर काम के कारण आकृष्ट करती है लेकिन आलिया भट्ट और पहली बार परदे पर परिचित हुए दिलजीत जोसांझ के अभिनय की लम्बे समय याद दिलाती है।
आलिया भट्ट ने अपनी उम्र से बहुत आगे जाकर बेहद आश्वस्त होकर अपनी भूमिका निभायी है। दिलजीत तो खैर पूरी तरह किरदार लगते भी हैं। शाहिद कपूर रातोंरात ऊँचाई पर पहुँचे, एक साधारण युवा से बड़े गायक बने शाहिद की पूरी प्रतिभा दायीं आँख से जिस तरह व्यक्त होती है, निर्देशक और इस सितारे ने इस बात को समृद्ध किया है आपस में, दर्शक शाहिद के चरित्र निर्वाह को इस नजरिए से देखें, लोकप्रियता का अहँकार, पराभव की कुण्ठा, भय, चिढ़, गुस्सा और भीतरी पराजय को वे मेहनत से सामने लाते हैं। करीना की भूमिका सीमित है। फिल्म में उनका मारा जाना सहानुभूति प्राप्त करता है, उसी दृश्य को दिलजीत के छोटे भाई के हाथ हुई दुर्घटना से मजबूत किया गया है। सतीश कौशिक ने इस फिल्म में एक दिलचस्प किरदार निभाया है जो बाजार और संवेदना की लोटपोट के साथ धन लगाने और चौगुना करने के कारोबार में बाजार साधने में लगे तथाकथित हितैषियों की छबि को सामने लाता है। सतीश कौशिक, पंकज कपूर के अच्छे मित्र हैं और शाहिद के अंकल भी। दोनों के बीच अनेक बार ऐसे दृश्य घटित होते हैं जो बाजार के गणित को बखूबी जाहिर करते हैं।
गाने-वाने तो खैर ठीक हैं, एक गायक की जिन्दगी से बात ली गयी है पर पाश्र्व संगीत को लेकर इधर युवा प्रतिभाशाली निर्देशक अच्छी मेहनत करते हैं। वातावरण में दृश्य के लिए उतनी ही ध्वनि या प्रभाव जितना उसको सहयोग करे।
फिल्म को समीक्षकों ने भी अपनी-अपनी तरह से देखा है।अलग-अलग सितारे बाँटे हैं जो शायद तीन के भीतर ही हैं। मुझे लगता है कि यह तीन से अधिक सितारे देने वाली फिल्म है...................दर्शक* भी प्रदर्शन के इन तीन-चार दिनों में अपनी उपस्थिति से कुछ कहेंगे ही..................हाँलाकि फिल्म में भी बीच-बीच में दर्शक अनेक गम्भीर दृश्यों, चिन्ताजनक परिस्थितियों को हँसकर या ठिठोली करते हुए प्रतिक्रियित हो रहे थे
*कल दो बजे रात फिल्म देखकर निर्गम द्वार से बाहर निकला तो तीन-चार प्रौढ़ता की ओर बढ़ते युवाओं ने एकदम मुझे पकड़ लिया, पूछने लगे, अंकल आपको फिल्म कैसी लगी............और फिर सभी समवेत खिलखिलाते हुए बोले, डिस्प्रिन के लायक न................मैं उनको चकित भाव से देखता हुआ बिना कुछ कहे आगे चला गया...................हमारे दर्शक वर्ग......

Keywords - Udta Punjab, Anurag Kashyap, Abhishek Chaubey, Sunil Mishr, उड़ता पंजाब, अनुराग कश्‍यप, अभिषेक चौबे, सुनील मिश्र
+Sunil Mishr 

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