शनिवार, 4 नवंबर 2017

अपनी आँच, अपने ताप में दिखायी देती ऊष्‍मा

Film Review/ Secret Superstar


सीक्रेट सुपर स्टार...............



कई बार लगता है कि हमारे जीवन में ऊष्मा कितनी जरूरी है, ऊष्मा न होगी तो संवेदनहीन जड़ता की बर्फ कैसे पिघलेगी? गनीमत है कि ऊष्मा कभी-कभी अपनी आँच, अपने ताप में दिखायी देती है, महसूस होती है। जब जब ऐसा होता है, बर्फ पिघलती प्रतीत होती है.............

अच्छा ही है, बहुत जल्दी में नहीं था, रहता भी नहीं, सीक्रेट सुपर स्टार देखने का समय और अवसर जुटा पाया तो अपनी धारणा का विश्वास जगा और उसे फिर से दोहराकर लिखने की कोशिश की। मेरे सामने एक फिल्म जैसे किसी उपेक्षित संसार का हिस्सा घटित हो रहा है। वह हिस्सा जो आमतौर पर हमारी भटकी हुई आँखों को दीखता ही नहीं है। हमारा दिन, हमारा जीवन और बहुत सारा समय जिस तरह से अपनी चिन्ताओं में, अपने द्वन्द्व में, अपने स्वार्थ में घटित होता है, कैसे और कब इन्सिया जैसे बच्चों, नजमा जैसी स्त्रियों को अपनी संवेदनाओं के फ्रेम में हम देख पायेंगे, पता नहीं.......

सीक्रेट सुपर स्टार, एक ऐसी बच्ची की फिल्म है जो सहमी हुई नहीं है लेकिन मर्यादा में है, उसके स्वप्न बहुत मौलिक और ताजा हैं मगर भय और संकीर्णताओं के कांटेदार तार, नोक उठाये तलुओं को छेद देना चाहते हैं। छोटी सी बच्ची को माँ के साथ हुए सलूक का पता है, उसकी रक्ताभ और सूजी आँख के पीछे की हिंसा का पता है। पिता अपने हठ और अपने दुराग्रहों को दोहराना नहीं चाहता, उसके बदले में हिंसा उसके लिए ज्यादा आसान है। इन्सिया के सपनों का जहाज सचमुच का जहाज नहीं बल्कि कागज का बना वो हल्का सा, बड़ी हद तक चतुर सा वो जहाज है जो बड़ौदा के एक साधारण मध्यमवर्गीय घर से हर विरोधी हवा को धता बताता हुआ, काँख के नीचे से कब उड़कर मुम्बई पहुँच जाता है, पता ही नहीं चलता।

इन्सिया की कहानी एक रेल में छात्राओं के उस समूह से फोकस होकर शुरू होती है जो पिकनिक से लौट रहे हैं। उसी की उम्र का लड़का चिन्तन, इन्सिया के सपनों को कोमल पंखे से झलता है। इस लड़के तीर्थ शर्मा ने पूरी फिल्म में बड़े अनुशासन के साथ काम किया है। जायरा वसीम की यह फिल्म है, वह यदि इन्सिया को उसी आत्मा में इस तरह उतर कर न जीती तो बात न बनती। दंगल से उसे आमिर खान के साथ काम करने का मतलब पता है लिहाजा यह दूसरा तजुर्बा उनके लिए लैण्डमार्क है। मेहर विज, माँ की भूमिका में अपने किरदार से समरस हैं। मैं गुड्डू कबीर साजिद शेख की प्रतिभा का कायल हुआ हूँ। क्या खूब बच्चा है, बहन के साथ, माँ के साथ, भयभीत, माँ को मार खाता देखकर, बहन का लेपटाॅप सुधारता हुआ ओह। पीपली लाइव की बड़ी आपा यहाँ भी हैं। मोना अम्बेगाँवकर एक दृश्य में शक्ति कुमार बने आमिर खान से खूब मोर्चा लेती हैं। मेरे मित्र राज अर्जुन, इन्सिया के पिता फारुख मलिक, सीमित दायरे में सोचने वाले, अपनी ही कुण्ठाओं और संकीर्णताओं में फँसे आततायी और हिंसक पिता के रूप में दर्शकों से जितनी नफरत पाते हैं, उनके लिए वह उतनी ही तारीफ है। अपने किरदार को प्रत्येक दृश्य में वे बिना जरा सा भी विचलित हुए जीते हैं।

आमिर खान के लिए क्या लिखूँ। मुझे लगता है कि उनकी प्रतिबद्धता, काम के प्रति उनकी असाधारण गम्भीरता और एक उत्कृष्ट से अगले उत्कृष्ट तक लांघ-फलांग उनके किसी समकालीन के बस की नहीं है और शक्ति कुमार के रूप में एक अलग सा मूडी, गुणी, अख्खड़ और वक्त पड़ने पर उस संवेदना से चिन्हित होना जिसकी इन्सिया जैसे बच्चों को जरूरत है, यह गहराई उनके जैसे कलाकार ही अपने भीतर से निकालकर प्रकट कर सकते हैं। शक्ति कुमार के किरदार में वे एक फड़कते हुए, चुहलबाज, दिलफेंक और फ्लर्टी आदमी के रूप में जो प्रभाव देते हैं, इन्सिया के साथ दृश्यों में उनकी अलग ही पहचान होती है। वह दृश्य दिलचस्प है जब वे अपनी पत्नी की वकील से इन्सिया के लिए मदद मांगते हैं जिससे वे बेहद चिढ़ते हैं क्योंकि उसी वकील शीना सबावाला ने उनका तलाक करवाया है..........


अद्वैत चन्दन, निर्देशक वाकई यह आपकी फिल्म है। आप फिल्म के एक-एक फ्रेम में अपनी दृष्टि और क्षमताओं के साथ उपस्थित हैं। इतनी बड़ी समीक्षा पढ़ने की फुरसत किसी को नहीं वरना मेरा मन एक-एक डीटेल्स में जाने को करता है, कैसे आप एक निम्न मध्यमवर्गीय घर के कमरे को बनाते हैं, कैसे उसका एक-एक सामान, छू जाने वाली सेट डिजाइनिंग, सिलाई मशीन, घर के लोगों का पहनावा, भोजन, थाली, सिंकती हुई रोटियाँ, संवेदनाओं के दृश्य, नन्हें भाई का बहन के लिए प्रेम, परिवार में बेटे को अधिक महत्व दिये जाने वाले दृश्य और संवाद ओह विचलित करके रख देते हैं आप।

सीक्रेट सुपर स्टार को देखते हुए मेरी तरह और भी कई दर्शक अपने आँसू और नाक पोंछते प्रतीत होते हैं। कोई सिनेमा यदि इस तीव्रता में, इस कोमलता में, इस संवेदना में हृदय को भेद दे तो वह सच्चा सिनेमा कहलाता है, अन्यथा फूहड़ता, घटियापन और भदेस पर दाँत निकालकर ताली बजाने वाले सड़कछाप से लेकर एलीट दर्शकों तक इतने लोग हमारे आसपास हैं कि ऐसी फिल्में बाॅक्स आॅफिस पर अपनी झोली, बिना डकार लिए भरती ही जा रही हैं............


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