सोमवार, 6 नवंबर 2017

सीक्रेट सुपर स्‍टार का शक्ति कुमार

आमिर खान होने का अर्थ



सीक्रेट सुपर स्टार पर लिखते हुए आमिर खान पर दो-तीन वाक्य ही लिख पाया था। दरअसल उन पर अलग से लिखने का मन था क्योंकि उनका चरित्र परदे पर और फिल्म के अविभावक के रूप में जिस तरह का सिद्ध है, वह और अधिक की अपेक्षा करता है। किसी भी नायक के लिए उस फिल्म में अपने होने या न होने अथवा कितना होने की स्वतंत्रता बहुत आसान होती है यदि वह उस फिल्म का निर्माता या नियन्ता भी हो। वह यदि उस फिल्म का दृश्य और चरित्र में हिस्सा बन रहा है तो अपनी जगह को पहले रेखांकित कर लेना चाहता है। आमिर इससे उलट हैं। वे अपनी फिल्मों के ऐसे अविभावक रहे हैं जो या तो फिल्म में है ही नहीं और यदि आवश्यकतानुसार है भी तो अपने होने की मात्रा स्वयं तय करके, अपना नियंत्रण भी स्वयं करते हुए। यह बात भी उनको औरों से विशिष्ट बनाती है। 

मैं यह बात इसलिए भी करना चाहता हूँ कि भोपाल के निकट ही एक गाँव में उनकी फिल्म पीपली लाइव बनी थी। उन्होंने उस फिल्म की निर्देशक को पूरी स्वतंत्रता प्रदान की थी। नाॅन स्टाॅप शूटिंग शेड्यूल में बिना कहे, बिना प्रचारे एक रात वे भोपाल एयरपोर्ट पर मुम्बई से आकर उतरे। उनके हाथ में एक किताब भर थी। एयरपोर्ट पर गाड़ी खड़ी थी जो उनको सीधे लोकेशन पर ले गयी। थोड़ी देर वे यूनिट के साथ रहे, प्रगति की जानकारी ली, कलाकारों से बात की, फिर अपने एक-दो साथियों के साथ उस गाँव में घूमने निकल गये। वे रात को कई घरों में गये, बैठे, बात की, बुजुर्गों से, बच्चों से, उनके माता-पिता से, उनका काम धंधा जाना, मुश्किलें कठिनाई जानीं। इस बीच वे अपने साथियों से धीमे धीमे कुछ कहते भी रहे। 

आधी रात वे लोकेशन पर फिर लौट आये और वेनिटी वेन में बैठकर किताब पढ़ने लगे। भोर हुई तो गाड़ी उनको लोकेशन से भोपाल एयरपोर्ट ले आयी और वे मुम्बई चले गये। दिलचस्प यह कि रात जिन घरों में गये, जो कुछ जरूरत की चीज उनको नहीं दिखी, वे चीजें अनेक घरों में उनके साथी अगले दिन रख आये। यह उसी रात का निर्देश था, उनका अपने साथियों को। इसकी कहीं कोई चर्चा नहीं है, न दिखावा न ही पाखण्ड।

आमिर खान ऐसे हैं। वे तारे जमीं पर में भी इण्टरवल में आने वाले निकुम्भ सर हैं। यह दर्शील की फिल्म थी, आमिर ने अपने को लो-प्रोफाइल रखते हुए दर्शील को भरपूर फैलाव दिया। सीक्रेट सुपर स्टार, तारे जमीं पर के ठीक बाद की फिल्म है भले वो अब बनी है मगर दोनों किसी अनमोल किताब के पहले और आखिरी पृष्ठ के आवरण हैं, मजबूत दफ्ती वाले। दर्शकों को, जो सिनेमा को थोड़ा सा भी व्यसन से मुक्त मानते हों, दोनों फिल्में एक के बाद एक देखनी चाहिए, पुनरावलोकन की तरह। सीक्रेट सुपर स्टार भी अविभावकत्व में समाहित मसीहाई कुटैव पर छींटे मारने वाली फिल्म है। बात शुरू इस फिल्म में आमिर खान के किरदार को लेकर हुई थी, शक्ति कुमार..........

ये शक्ति कुमार भी अपने हुनर और स्वभाव का वशीभूत है। उसका अपना एक्सीलेंस अहँकार के सिर चढ़कर बैठता है। उसका पारिवारिक जीवन ठीक नहीं है, दूसरा तलाक भी हो गया, प्रेस से बात करते हुए लगभग फुँफकारता सा शक्ति कुमार बात-बात पर सर्प की तरह साँस छोड़ता है, आप देखिए किस तरह किरदार गढ़ा गया है! आमिर को दृश्य में इस तरह उपस्थित होते हुए देखना अचरज से भरा है। इन्सिया की मदद करने के लिए अपनी तलाकशुदा बीवी की वकील से बात करने का ढंग, इन्सिया की वजह से नरम पड़ना, समझौता करना, वकील के आॅफिस जाना, आदत से मजबूर रसिक मिजाज शक्ति का टेलीफोन आॅपरेटर से ही फ्लर्ट करना, पानी को पूछे न जाने लायक अपमानजनक स्थिति में भी वह इन्सिया के साथ है। 

वह दृश्य बड़े अच्छे हैं जिसमें इन्सिया के साथ नींबू पानी पीते हुए वो बात कर रहा है या कि एयरपोर्ट से भीतर जाती इन्सिया का फिर दौड़कर वापस आना और शक्ति से लिपट जाना। एक बच्ची, सामाजिक रूप से सिद्ध असभ्य, दुष्ट और घमण्डी आदमी में अपने पिता से बेहतर मनुष्य देख पा रही है, यह सब चमत्कार आमिर खान आसानी से करते हैं। शक्ति कुमार जब अपने स्‍वभाव, अपनी पसन्‍द, नफरत के बारे में इन्सिया से कार में बात करता है तब यह नहीं लगता कि एक उम्रदराज और अनुभवी आदमी उस मासूम बच्‍ची से अपने गुरूर का बखान कर रहा है बल्कि यह लगता है कि संवेदना के धरातल पर दो समान समझ वाले आपस में बात कर रहे हैं, पिता और बेटी की उम्र के। परदे पर उनका ऐंठा हुआ चेहरा, अजीब से बाल, पहनावा, मेकअप, आभूषण और सनक देखकर बहुत हँसी आती है। पिछली फिल्म तलाश और दंगल का यह महानायक क्या बनकर आ गया है...........आश्चर्य है!

सीक्रेट सुपरस्टार तो वे भी कहलाये, आमिर खान क्योंकि फिल्म के मूल में होकर भी वे दृश्य में, केन्द्र में नहीं होते। दृश्य और केन्द्र में होती हैं परिस्थितियाँ अपने यथार्थ के साथ जिससे जूझकर, लड़कर, तमाम जोखिम उठाकर ही इन्सिया सीक्रेट सुपर स्टार बन पाती है............


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