गुरुवार, 20 अगस्त 2020

सिनेमा कथा

 गतांक से आगे......

जब प्राण को देखकर प्राण कॉंप गये

 
लिखने से पहले अपनी दो एक चिढ़ निकाल लूँ। एक तो फेसबुक में जस्टिफाय टेक्‍स्‍ट का प्रावधान नहीं है। फिर आप शीर्षक को सेंटर में नहीं लिख सकते। सब मिलाकर लेफ्ट अलाइन। खैर लेफ्ट हेण्‍डर को लेफ्ट अलाइन से परहेज नहीं होना चाहिए जब वह गुल्‍ली डंडा, बैट बल्‍ला भी उल्‍टे हाथ से खेलता हो। 
 
बहरहाल, सिंघ की कोख में सियार, उस बच्‍चे को अम्‍मॉं अक्‍सर कहा करती थी। रात सोने के पहले जब वह मॉं से कहता, बाथरूम जाना है (यह सुथरा वाक्‍य है, कहता तो था मुत्‍ती करने जाना है) तो मॉं कह देती कि चले जाओ। तब वह कहता, आंगन में बत्‍ती बन्‍द है, तुम भी साथ चलो। इस पर थोड़ा चिढ़कर अम्‍मॉं बत्‍ती जला देती। तब भी वह ठुनककर कहता कि मम्‍मी तुम भी साथ चलो। तब दिन भर के काम से थकी अम्‍मॉं चिढ़कर उठती फिर खासे व्‍यंग्‍य के साथ कहती, अजीब लड़‍िका, सिंघ की कोख मा सियार पइदा भा। बच्‍चा क्‍या जाने, उसे उस वक्‍त जो करना था, जैसे करना था, करके प्रसन्‍न हो गया फिर प्‍यार से उसी अम्‍मॉं के पेट पर पॉंव रखकर सो गया। ऐसा प्राय: होता।  

अच्‍छा लड़का छोटेपन से सिनेमा में घुसा हो ऐसा नहीं था। अम्‍मॉं को भी शौक था। अबकी गरमियों में जब अम्‍मॉं कानपुर गयीं तो तीसरे दिन तैयार होकर अप्‍सरा में राम और श्‍याम जाने को हुईं। इरादा यह था कि चुपके से चले जायें। लड़के को पता न चले। अम्‍मॉं ने अपनी अम्‍मॉं यानी लड़के की नानी को कह दिया था कि हम चुपके बहाने से निकल जायेंगे। पर लड़का चगड़ था वह जान गया कि उसको नहीं ले जा रही हैं, खुद अकेले जा रही हैं तो पैर पटककर रोने लगा। अच्‍छा, रोते हुए वह मुँह ऐसे बिसूरता था कि दो और मिलाकर देने का जी करता था लेकिन अम्‍मॉं के पास कोई चारा न था। साथ ले जाना पड़ा।  

लड़का बड़ा खुश। हाथ पकड़े साथ जा रहा था। अम्‍मॉं चिढ़ी सी थीं सो खींचे लिए जा रही थीं, लड़का भी खिंचा चला जा रहा था पर था खुश। गड़रिया मोहाल की गलियों से निकलते हुए मछली मार्केट से होते हुए अप्‍सरा पहुँच गये और टि‍कट लेकर अन्‍दर। लड़का मन ही मन खुश। उसका टिकट अलग लिया गया था क्‍योंकि तीन साल से ऊपर का था। अब बगल में बैठे बैठे बार बार उछले काहे से सामने जो बैठे थे वो लड़के की तरह तीन साल से ऊपर भर थोड़ी थे, वो चालीस साल के थे तो दिख नहीं रहा था। लड़के ने फिर पसड़ मचायी, तब अम्‍मॉं न खीजकर, खींचकर गोद में बैठा लिया और तभी राम और श्‍याम शुरू हो गयी।
 
सिनेमाघर में अंधेरा तो था ही, जरा देर में लड़का ऊबने लगा। अम्‍मॉं धीरे धीरे डॉंटने लगीं, इसीलिए कह रहे थे, नानी के पास खेलो मगर मानते ही नहीं। अब चुप्‍पै बइठो। लड़का थोड़ी देर बात रखने के लिए चुप बैठा रहा। इतने में सामने जो घटित हुआ तो लड़का थर थर कॉंपने लगा। एक बड़ा गुस्‍सैल, ऑंखों से अंगारे बरसाता हुआ, हाथ में कोड़ा लिए आदमी, एक अच्‍छे खासे बड़े और डरे से आदमी को सीढ़‍ियों से मारते हुए, गिराते हुए नीचे ले आ रहा है और रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। वह जोर जोर से कुछ बोल भी रहा था। इधर लड़के का सब्र छूट गया। अम्‍मॉं से कहने लगा, अभी घर चलो, अभी बाहर चलो ये आदमी हमें भी मारेगा। सब बन्‍द है, अंधेरा है, मम्‍मी चलो अभी चलो, बाहर चलो। अम्‍मॉं ने बहुत समझाया कि ये अभी चला जायेगा। फिर सब ठीक हो जायेगा। लड़के की दोनों ऑंखों में हाथ रख लिया ताकि देख न सके। लेकिन फिर भी परदे पर जो ये भयानक मंजर देखा, लड़के ने मॉं का फिल्‍म देखना दूभर कर दिया।  

आखिर अम्‍मॉं को उठना पड़ा। दो टिकिट के बदले आधे घण्‍टे की फिल्‍म देखकर झुंझलाती, सिर धुनते अम्‍मॉं बाहर आयी। दो थप्‍पड़ लड़के को भी लगाये। लड़का अपना छोटा मोटा रो धोकर चुप हो गया। फिर खुद ही साड़ी के पल्‍ले से उसका मुँह पोंछकर आगे हीरपैलेस के पास टहलाती हुई ले गयी और वहॉं पानी के बतासे खाकर और इस लड़के को भी एक-दो चिढ़े मन से ठुँसाकर घर लौट आयी। नानी ने अम्‍मॉं से पूछा, बिटिया बड़ी जल्‍दी आ गयीं, सनीमा नहीं देखा क्‍या, इसके जवाब में अम्‍मॉं ने अपनी अम्‍मॉं के सामने लड़के को दो ठूँसे और मारे और कहा, तुमसे कहा था अम्‍मॉं, इसको बहलाकर पास रख लो पर ये ऐसा पीछे पड़ा कि न खुद पिक्‍चर देखी न हमें देखने दी। प्राण मारता गिराता अपने साले दिलीप कुमार को सी‍ढ़ि‍यों से नीचे ला रहा था उतने में इसने बैठना दूभर कर दिया। अब आगे से न हम कहीं जायेंगे न इसे ले जायेंगे।
 
सिंघ की कोख में सियार पइदा भा…………...वे बुदबुदाकर बोलीं और मूड खराब करके सो गयीं। लड़का जो था उसका मूड अच्‍छा था, उसके साथ नानी लाड़ करने लगीं। लड़का अब सब भूल चुका था।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें