शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

विनोद खन्ना


सधा हुआ और अनुशासित कलाकार


विनोद खन्ना पर लिखने के लिए बहुत गुंजाइश है। खासकर तब जब आप ऐसे नायक की फिल्में देखते हुए बड़े हुए हो, संघर्ष में रहे हो या रूमानी चेतना में आये हो, यह नायक आपके दिमाग में अपनी एक जगह के साथ मौजूद मिलता है। विनोद खन्ना का खलनायक होना याद है क्योंकि मेरा गाँव मेरा देश, पत्थर और पायल और कच्चे धागे जैसी फिल्म याद है। उनका सहनायक होना याद है क्योंकि हाथ की सफाई, हेराफेरी, परवरिश, मुकद्दर का सिकन्दर, अमर अकबर एंथनी याद हैं। उनका स्वतंत्र नायक होना याद है क्योंकि मेरे अपने, इम्तिहान से लेकर इधर बँटवारा तक की याद है। बीच-बीच की कुछ इन्कार जैसी फिल्में भी याद हैं जिसमें उनका रोल एकदम जेम्सबॉण्ड की तरह था। उनको शक और रिहाई फिल्‍म के लिए भी याद रखता हूँ।
कुछ अच्छी स्मृतियों के साथ कुदरत, राजपूत आदि को नहीं भूल सकता। गुलजार जैसे निर्देशक के साथ मेरे अपने, अचानक, परिचय, मीरा, लेकिन नहीं भूल सकता। विनोद खन्ना का परदे पर होना सम्मोहन के एक ऐसे प्रभाव का होना था जो मारक होता था, मादक होता था और भीतर से खासा मजबूत भी जब आप देख रहो हो, हाथ की सफाई में पर्स उड़ाते हुए वो रणधीर कपूर का हाथ पकड़ लेते हैं या अमर अकबर अंथनी में अंथनी अमिताभ बच्चन की दादागीरी, पुलिस का बेल्ट और वरदी उतारकर धुनाई करते हुए उतारते हैं।
वे फिरोज खान के साथ कुरबानी में बराबर की भूमिका लेकर आते हैं फिर यही फिरोज खान दयावान में अपनी भूमिका को छोटी और विनोद खन्ना की भूमिका को बड़ी विस्तारित कर देते हैं। इधर का उत्तरार्ध जो पिछले कुछ चार-पाँच-छः सालों का था, बड़ा दिलचस्प था जिसमें वे वाण्टेड, दबंग और दबंग-2 में सलमान के पिता बनते हैं। दबंग के दोनों भाग, खासकर दूसरा तो पिता-पुत्र की केमेस्ट्री का लाजवाब साक्ष्य है। विनोद खन्ना के पूरे कैरियर को आप देखिए, देखेंगे कि वो किरदार में कलाकार का जरा सा भी अतिरेक नहीं है बल्कि सधा हुआ और अनुशासित है। उसकी देहयष्टि, आँखें, हस्की आवाज और मुस्कान में बड़ी क्षमताएँ थीं जो नायक के रूप में औरों से कई बार ज्यादा प्रभावी होती थीं।
बॉलीवुड में इधर कुछ वर्षों क्या कई वर्षों से निर्मम होते रिश्तों और समाज की जितनी चर्चा होती है उतना ही धिक्कारा भी जाता है पर यह संवेदनहीनता उसका ही नहीं हमारे समाज का भी हिस्सा होती जा रही है। वातावरण विनोद खन्ना के शोक से तत्काल मुक्त होना चाहता है और बाहुबली के साथ सेलीब्रेट करना चाहता है। ठीक है, बाहुबली को आने दीजिए, ऐसा भी क्या, कुछ देर तो विनोद खन्ना की स्मृति के साथ रहिए................

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