बुधवार, 5 अप्रैल 2017

किशोरी अमोणकर

क्‍या गुस्‍साना, क्‍या डूबकर गाना.....



विभूतियों का हमारे बीच बना रहना किसी भी रचनात्‍मक व्‍यक्ति को उससे एक भीने अनुराग से जोड़े रखता है। आप उनके बहुत अधिक निकट नहीं भी होते तब भी प्रतिभा और सर्जना का एक ऐसा अचूक अचम्‍भा आपको उस अनुभूति से पगाये रखता है जितना यथाक्षमता आप उनके बारे में जान पाते हैं।

किशोरी जी कल तक हमारे बीच असाधारण प्रतिभासम्‍पन्‍नता के साथ कायिक उपस्थिति के रूप में हमारी चेतना का हिस्‍सा थीं। अचानक गहराती रात उनके स्‍मृतिशेष होने का अकल्‍पनीय यथार्थ सामने ले आती है। आज अपरान्‍ह में यह विदुषी पंचतत्‍व में विलीन हो जायेंगी लेकिन विभूति के रूप में उनको और उनकी कमी को और ज्‍यादा अहसासा जायेगा......कुछ समय बाद जमाना, हम सब अपनी चाल में फिर चलते-फिरते नजर आयेंगे लेकिन यह दुखद सच है कि निरन्‍तर मूर्धन्‍यों का जाना और इस धरा से रिक्‍त होना बहुत असहज करता है..........

स्‍वर ऊष्‍मा भी होते हैं, ताप भी और मन पर शीतल चन्‍दन सा लेप भी। किशोरी अमोनकर जी को हम ऐसे ही स्‍मरण-स्‍फुरण में याद करेंगे। अमोल पालेकर ने एक घण्‍टे की एक सुन्‍दर फिल्‍म उन पर हाल ही कुछ वर्ष पहले बनायी थी, भिन्‍न षडज.......उस फिल्‍म को किशोरी जी के कृतित्‍व का सबसे महत्‍वपूर्ण दस्‍तावेज माना जा सकता है। फिल्‍म में किशोरी जी से एक लम्‍बा संवाद, टुकड़े-टुकड़े बातचीत और उनके सर्जनात्‍मक अवदान पर उनके समकालीन और अनुसरणीय संगीतज्ञों से चर्चा की गयी है जिनमें उस्‍ताद जाकिर हुसैन, पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया, उस्‍ताद राशिद खाँ आदि शामिल हैं।

भोपाल इस मामले में सौभागी है कि यहाँ के रसिकों को कुछेक बार उनको सुनने के अवसर मिले। भारत भवन में वे 1995 में आयीं। 2007 में उनका आना हुआ और फिर 2013 में। एक बार तो सुबह की सभा में उनको यहाँ पर सुना गया। उनका सबसे बड़ा गुण अपने स्‍वभाव में होना था। वे मर्यादित और अनुशासित परिवेश की आग्रही कलाकार थीं। 

कण्‍ठ से लेकर मन तक किशोरी जी जिस विलक्षणपन को जीती थीं, वह अनूठा अद्भुत था। अब उनका सब याद रह जायेगा, गुस्‍साना और अतल गहराइयों में डूबकर गाना। वो विलक्षण सभा-संगत अब और देखने को नहीं मिलेगी.............


अलविदा किशोरी ताई.................

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