आज के सिनेमा के नायक-नायिकाओं को माॅं की कमी पूरी होने को है ?
कुछ वर्ष पहले जब एक अच्छी फिल्म इंग्लिश-विंग्लिश से उन्होंने वापसी की थी तो फिल्म के अच्छा होने के बावजूद व्यावसायिक सफलता न मिलने से उनका वह कमबैक उनके लिए कोई काम का न रहा। इस बीच पति बोनी कपूर पर यह दबाव बना रहा कि वे श्रीदेवी के लिए कोई अच्छा प्रोजेक्ट तलाशें और उनकी ठीकठाक वापसी हो। मोम को इसी ठीकठाक वापसी वाला परिणाम माना जा रहा है जिसमें वे अक्षय खन्ना और नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ एक सशक्त भूमिका में आयी हैं। स्वाभाविक रूप से ऐसे सिनेमा का धन से भरापूरा या धनवर्षा जैसा कारोबार नहीं होता लेकिन यदि ऐसी फिल्म श्रीदेवी के सशक्त किरदार और उसी की तरह निभायी गयी उनकी भूमिका के साथ बराबर की तौल करती हैं तो उनकी इस वापसी की सराहना के साथ आगे के लिए उनके सामने कुछेक द्वार जरूर खुल सकते हैं।
हालाँकि यह भी तय है, जैसा कि फिल्म इण्डस्ट्री का चलन भी है कि सितारे जब युवा पुत्र-पुत्रियों के पिता हो जाते हैं तो उनको फिर अपनी महात्वाकांक्षाओं को दबाते हुए उनके लिए मार्ग प्रशस्त करना होता है। रिटायरमेंट की यह एक दूसरी तरह की अवस्था है जिसमें आपको अपने ही बच्चों के लिए मैदान छोड़ना पड़ता है। इस मनोविज्ञान को अनिल कपूर जैसे सितारे बिल्कुल की मानसिक तौर पर स्वीकार नहीं कर पाये लेकिन बावजूद उसके उनका अवकाश लम्बा हो ही गया। श्रीदेवी भी थोड़े समय बाद अपने निर्माता पति से बेटियों के लिए भी फिल्में बनाने को कहेंगी ही, इस बीच थोड़ा वक्त वह निकल आया है जब वे अपनी अधूरी कामनाओं को रुपहले परदे पर आकर पूरा कर लेने का अवसर बिल्कुल भी नहीं गवाँ रही हैं।
बच्चों का नायक-नायिका के रूप में कैरियर आजमाने के ठीक पहले तक का बड़ा होना नायिकाओं के लिए ऐसा ही एक अवसर बनकर आया है जब हम काजोल को भी समयसापेक्ष सक्रियता के दौर में देख रहे हैं। पति के खासे स्पर्धी लेकिन अपने अच्छे मित्र शाहरुख खान के लिए उन्होंने दिलवाले फिल्म में काम करना स्वीकार किया था। इस समय उनकी चर्चा दक्षिण की एक फिल्म वेलईल्ला पट्टधारी 2 में रजनीकान्त के दामाद धनुष के विरुद्ध एक ग्रे-शेड की प्रभावी भूमिका के साथ हो रही है। जिन लोगों ने इस फिल्म का टीज़र देखा है वे काजोल के तेवर से चकित हैं। काजोल के बारे में कहा जाता है कि वे फिल्मों में अपने किरदार को लेकर बड़ी सजग रहती हैं। यह भूमिका उन्होंने देखभाल कर ही स्वीकार की है। इस फिल्म को रजनीकान्त की बेटी सौन्दर्या निर्देशित कर रही हैं।
एक तरह से देखा जाये तो स्थापित अभिनेत्रियों का लौटना हिन्दी सिनेमा के आज के संक्रमणकाल में एक नयी सम्भावनाओं की तरफ संकेत करता है। समय के साथ हमारी फिल्मों में नायिका की सक्रियता की अवधि बहुत कम होती गयी है। नायकप्रधान सिनेमा ने आज की नायिका को गौण कर दिया है। माधुरी दीक्षित, काजोल, जूही चावला, श्रीदेवी आदि का समय स्टारडम में अच्छी-खासी स्पर्धा और रोमांचकारी परिणामों का रहा है। यही दौर अस्सी के बाद से सन 2000 तक नायिकाओं के लिए आखिरी स्वर्णिम काल रहा। यदि ये अभिनेत्रियाँ बदले किरदारों, चरित्र भूमिकाओं के ही सही दमखम के साथ लौटती हैं तो निश्चित ही सिनेमा के आज को एक अलग सा तेवर मिलेगा।
अाजकल कुछ अलग तरह की फिल्में भी बन रही हैं, निर्माता और दर्शक दोनों ही कुछ बदलाव चाह रहे हैं फिल्मों मे । अभी हाल मे ही एक फिल्म गाज़ी अटैक देखी, बहुत अच्छी लगी, कहीं कोई पारंपरिक ढंग का कोई तामझाम नहीं, न हीरो, न हीरोइन, न नाच न गाना फिर भी एक बेहतरीन कहानी पर एक बेहतरीन फिल्म
जवाब देंहटाएंजहाँ तक पुराने या यूँ कहें कि अनुभवी कलाकारों के पुनरागमन का सवाल है तो अगर अायु और अनुभव के अनुकूल किरदारों के अाधार पर होगा अवश्य ही सुखद होगा जैसे कि श्रीदेवी की इंगलिश-विंगलिश ...
कुल मिला कर हिन्दी सिनेमा मे एक सुखद, सुहावनी बयार चली है अच्छी फिल्मो की, उम्मीद है कि कुछ अच्छी अच्छी फिल्में भी देखने को मिलेंगी। बाकी भेड़चाल तो जारी है और रहेगी
मंजु मिश्रा
www.manukavya.wordpress.com
आपका कहना सही है मंजू जी। भारतीय सिनेमा, विशेषकर हिन्दी सिनेमा में अनेक तरह के सकारात्मक उतार-चढ़ाव भी देखने को मिला करते हैं। हमें दर्शक की सहनशीलता और क्षमता का आदर करना चाहिए कि वो अपने प्रतिसाद से सिनेमा और उसके बनाने वालों को सचेत भी किया करता है। यही कारण है कि आपको यह सुखद बयार महसूस होती है। आदर और आभार के साथ....
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