शुक्रवार, 16 जून 2017

सांस्कृतिक आयोजनों की उद्घोषणा : एक रचनात्‍मक कार्यशाला भोपाल में

पिछले साल संस्कृति विभाग की ओर से सांस्कृतिक आयोजनों की उद्घोषणा की कार्यशाला प्रयोग बतौर आयोजित की गयी थी जिसमें मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए वरिष्ठ देशव्यापी ख्याति के उद्घोषकों सुश्री साधना श्रीवास्तव Sadhna Shrivastav, श्री संजय पटेल Sanjay Narhari Patel एवं श्री विनय उपाध्याय Vinay Upadhyay की भागीदारी के साथ लगभग 16-20 के बीच जिज्ञासु और उत्साही युवाओं ने हिस्सा लिया था।
जनजातीय संग्रहालय की वर्षगाँठ पर यह प्रयोग दोहराया गया और 6 से 11 जून तक पुनः यह कार्यशाला आयोजित की गयी तो जिस तरह का प्रतिसाद मिला वह बहुत सुखद और उल्लेखनीय रहा। लगभग 28-30 युवाओं ने इस बार के प्रकल्प को आगामी ऊर्जा और सम्भावना से भर दिया।
इस बार मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए सुश्री समीना अली सिद्दीकी Sameena Ali Siddiqui और श्री विनय उपाध्याय थे। सुश्री समीना राज्यसभा टेलीविजन के लिए कलाकारों से साक्षात्कार करती हैं और दिल्ली में अनेक महत्वपूर्ण आयोजनों की उद्घोषिका होती हैं। श्री विनय उपाध्याय, रंग संवाद के सम्पादक, वरिष्ठ सांस्कृतिक अध्येता, विश्लेषक एवं उद्घोषक। बीच में विशेष उपस्थिति हिन्दी फिल्मों के सफल कला निर्देशक एवं मूलतः रंगकर्मी श्री जयन्त देशमुख Jayant Deshmukh और भोपाल से सुपरिचित रंग संगीतकार श्री माॅरिस लाजरस Morris Lazarus। छहों दिन सूत्र सम्हालने वाले अनुभवी उद्घोषक श्री अरविन्द सोनी इस प्रयास का लगातार हिस्सा बने रहे।
मार्गदर्शकों ने प्रतिभागियों से खूब रचनात्मक परिश्रम कराया, सुधार कराया, सुझाव दिये, आत्मविश्वास बढ़ाया और इस अत्यन्त सम्भावनाशील माध्यम में मंच पर से लेकर मंच परे तक के व्याकरण, आत्मविश्वास, संयत अभिव्यक्ति, प्रत्युत्पन्नमति और कौशल को लेकर परामर्श दिया और सार्थक हस्तक्षेप भी।
इस बार भी हम सबके प्रेरणा स्रोत और उत्तरी अमेरिका में एक दशक से भी अधिक समय हुआ बस गये बड़े भाई श्री मुकेश कुन्दन थाॅमस जी Mukesh Kundan की तैयार की हुई जमीन, तत्समय के सीमित संसाधनों के बावजूद कण्ठ से निकलकर सीधे मन तक जाता ओज का स्वर और दरअसल इसे साधना मानकर बहुत ही गम्भीरता से उसमें एकाकार होने वाले प्रेरक की बात होती रही। हमने भाई साहब को इस बार भी आत्मीयतापूर्वक आग्रह करके इस बात के लिए सहज राजी कर लिया कि वे प्रतिभागी बच्चों के लिए अपनी एक पाती लिखें। उन्होंने कार्यशाला सम्पन्न होने के दो दिन पूर्व ही हमें वह सम्बोधन लिखकर भेज दिया, जो अविकल यहाँ प्रस्तुत है.............
श्री मुकेश कुन्‍दन थॉमस.......
आदरणीय मित्रों नमस्कार.
उद्घोषणा कार्यशाला के समापन सत्र में, मैं विशेषज्ञ आदरणीय सुश्री समीना अली सिद्दीकी, आदरणीय श्री विनय उपाध्याय , इस कार्यशाला के अभिकल्पक और समन्वयक आदरणीय श्री सुनील मिश्र और यहाँ एकत्र सभी उत्साही,आकांक्षी और भावी उद्घोषकों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ.
स्वागत इसलिए कि आपने कुछ दशकों पूर्व अनदेखी की जाती रही एक महान कला और उसकी कार्यशैली को समझने,सीखने और साधने का मन बनाया है और अभिनन्दन इसलिए,कि यहाँ आपकी उपस्थिति,उद्घोषणा कला की महत्ता के प्रति सम्मान ,समर्थन और भागीदारी का द्योतक है.

शब्द के बगैर आवाज़ बेजान है और अन्दाज़ के बगैर शब्द.

उद्घोषणा संगीत है – शब्द का ,आवाज़ का , उसके निर्वाह और उसके अन्दाज़ का.
ये कला और इसकी उपयोगिता उतनी ही प्राचीन है जितनी मानव सभ्यता. हर कला की तरह ये भी किसी समय अपरिष्कृत रही ,समय के साथ इसमें बदलाव होते रहे और शब्द और आवाज़ के साधकों के सतत योगदान से अब ये एक सुगठित आकार ले चुकी है.
इस विधा का कोई पाठ्यक्रम नहीं है मित्रों और न ही इसके परिष्कार के लिए ज्ञान अर्जन की कोई सीमा . ये लगातार अभ्यास और साधना का विषय है जिसका कोई अंत नहीं है. आप जानते ही हैं जैसे, कार्यक्रमों के विभिन्न रूप हैं उसी तरह अलग-अलग विषयों पर केन्द्रित कार्यक्रम और समारोहों के लिए उद्घोषणाकी विभिन्न शैलियाँ हैं.इन सभी शैलियों में कहीं न कहीं गाम्भीर्य एक आवश्यक तत्व है, पर संगीत और नृत्य विशेषकर शास्त्रीय संगीत और नृत्य के आयोजनों के लिए ये परम आवश्यक है कि उसे स्तरीय उद्घोषणा के माध्यम से गरिमामय स्वरूप प्रदान किया जाए. इस कला को सीखने का सबसे आसान तरीक़ा है कि आप ज़्यादा से ज़्यादा समारोह को सुनें- देखें और कला से जुडी हर विधा का अध्ययन करें ,अच्छा लिखने का अभ्यास करें और अपनी भाषा को सवाँरने-निखारने का यत्न करें.
एक विद्यार्थी के रूप में, मैं उद्घोषणा कार्यशाला के अभिकल्पकों ,परिकल्पकों और मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग को एक स्तुत्य कार्य और योजना को कार्यान्वित करने के लिए, विशेष रूप से धन्यवाद देना चाहूँगा.ये सर्वविदित है कि हमारे प्रदेश के संस्कृति विभाग ने सांस्कृतिक आयोजनों की इस अभिन्न और महत्वपूर्ण कर्मविधा की उपयोगिता को न सिर्फ हमेशा ध्यान में रखा बल्कि अब उसके प्रशिक्षण ,विस्तार, प्रोत्साहन और नयी पीढ़ी को दीक्षित करने की दिशा में भी एक अत्यन्त सार्थक क़दम उठाया है. इस प्रसंसनीय पहल के सकारात्मक परिणाम कला जगत में जल्द ही सामने आएंगे .
मित्रो, आपने बीते दिनों उद्घोषणा कला से जुडी हर आवश्यक और गहरी बात का निकट से साक्षात्कार किया .ये सम्भव न हो पाता अगर इस कार्यशाला के विशेषज्ञों ने पहल न की होती. आप सौभाग्यशाली हैं कि आपको उद्घोषणा संसार के श्रेष्ठतम साधकों का सान्निध्य प्राप्त हुआ है.
आप सब उद्घोषणा परंपरा और शैली के संवाहक और ध्वजवाहक बनने जा रहे हैं जो एक ज़िम्मेदारी का काम है.आप कुछ भी खोने नहीं जा रहे हैं बल्कि आपको गर्व होगा कि आपने इस कला और क्षेत्र को अपनी प्रतिभा प्रदर्शन का माध्यम बनाया.
आप आने वाले कल की आवाज़ें हैं. आप भविष्य के रंगपटल और कलाभूमि के सूत्रधार हैं.
मेरी शुभकामना है कि आप सब के काम को नाम मिले - सम्मान मिले 
धन्यवाद, नमस्कार.

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