मंगलवार, 27 जून 2017

देश के दूसरे स्वच्छ शहर से.......

मध्यप्रदेश के अनेक शहर हाल ही के सर्वेक्षण के बाद देश के स्वच्छ शहरों में शुमार हुए हैं। भोपाल उनमें से दूसरा है और इन्दौर पहला। ऐसे शहर का नागरिक होते हुए गर्व तो होगा ही जो सफाई, स्वच्छता के विषय में दूसरे क्रम पर आता है। पहले नम्बर पर आने वाला शहर इन्दौर भी हमारे पड़ोस का है जिसे मिनी मुम्बई कहा जाता है और उसी तरह की सुन्दरता, भव्यता और आधुनिकता का प्रतिबिम्ब देखने को मिलता है। भोपाल का दूसरा साफ शहर चुना जाना सचमुच किसी भी भोपाली के लिए खुशी की बात हो सकती है, क्यों न हो, आखिर वह इस शहर का बाशिंदा जो है, एक शहर गंगा-जमुनी तहजीब से भरा। मूर्धन्य शायरों की जन्म और कर्मस्थली, एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद ताजुल मसाजिद, भोपाल ताल से न जाने कितने सौ तालाब भोपाल की पहचान हैं।

भोपाल की विरासत उसकी अस्मिता के साथ ही विस्तीर्ण हुई है। यह जानना दिलचस्प होगा कि जब देश के सात राज्यों उत्तरप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंधप्रदेश, उड़ीसा और बिहार के हिस्सों को मिलाकर मध्यप्रदेश का निर्माण 1956 में किया था तब भोपाल मध्यप्रदेश की राजधानी बना था। यहाँ राज्य सरकार का सचिवालय और अनेक शासकीय कार्यालय स्थापित हुए थे। उस वक्त देश के इन्हीं सात राज्यों से लोग यहाँ आये थे और अपना घर बनाया था। यहीं सब एक-दूसरे के पड़ोसी हुए। रिश्ते-नाते बने। सुख-दुख मिलकर बाँटे। एक-दूसरे के लिए कपड़े और स्वेटर बनाकर पहनाये। घर और हुनर की सब्जियाँ बनाकर खिलायीं, पकवान बनाकर खिलाये। सब तीज-त्यौहार मिलकर मनाये। इन सबकी एक यात्रा है, निरन्तर यात्रा, अनवरत यात्रा जिसमें परिष्कार शामिल है, समय-समय पर हुआ परिमार्जन शामिल है। 

देश का यह दूसरे क्रम का सबसे स्वच्छ शहर अनेक उतार-चढ़ावों से गुजरा है। इस शहर ने गैस त्रासदी जैसी भयावह दुर्घटना को झेला और जिया है। हर उम्र ने सड़क पर बदहवासी देखी है। बहुत धीरे-धीरे जाकर यह दुख कम हुआ है। यह शहर रंगपंचमी के जुलूस से लेकर ईद के त्यौहार की मिठास को बराबरी से आदर और मान देता है। शहर की रचनात्मक धारा, सांस्कृतिक जागरुकता हमेशा मौलिक और चित्ताकर्षक वातावरण के साथ विद्यमान रहती है। यहाँ एक ओर जनजातीय संग्रहालय, शौर्य स्मारक, इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, राज्य संग्रहालय जैसे विरासत और मानवीय अस्मिता का बोध कराने वाले केन्द्र हैं वहीं भारत भवन, रवीन्द्र भवन, शहीद भवन जैसे सांस्कृतिक सभागार अपनी सक्रियता के नित नये प्रमाण देते हुए। 

इसी भोपाल को स्वच्छता के एक नये आन्दोलन में बदलने का काम पिछले एक-दो वर्षों के उस आव्हान का परिणाम है जो देशव्यापी स्वच्छता अभियान से शुरू हुआ। इसी बीच राजधानी में महापौर परिषद का पुनर्गठन हुआ और पुराने भोपाल के बाशिन्दे जो अपने पार्षद काल में सबसे ज्यादा सक्रिय और मुखर माने जाते थे, महापौर बने। महापौर आलोक शर्मा के रूप में उनके व्यक्तित्व का यह आयामकाल वास्तव में इस दृष्टि से प्रशंसनीय है कि उन्होंने मुख्यमंत्री की निगाह से राजधानी के आधुनिक स्वरूप को देखा, परिकल्पित किया और उसे यथार्थ में बदलने का संकल्प उठाया। शायद यह बात ध्यान देने की है कि अब न तो उनके भाषण की चर्चा होती है और न ही उनके वक्तव्य बढ़-चढ़कर प्रकाशित होते हैं, अतिरेक न कहा जाये तो उनका काम और दृष्टि बोलती है। 

भोपाल का नगर निगम सचमुच पिछले कुछ समय में आधुनिकीकरण, जिम्मेदारियों, तत्पर और उत्तरदायी ढंग से कार्य निर्वाह का एक मानक बनकर उभरा है। अब मुहल्लों में घर-घर जाकर कचरा नगर निगम की गाड़ियाँ और उनके कर्मचारी प्राप्त करते हैं। कचरे को यहाँ-वहाँ फेंकने के बजाय थैलियों में रखकर ट्राॅली और सायकल रिक्शा में सुबह एक बार दे दीजिए और अपना घर और परिवेश साफ रखिए। युवा और ऊर्जावान नगर निगम आयुक्त छबि भारद्वाज की प्रशासकीय दृष्टि और दिये गये निर्देशों के पालन और प्रगति पर तत्पर निगाह रखने के कारण ही शहर में सड़कें साफ हैं, मुहल्ले साफ हैं और आवश्यकतानुसार रात में रोशनी के सुव्यवस्थित इन्तजाम हैं।

स्वच्छता का मानस या उसका बोध दरअसल मानवीय चेतना और मानवीय सजगता का ही एक अहम हिस्सा है। हम हमेशा किसी भी मुसीबत या शिकायत के लिए सरकार और व्यवस्था को आड़े हाथों लेना नहीं चूकते लेकिन सही बात यह है कि बहुत सारी बनी-बनायी व्यवस्था, साफ-सुचारू परिवेश और वातावरण को बिगाड़ने का काम हम ही शुरू करते हैं। गन्दगी और कचरा फेंकने के मामले में यह बात बहुत बनी-बनायी है और जग प्रमाणित है। मुझे याद है एक बार प्रसिद्ध फिल्म लेखक, पटकथा एवं गीतकार जावेद अख्तर ने मेरे एक प्रश्न के उत्तर में कहा था कि जिस तरह हम किसी रेस्टोरेंट में जाकर बैठते हैं तो हमें मेज साफ-सुथरी मिलती है, सब चीजें व्यवस्थित एवं करीने से रखी होती हैं, चारों तरफ खुशनुमा वातावरण मिलता है। ऐसे में हमारा फर्ज बनता है कि ऐसे स्थान को सलीके से बरतें ताकि हमारे बाद जो यहाँ आकर बैठें वे इस बात के लिए हमारे प्रति अच्छी भावना रखें कि हम उनको एक अच्छा वातावरण उपलब्ध करा कर गये हैं। जावेद अख्तर ने कहा कि यही जीवन के साथ भी लागू होता है, हमारे दुनिया में आने और जाने के सन्दर्भ में भी। यह खूबसूरत और स्वच्छ दुनिया हमारे पूर्वजों ने जिस सुन्दरता के साथ भेंट की है, हम जब यहाँ से जायें तो इसे इतना ही खूबसूरत और साफ-सुथरा कर के जायें ताकि हमारे बाद जो इस दुनिया का हिस्सा हों, उनके मन में हमारे प्रति कोई विपरीतता न हो।

देश के दूसरे क्रम के स्वच्छ शहर का नागरिक होते हुए मुझे यह बात एक नैतिक जिम्मेदारी के साथ रह-रहकर कौंधती है। मुझमें इस बात का बोध हो गया है कि मैं अपना कचरा मुट्ठी में बन्द रखता हूँ। यहाँ-वहाँ नहीं फेंकता। मेरा भोपाल इसीलिए स्वच्छ और साफ दीखता है क्योंकि यह मेरे अकेले भर का बोध नहीं बल्कि भोपालवासियों का हो गया है, भोपालियों का हो गया है।



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