शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

प्रेम औरअवसाद की दो फिल्‍में



लघु फिल्‍मों के अवलोकन के सिलसिले के बीच दो फिल्‍में देखने का अवसर मिला। इनमें एक है पुराना प्‍यार जिसका निर्देशन अम्‍बर चक्रवर्ती ने किया है और दूसरी है बातें जिसे अदीब रईस ने निर्देशित किया है। एक फिल्‍म के मूल में दो बढ़ती उम्र के संगियों के बीच प्रेम की सम्‍भावना है और दूसरे में पुत्र बिछोह की व्‍यथा है और इस बात पर विचार की कोशिश है कि माता-पिता अपने बच्‍चों को कितना जान पाते हैं?

पुराना प्‍यार



पति अथवा पत्‍नी के बिना रह रहे बढ़ती उम्र के लोगों को अपने बुढ़ापे में एकाकीपन से जूझने के लिए किसी साथी की कामना होती है। यह फिल्‍म पुराना प्‍यार अम्‍बर चक्रवर्ती ने लिखी है और उन्‍होंने ही इसे निर्देशित भी किया है। बेटे को यकायक खबर हुई है कि पिताजी कहीं चले गये हैं मिसेज शर्मा के साथ। बच्‍चे आपस में इस बात की चर्चा दबी जुबान में अपने शहर में करते हैं। हम देखते हैं कि उत्‍तराखण्‍ड की खूबसूरत वादियों में एक लक्‍झरी बस चली जा रही है उसमें इस फिल्‍म के नायक नायिका साथ में बैठे हैं और आपस में तोता-मैना की तरह बात कर रहे हैं। डॉ मोहन आगाशे और लिलेट दुबे इन भूमिकाओं में हैं। दोनों का होटल में ठहरना, सुरम्‍य स्‍थलों में घूमना, बातें करना, एक-दूसरे से उनके मन की सुनना, ऐसे दृश्‍यों से फिल्‍म आगे बढ़ती है। दिलचस्‍प यह है कि यह बड़ा मैत्रीपूर्ण और एक दूसरे के प्रति संवेदनशीलता का सफर है जिसको मूर्ख होटल मैनेजर क्षुद्र काल्‍पनिकताओं में और बेटा बेमतलब की ग्‍लानि में अनुभव करते दिखायी देते हैं। 

आखिर में मिसेज शर्मा को उनके आग्रह पर देव का उनको सुनयना नाम से बुलाना और वृद्ध हीरो का अपने बचपन के स्‍कूल में अपने 1969 बैच के साथियों के गेट टूगेदर में ले जाकर मिलवाना एक दिलचस्‍प अन्‍त का अनुभव कराता है। दून स्‍कूल की लोकेशन बहुत प्रभावी लगती है इस उत्‍तरार्ध में। पता चलता है कि सुनयना, देव के बचपन के ही एक साथी की विवाहिता है जो बरसों से अलग हैं। समीर खख्‍कर वह साथी हैं जो एक ही उम्र के एक ही बैच के हमउम्रों के बीच नजर आते हैं। डॉ मोहन आगाशे और लिलेट वहॉं बहुत खूबसूरत लगते हैं सबके बीच डॉंस करते हुए। इस फिल्‍म में दो गीत भी हैं छोटे छोटे जिनको सुरेश वाडकर ने गाया है, अभिषेक सिंह के लिखे हुए। मृदुला रामकृष्‍णन निर्मात्री हैं। अमिताभ सिंह की सिनेमेटोग्राफी बहुत खूबसूरत है। सेमल भट्ट और निखिल कोटिभास्‍कर का संगीत भी काव्‍यात्‍मक। इस फिल्‍म के बारे में यही कहा जा सकता है कि एक खूबसूरत विषय, गुणी कलाकारों के साथ निभाया गया है।

बातें 



बातें एक भावनात्‍मक फिल्‍म है जिसमें निर्देशक अदीब रईस ने ही एक भूमिका भी निभायी है। सुप्रिया पिलगॉंवकर और शिवानी रघुवंशी प्रमुख कलाकार हैं। पालघर मुम्‍बई से बाहर बसे एक नये शहर में एक युवा एक घर में पहुँचता है। दरवाजा खटखटाने पर एक सुन्‍दर लड़की बाहर निकलती है जिससे वह पूछता है कि मिसेज देशपाण्‍डे से मिलना है। वह लड़की बतलाती है कि मासी घर पर नहीं हैं, एक घण्‍टे में आ जायेंगी। वह कहता है कि मैं उनका इन्‍तजार कर लूँगा। कुछ देर वह घर के बाहर सीढि़यों पर बैठ जाता है फिर लड़की उसको घर के भीतर बैठने के लिए बुला लेती है। थोड़ी देर में मिसेज देशपाण्‍डे भी आती हैं। वह आरम्‍भ में अपने को उनके दिवंगत बेटे का दोस्‍त बतलाता है। साथ खाना भी खाता है लेकिन उसके पूरे व्‍यवहार से उसका दूर किसी शहर का होना और बातचीत में एक सहमा हुआ सा भाव एक रहस्‍य बनाये रखता है। वह बाद में मिसेज देशपाण्‍डे को बतलाता है कि वह उनके बेटे का दोस्‍त नहीं है बल्कि एक शॉर्ट फिल्‍म मेकर है जो शहर में एक फिल्‍म बनाते हुए उस युवक से मिलता है जो उनके बेटे की मृत्‍यु के अपराध में जेल में सजा काट रहा है। प्रसंग बिल्‍कुल बदल जाता है और मिसेज देशपाण्‍डे के साथ लम्‍बे सीन में बात होती है। स्‍कूल में अपने स्‍वभाव के वशीभूत एकाकी और अपने में रहते हुए उनका बेटा कुछ शरारती और मसखरे मनचले साथियों की लापरवाही का शिकार हो जाता है। मॉं का पूरा जीवन ही अशान्‍त होकर रह गया है। 

फिल्‍म बना रहा युवा इस सूचना के साथ मिसेज देशपाण्‍डे से मिल रहा है कि शहर में जेल में सजा काट रहा अपराधी भयानक ग्‍लानि में है और दो दिन पहले अपनी जान देने का प्रयास कर चुका है। सजा तो वह काटेगा ही लेकिन यह युवा यह अपील लेकर मिल रहा है कि वे अपने बेटे के गुनहगार को माफ कर दें। आसान तो यह भी नहीं है। मिसेज देशपाण्‍डे का बेटा जैसा और उसके उन दिशाहीन साथियों जैसे बच्‍चों के साथ समकालीन चिन्‍ता यह है कि माता-पिता के पास उनकी शिक्षा की जवाबदारी का ऐसा हौव्‍वा है जिसके बीच में उनको आगे चलकर एक बेहतर इन्‍सान बनाने की सीख या संस्‍कार देने की जिम्‍मेदारी किसी ने नहीं उठाना चाही है, ज्‍यादातर। भावनात्‍मक रूप से छूने वाली यह फिल्‍म एक बड़ा प्रश्‍न छोड़कर खत्‍म होती है। कलाकारों में अनुभवी सुप्रिया बहुत मार्मिक होकर सामने आती हैं, शिवानी आश्‍वस्‍त और अदीब जितने अच्‍छे अभिनेता उतने ही अच्‍छे निर्देशक। 
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