रविवार, 19 अप्रैल 2020

सिनेमा में पण्डित रविशंकर का संगीत




विख्‍यात सितार वादक पण्डित रविशंकर की जन्‍मशताब्‍दी आरम्‍भ हुई है। शताब्दियॉं, महान कलाकारों के अवसान और प्रस्‍थान की खबरें इस पूरे वातावरण में वह स्‍थान नहीं पा सक पा रही हैं जो प्राय: समान्‍य दिनों में उनको मिला करता था। पिछले दिनों हिन्‍दी सिनेमा की एक बड़ी अभिनेत्री निम्‍मी का निधन भी अखबारों में एक सार्थक ट्रिब्‍यूट नहीं पा सका। विषम परिस्थितियों में अखबारों का प्रकाशन ही अपने आपमें एक साहसिक उपक्रम है। सम्‍पादक, पत्रकार, संवाददाता, प्रेस छायाकार से लेकर घर-घर अखबार पहुँचाने वालो हॉकर तक का हौसला प्रणम्‍य है। हम सबका जीवन चलाने वाले वे अनेक लोग जिनमें डॉक्‍टर, पुलिस, साफ-सफाईकर्मी सबका यह उपकार जीवनभर भुलाया जा सकने वाला नहीं है। कोरोना वायरस की वैश्विक आपदा से भरे पड़े अखबारों में बहुत थोड़ा सा हिस्‍सा इस कठिन लड़ाई से लड़ने में रचनात्‍मक मनलगाव का मिल पा रहा है। सृजनात्‍मक संसार और आम आदमी घर में धँधा रहकर कैसे इस मुश्किल घड़ी से जूझ रहा है, खुद उम्‍मीद नहीं छोड़ रहा है और दूसरों को उम्‍मीद बंधा रहा है, यह भी अब के समय का कालजयी साक्ष्‍य रहने वाला है।

पण्डित रविशंकर विश्‍वख्‍याति के एक ऐसे हिन्‍दुस्‍तानी कलाकार थे जिन पर भारत को हमेशा ही गर्व रहा है। हमने सदैव ही उनकी छबि और असाधारण सर्जनात्‍मक प्रतिभा को बेहद अपनेपन और असीम आदर से देखा है। हालॉंकि यह भी बात यहॉं उल्‍लेखनीय है कि वे उत्‍कर्ष के ऐसे समय में देश छोड़कर अमरीका में जा बसे थे और वहॉं की नागरिकता ग्रहण कर ली थी जब भारतीय कला समाज और आम आदमी उनके यश और सांस्‍कृतिक वैभव को महसूस कर रहा था और अपनी अनुभूतियों में आनंद का अनुभव कर रहा था। बीसवीं सदी के आरम्‍भ में लगभग इसी काल में सौ साल पहले जब उनका जन्‍म वाराणसी में हुआ। उनके पिता श्‍याम शंकर शहर के प्रतिष्ठित बैरिस्‍टर थे और ऊँचे ओहदे पर काम करते हुए राजघराने से जुड़े हुए थे। बड़े भाई विख्‍यात कोरियोग्राफर उदय शंकर के सान्निध्‍य में उनकी कलायात्रा का आरम्‍भ हुआ। युवावस्‍था तक भाई के साथ नृत्‍य में सहभागी सहयोगी रहते हुए अठारह वर्ष की उम्र में शास्‍त्रीय संगीत की प्रशिक्षण प्राप्‍त करने वे मैहर उस्‍ताद अलाउद्दीन खॉं साहब के पास आ गये। लगभग छ: वर्ष उनकी शिष्‍य परम्‍परा में रहते हुए पण्डित रविशंकर ने सितार वादन सीखा और आश्‍वस्‍त हुए तथा अपनी सांगीतिक यात्रा आरम्‍भ की। बाद की सर्जनात्‍मक यात्रा उनकी अपनी गहरी साधना, उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति और साज पर असाधारण अधिकार के साथ वादन में प्रवृत्‍त होने से परवान चढ़ी। भारत की स्‍वतंत्रता के बाद हमको जिस सांस्‍कृतिक प्रभाव और उत्‍कर्ष की जरूर थी वह पण्डित रविशंकर जैसे महान कलाकार की विलक्षण प्रतिभा के विश्‍वव्‍यापी चमत्‍कारिक असर के साथ समृद्ध होता चला। संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, पद्मभूषण और विभूषण, पॉंच बार ग्रैमी अवार्ड और अन्‍तत: भारत रत्‍न तक आते-आते उनका परचम चहुँओर फैल चुका था। 

पण्डित रविशंकर की सांगीतिक उपलब्धियों को देश ने अपने भीतर ही अनुभूत किया। उनके भारतीय संगीत जगत में असाधारण अवदान के बीच कुछ महत्‍वपूर्ण फिल्‍मों में संगीत देना उनका एक अविस्‍मरणीय और अहम योगदान माना जाता है। उनकी इस प्रतिभा का उपयोग सबसे पहले महान फिल्‍मकार सत्‍यजित रे ने किया था। रे की कालजयी फिल्‍म पाथेर पांचाली जो 1955 में बनी थी, इसके संगीत निर्देशन के लिए उन्‍होंने पण्डित रविशंकर को दायित्‍व सौंपा। इस फिल्‍म का संगीत, समकालीन यथार्थ और परिस्थितियों के अनुकूल निर्देशक द्वारा विकसित कथ्‍य और दृष्टि के एकदम अनुकूल था। सत्‍यजित रे संगीत निर्देशक के रूप में पण्डित रविशंकर की भूमिका और लगन से इतने संतुष्‍ट हुए कि उन्‍होंने बाद में उनको अपू ट्रायोलॉजी के लिए भी अनुबन्धित कर लिया। करीब-करीब प्रत्‍येक वर्ष निरन्‍तर आने वाली फिल्‍मों अपराजितो, पारस पाथेर और अपूर संसार के भी वे संगीतकार रहे। इधर साठ के दशक में एक बड़े फिल्‍मकार हृषिकेश मुखर्जी ने भी अपनी महात्‍वाकांक्षी फिल्‍म अनुराधा के लिए पण्डित रविशंकर को अनु‍बन्धित किया जिसका संगीत, गाने आज भी याद किए जाते हैं। 

प्रेमचंद की कहानी गोदान पर इसी नाम से बनने वाली हिन्‍दी फिल्‍म के भी वे संगीत निर्देशक हुए। 1979 में जब गुलजार मीरा फिल्‍म बना रहे थे तब उनके मन में पण्डित रविशंकर से ही संगीत निर्देशक के रूप में जुड़ने का आग्रह करना प्रथम लक्ष्‍य था। इस फिल्‍म में गाने के लिए लता मंगेशकर बहुत रुचि रखती थीं, वे फिल्‍म निर्माण में भी सहयोग करने के लिए तत्‍पर थीं लेकिन उनका आग्रह था कि इसका संगीत हृदयनाथ दें। गुलजार इस बात के लिए तैयार नहीं हुए और पण्डित रविशंकर वाले निर्णय को उन्‍होंने नहीं बदला। अपने सृजनात्‍मक आग्रहों और निर्णयों में अत्‍यन्‍त पक्‍के गुलजार ने पण्डित रविशंकर से ही इसका संगीत तैयार कराया। यहॉं यह बात उल्‍लेखनीय है कि इस फिल्‍म के फिर बारह गाने वाणी जयराम ने गाये। मीरा फिल्‍म का संगीत पक्ष और सभी रचनाऍं उत्‍कृष्‍टता के स्‍तर पर कम नहीं ठहरतीं। पण्डित रविशंकर ने एक अमरीकन फिल्‍म चार्ली का संगीत भी 1968 में तैयार किया था और रिचर्ड एटिनबरो की फिल्‍म गांधी का भी 1982 में जिसके लिए वे ऑस्‍कर नामित भी हुए थे। 

दिव्‍य और अलौकिक संगीत मन और आत्‍मा से निकलता है और दुनिया तक सम्‍प्रेषित होता है। पण्डित रविशंकर का संगीत इसी श्रेणी का था। कला के असाधारणपन ने ही उनके व्‍यक्तित्‍व को भी अलग सी दिव्‍यता और देवत्‍व प्रदान किया था। परम सम्‍मोहन से भरा उनका चेहरा दुनिया में भारतीय गर्व की पहचान था। वे एक ऐसे संगीत पुरुष थे जो वाराणसी की आध्‍यात्मिक मेधा, संगीत के सर्वोत्‍कृष्‍ट गंगाजलीय आचमन करके दुनिया में विख्‍यात हुए थे। पण्डित रविशंकर की जन्‍मशताब्‍दी पर यही कहा जा सकता है कि उनका यश आने वाली अनेकों शताब्दियों में इसी प्रकार छाया रहेगा।


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